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कोरेगांव भीमा से जुड़े 348 मामले वापस लिए गए, महाराष्ट्र सरकार ने लिया फैसला

महाराष्‍ट्र सरकार ने गुरुवार को भीमा कोरेगांव और मराठा आंदोलन से जुड़े 808 मामलों को वापस लेने की घोषणा...
कोरेगांव भीमा से जुड़े 348 मामले वापस लिए गए, महाराष्ट्र सरकार ने लिया फैसला

महाराष्‍ट्र सरकार ने गुरुवार को भीमा कोरेगांव और मराठा आंदोलन से जुड़े 808 मामलों को वापस लेने की घोषणा की है। जांच के बाद बाकी के मामले भी वापस लिए जाएंगे। राज्य सरकार में मंत्री अनिल देशमुख ने विधानसभा में यह जानकारी देते हुए बताया कि भीमा कोरेगांव हिंसा के मामले में दर्ज कुल 649 मामलों में 348 और मराठा आरक्षण आंदोलन के दौरान दर्ज 548 मामलों में 460 को वापस लेने का फैसला लिया गया है।

उन्होंने कहा कि राज्य सरकार एल्गर परिषद मामले की जांच के लिए महाराष्ट्र पुलिस कानून के तहत एक जांच आयोग स्थापित करने पर विचार कर रही थी लेकिन उन्हें एनआईए को जांच सौंपे जाने से निराशा हुई। देशमुख ने कहा कि उन्हें इस तरह की काफी शिकायतें मिली कि पिछली भाजपा सरकार ने खिलाफ बोलने वालों को "शहरी नक्सली" कहा।

मानदंडों पर लिया फैसला

उन्होंने कहा, "प्रस्तावित नानार रिफाइनरी परियोजना के खिलाफ आंदोलन के संबंध में दायर कुल पांच मामलों में से, राज्य सरकार ने अब तक तीन मामलों को वापस ले लिया है।"  बाद में पत्रकारों से बात करते हुए देशमुख ने कहा, "इन मामलों को मानदंडों के अनुसार वापस ले लिया गया है।"

पुणे पुलिस के अनुसार, 31 दिसंबर, 2017 को पुणे में आयोजित एल्गर परिषद के सम्मेलन का समर्थन माओवादियों द्वारा किया गया था और इस कार्यक्रम में किए गए भड़काऊ भाषणों के कारण अगले दिन कोरेगांव भीमा युद्ध स्मारक पर पुणे जिले में जातिगत हिंसा हुई थी।

जांच एनआईए को सौंप दी थी

केंद्र ने पिछले महीने पुणे पुलिस से जांच एनआईए को स्थानांतरित कर दी थी, इस कदम की शिवसेना-एनसीपी-कांग्रेस की महाराष्ट्र विकास अघाडी सरकार ने आलोचना की थी। हालांकि, बाद में राज्य सरकार ने अपना रुख बदल दिया था और कहा था कि उसे केंद्रीय एजेंसी द्वारा जांच को लेकर कोई आपत्ति नहीं है। बाद में मुख्यमंत्री और शिवसेना नेता उद्धव ठाकरे ने बहुचर्चित भीमा कोरेगांव मामले पर यू-टर्न ले लिया। उद्धव ठाकरे ने कहा,"एलगार परिषद का मामला और भीमा कोरेगांव का मामला अलग-अलग है। भीमा-कोरेगांव का मामला दलित भाइयों से जुड़ा हुआ है। इसकी जांच केंद्र को नहीं दी जा सकती। इसे केंद्र को नहीं सौंपा जाएगा, जबकि एलगार परिषद के मामले को एनआइए देख रही है।

जानें क्या है मामला

पुणे जिले में कोरेगांव-भीमा युद्ध स्मारक के पास एक जनवरी 2018 को हिंसा हुई थी। हर साल बड़ी संख्या में दलित यहां आते हैं। पुलिस ने दावा किया था कि पुणे में 31 दिसंबर 2017 को एल्गार परिषद में भड़काऊ भाषणों के कारण हिंसा हुई। बाद में तेलुगू कवि वरवर राव और सुधा भारद्वाज सहित वामपंथी झुकाव वाले कुछ कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया गया था।

बता दें कि पुणे ग्रामीण पुलिस ने एक जनवरी को भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में मिलिंद एकबोटे और संभाजी भिडे सहित 163 लोगों को नोटिस जारी किया था। कोरेगांव भीमा हिंसा मामले में आरोपी मिलिंद एकबोटे पर आरोप है कि उन्होंने कोरेगांव भीमा में 2018 में हिंसा भड़काई थी। इस मामले में पुणे ग्रामीण पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार किया था। बाद में पुणे की अदालत ने आरोपी मिलिंद एकबोटे को अप्रैल 2018 में कुछ शर्तों के आधार पर जमानत दे दी थी। जनवरी 2019 में मिलिंद एकबोटे पर लगाई गईं पाबंदिया हटा ली गई थीं।

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