प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शनिवार को तियानजिन, चीन पहुंचे। यह उनका पिछले सात सालों में पहला चीन दौरा है। इस दौरान वे शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) शिखर सम्मेलन में भाग लेंगे और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से द्विपक्षीय वार्ता करेंगे।
मोदी का यह दौरा जापान यात्रा के तुरंत बाद हो रहा है, जहां उन्होंने परिवहन, अंतरिक्ष सहयोग और व्यापार जैसे क्षेत्रों में द्विपक्षीय रिश्तों को मजबूती देने पर जोर दिया। चीन में होने वाली उनकी बैठकों को कूटनीतिक और आर्थिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
प्रधानमंत्री 1 सितंबर तक चीन में रहेंगे। इस दौरान उनकी शी जिनपिंग के साथ उच्चस्तरीय बातचीत होगी, जिसमें भारत-चीन आर्थिक संबंधों की समीक्षा की जाएगी और रिश्तों को सामान्य करने के कदमों पर चर्चा होगी। हाल के वर्षों में विशेषकर 2020 की सीमा तनातनी के बाद दोनों देशों के संबंध तनावपूर्ण रहे हैं। ऐसे में इस बैठक को रिश्तों को नई दिशा देने की संभावना के रूप में देखा जा रहा है।
इसके साथ ही मोदी एससीओ के वार्षिक शिखर सम्मेलन में भी हिस्सा लेंगे, जिसमें चीन, रूस और मध्य एशियाई गणराज्य जैसे अहम सदस्य शामिल हैं। यह सम्मेलन ऐसे समय पर हो रहा है जब अमेरिका ने भारत पर 50 प्रतिशत टैरिफ लगाने का ऐलान किया है, जो बुधवार से प्रभावी हो चुका है। इस कदम से भारत के निर्यात पर दबाव बढ़ा है और नई व्यापारिक संभावनाओं की खोज और भी जरूरी हो गई है।
विश्लेषकों का मानना है कि मोदी का यह दौरा भारत-चीन संबंधों के लिए मोड़ साबित हो सकता है, बशर्ते दोनों देश व्यवहारिक सहयोग के संकेत दें। एससीओ का मंच जहां बहुपक्षीय वार्ता का अवसर देता है, वहीं मोदी-शी की मुलाकात से आर्थिक सहयोग पर जोर दिए जाने की उम्मीद है। यह यात्रा सावधानीपूर्ण लेकिन सकारात्मक प्रगति का रास्ता खोल सकती है।