Advertisement

बिहार में इंसेफेलाइटिस से अब तक 128 बच्चों की मौत, सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में होगी सुनवाई

बिहार के मुजफ्फरपुर और आसपास के कुछ जिलों में बड़ी संख्या में बच्चे एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम...
बिहार में इंसेफेलाइटिस से अब तक 128 बच्चों की मौत, सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में होगी सुनवाई

बिहार के मुजफ्फरपुर और आसपास के कुछ जिलों में बड़ी संख्या में बच्चे एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम (एईएस) यानी चमकी बुखार की चपेट में हैं। इस बुखार से अब तक 126 से अधिक बच्चों की मौत हो चुकी है और अस्पताल में भर्ती बीमार बच्चों की संख्या बढ़कर 414 हो गई है। एईएस से पीड़ित अधिकतर मरीज मुजफ्फरपुर के सरकारी श्रीकृष्णा मेडिकल कॉलेज एंड अस्पताल और केजरीवाल अस्पताल में भर्ती हैं। अब इस मामले में सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट भी तैयार हो गया है।

मामले की सुनवाई के लिए तैयार सुप्रीम कोर्ट

बिहार में एक्यूट इंसेफलाइटिस सिंड्रोम (एईएस) से हो रही बच्चों की मौत का मामला मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया है। सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को एक जनहित याचिका दाखिल हुई, जिसमें राज्य और केंद्र सरकार को बच्चों के इलाज के लिए पुख्ता इंतजाम करने संबंधी निर्देश दिए जाने की मांग की गई थी। इस याचिका पर बुधवार को कोर्ट सुनवाई के लिए राजी हो गया है। कोर्ट ने कहा है कि वह इस मामले पर सोमवार को सुनवाई करेगा।

परिजनों ने अस्पताल में बार-बार बिजली जाने की शिकायत की

जिन अस्पतालों में बच्चों को भर्ती कराया जा रहा है उनका हाल भी कुछ खास अच्छा नहीं है। श्री कृष्णा मेडिकल कॉलेज और अस्पताल (SKMCH) में मरीज बच्चों के परिजनों ने अस्पताल में बार-बार बिजली जाने की शिकायत की है। परिजनों का कहना है कि अस्पताल में दूसरी कोई वैकल्पिक व्यवस्था नहीं है। बच्चे गर्मी से रो रहे हैं। उन्हें बच्चों की हाथ वाले पंखों से हवा करनी पड़ रही है।

लेकिन अस्पताल में ये परेशानी केवल बीजली जाने तक सीमित नहीं है, बल्कि ये समस्या अस्पतालों में बेडों को लेकर भी है। एसकेएमसीएच अस्पताल में बेडों की संख्या कम होने की वजह से कई बच्चों को फर्श पर ही गद्दे बिछाकर लिटाया जा रहा है। इसके अलावा अस्पतालों में डॉक्टरों की कमी की बात भी सामने आ रही है। साथ ही, वहां के लोगों ने ये भी आरोप लगाया है कि श्री कृष्णा मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में बच्चों को भर्ती नहीं किया जा रहा है।

अस्पताल के सुपरिटेंडेंट की अपील- अस्पताल में प्रदर्शन न करें कार्यकर्ता

एक ही बेड पर 3 से 4 मरीजों के इलाज पर अस्पताल के सुपरिटेंडेंट का कहना है कि बच्चों को बचाने की हर कोशिश जारी है, भले ही एक बेड पर मरीजों की संख्या अधिक हो। उन्होंने कहा, 'हम चाहते हैं कि हमारे बच्चे बच जाएं।' इस बीच भीम आर्मी के कार्यकर्ताओं ने अस्पताल के सुपरिटेंडेंट का घेराव कर हंगामा किया। सुपरिटेंडेंट सुनील कुमार शाही ने अपील की कि अस्पताल आने के बजाय वे वहां जाकर जागरूकता फैलाएं जहां से मरीज आ रहे हैं।

कोर्ट और केंद्र सरकार मामले में दखल दे

दरअसल, कोर्ट में दाखिल याचिका में कहा गया है कि बिहार सरकार बीमारी को फैलने से रोकने में नाकाम रही है। इसलिए, कोर्ट और केंद्र सरकार मामले में दखल दे। कोर्ट से आग्रह किया गया है कि राज्य और केंद्र सरकार को निर्देश दिया जाए कि वे प्रभावितों के इलाज के लिए बिहार में करीब 500 आइसीयू और मोबाइल आइसीयू की व्यवस्था करें। साथ ही, बिहार सरकार को निर्देश दिया जाए कि वह निजी अस्पतालों को बीमार बच्चों का मुफ्त में इलाज करने का आदेश जारी करे। यह भी मांग की गई है कि इस बीमारी से जिन बच्चों की मौत हो गई है, उनके परिवारों को मुआवजा दिया जाए।

क्या बोले SKMCH के अधीक्षक 

श्री कृष्ण मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल (SKMCH) के अधीक्षक सुनील कुमार शाही ने बताया कि अब तक, 372 बच्चों को यहां भर्ती कराया गया है, जिनमें से 118 को छुट्टी दे दी गई है, 57 को जल्द ही छुट्टी दे दी जाएगी। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि एईएस के कारण 93 बच्चों की जान चली गई।

बीमार बच्चों के अंदर हाइपोग्लेसिमया के लक्षण भी दिखाई दे रहे हैं

इससे पहले केजरीवाल अस्पताल के शिशु रोग विभागाध्यक्ष डॉ राजीव कुमार ने बताया कि बीमार बच्चों के अंदर हाइपोग्लेसिमया के लक्षण भी दिखाई दे रहे हैं लेकिन इसका कारण क्या है, यह कहा नहीं जा सकता। धूप में नहीं निकलने के बाद भी बच्चों को बीमारी हो रही है। यह रिसर्च का विषय है, लेकिन इतना जरूर है कि हाइपोग्लेसेमिया के कारण बच्चों के मस्तिष्क सेल मरने लगते हैं। यह सेल दोबारा नहीं बनता।

ओडिशा ने लीची की जांच के दिए आदेश

ओडिशा के स्‍वास्‍थ्‍य मंत्री नभ किशोर दास ने अधिकारियों से कहा है कि राज्‍य में बेची जा रही लीची में विषैले पदार्थों की जांच कर उनका पता लगाएं। यह आदेश ऐसे समय आया है जब लीची उगाने वाले बिहार के जिले मुजफ्फरपुर समेत देश के दूसरे हिस्‍सों से भी इंसेफलाइटिस की खबरें आ रही हैं।

मंगलवार को सीएम नीतीश कुमार पहुंचे थे एसकेएमसीएच हॉस्पिटल

मंगलवार को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने मुजफ्फरपुर के एसकेएमसीएच हॉस्पिटल का दौरा किया और डॉक्टरों के साथ बैठक की। इस दौरान यहां के स्थानीय लोगों ने मुख्यमंत्री का विरोध करते हुए नीतीश कुमार वापस जाओ के नारे लगाए।

मामले में कार्रवाई नहीं करने के आरोप में हर्षवर्धन-मंगल पांडेय के खिलाफ मामला दर्ज

इस मामले में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन और बिहार के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडे के खिलाफ बीमारी से पहले कार्रवाई नहीं करने के आरोप में मामला दर्ज हुआ है। बच्चों की मौत पर मानवाधिकार आयोग ने केंद्र और राज्य सरकार को नोटिस भेजा था।

सामाजिक कार्यकर्ता तमन्ना हाशमी ने दर्ज कराया मुकदमा

सामाजिक कार्यकर्ता तमन्ना हाशमी ने हर्षवर्धन और मंगल पांडेय के खिलाफ मामला दर्ज करवाया है जिस पर 24 जून को सुनवाई होगी। तमन्ना हाशमी का कहना है कि स्वास्थ्य मंत्री ने गलत आंकड़े पेश किए हैं, अस्पताल में स्वास्थ्य व्यवस्था की हालत बेहद खराब है। इसी को आधार मानकर केस दर्ज कराया गया है।

मुजफ्फरपुर के सरकारी अस्पताल में सुविधाओं की भारी कमी

बिहार के मुजफ्फरपुर से बीजेपी सांसद अजय निषाद ने कहा है कि मुजफ्फरपुर के सरकारी अस्पताल में सुविधाओं की भारी कमी है। उन्होंने कहा कि संसाधनों के अभाव में एक बेड पर तीन-तीन बच्चों का इलाज हो रहा है। निषाद ने कहा कि पूरे बिहार से बच्चे इलाज करने के लिए मुजफ्फरपुर आते हैं। इसलिए यहां पर आईसीयू की संख्या बढ़ाने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि संसाधनों के अभाव में एक बेड पर ही तीन-तीन बच्चों का इलाज किया जा रहा है।

क्या है एईएस?

एक्यूट एन्सेफलाइटिस सिंड्रोम मच्छरों द्वारा प्रेषित एन्सेफलाइटिस का एक गंभीर मामला है। एईएस का प्रकोप उत्तर बिहार के जिलों में और इसके आसपास के क्षेत्रों में गर्मियों के मौसम में आम है। यहां इस बीमारी को "चमकी बुखार" या "मस्तिष्क बुखार" के नाम से जाना जाता है। ये महामारी ज्यादातर गरीब परिवारों के बच्चों को प्रभावित करती है जो 10 वर्ष से कम उम्र के हैं।

एईएस के लक्षण अस्पष्ट होते हैं, लेकिन डॉक्टरों का कहना है कि इसमें दिमाग में ज्वर, सिरदर्द, ऐंठन, उल्टी और बेहोशी जैसी समस्याएं होतीं हैं। शरीर निर्बल हो जाता है। बच्‍चा प्रकाश से डरता है। कुछ बच्चों में गर्दन में जकड़न आ जाती है। यहां तक कि लकवा भी हो सकता है।

डॉक्‍टरों के अनुसार इस बीमारी में बच्चों के शरीर में शर्करा की भी बेहद कमी हो जाती है। बच्चे समय पर खाना नहीं खाते हैं तो भी शरीर में चीनी की कमी होने लगती है। जब तक पता चले, देर हो जाती है। इससे रोगी की स्थिति बिगड़ जाती है।

अब आप हिंदी आउटलुक अपने मोबाइल पर भी पढ़ सकते हैं। डाउनलोड करें आउटलुक हिंदी एप गूगल प्ले स्टोर या एपल स्टोर से
Advertisement
Advertisement
Advertisement
  Close Ad