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ईद के मौके पर पंजाब में बड़ा बदलाव, मुगलिया तहजीब वाले मालेरकोटला को तोहफा, साडा हक एथे रख की है जन्मस्थली

ईद के मुबारक मौके पर पंजाब के मालेरकोटला को मुबारक! यह सूबे का 23 वां जिला हो गया है। पंजाब जैसे सिख...
ईद के मौके पर पंजाब में बड़ा बदलाव, मुगलिया तहजीब वाले मालेरकोटला को तोहफा, साडा हक एथे रख की है जन्मस्थली

ईद के मुबारक मौके पर पंजाब के मालेरकोटला को मुबारक! यह सूबे का 23 वां जिला हो गया है। पंजाब जैसे सिख बाहुल्य सूबे का यह ऐसा पहला बड़ा इलाका है जिसकी 90 फीसदी से अधिक आबादी मुस्लिम है। यहां के चुने हुए जनप्रतिनिधि विधायक भी अक्सर मुस्लिम ही होते हैं, किसी बाहरी के बूते यहां से चुनकर विधानसभा जाना नामुंमकिन है। वहीं, लोकसभा के लिए लगातार दूसरी बार आम आदमी पार्टी की ओेर से चुने गए कॉमेडी स्टार भगवंत मान के संगरुर संसदीय क्षेत्र में मालेरकोटला की 65,000 मुस्लिम आबादी की भी मान की जीत में बड़ी भुमिका है। इतनी कम आबादी वाले इलाके को ईद-उल-फितर के मौके पर जिला घोषित ही नहीं बल्कि मालेरकोटला वासिंदों के लिए और भी कई सारी घोषणाएं मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिदंर सिंह ने की हैं।

शेर मोहम्मद खान के नाम पर 500 करोड़ रुपए की लागत से मालेरकोटला में एक मेडिकल कॉलेज की स्थापना की जाएगी। 12 करोड़ रुपए की लागत से लड़कियों के लिए एक और कॉलेज स्थापित किया जाएगा। एक बस स्टैंड, एक महिला थाना भी बनेगा, जिसे सिर्फ महिला कर्मचारी ही चलाएंगी। दरअसल पंजाब में डीजीपी रैंक से दो महीने पहले रिटायर हुए पूर्व आईपीसी अधिकारी मुस्तफा मोहम्मद की विधायक पत्नी रजिया सुल्तान मोलरकोटला से विधायक चुन कैप्टन अमरिंदर सिंह सरकार में दूसरी महिला केबिनेट मंत्री हैं।

बॉलीवुड के प्रसिद्ध गीतकार इरशाद कामिल की पैदाइश और उनका पुश्तैनी घर भी मालेरकोटला में है। कॉलेज के दिनों में यहीं से पढ़ाई के दौरान रचे, “ साडा हक एथे रख” जैसे गीतों ने इरशाद को बॉलीवुड की दुनियां में एक नई पहचान दी है। जिला बनने से आज एक तरह से वह हक मालेरकोटला जैसे पिछड़े इलाके को मिल गया है। 2011 की जनगणना मुताबिक पंजाब की 2.77 करोड़ आबादी में मुस्लिम सिर्फ 5.35 लाख हैं पर मालेरकोटला ही एकमात्र ऐसा शहर है जो आज भी पूरी तरह से मुगलिया संस्कृति से सराबोर है। मुगलकाल दाैरान 1657 में स्थापित मालेरकोटला को देश की आजादी के समय 1947 में पंजाब में मिला लिया गया। मालेरकोटला वो शहर है, जहां एक 60 साल पुरानी मस्जिद और तीन साल पुराने मंदिर की दीवार साझी है। यहां मुसलमान हनुमान मंदिर के बाहर प्रसाद बेचता है और एक ब्राह्मण अपनी प्रेस में रमजान के ग्रीटिंग कार्ड छापता है। मुस्लिम बहुल शहर है, लेकिन यहां आज तक कभी सांप्रदायिक दंगे नहीं हुए। बंटवारे के समय भी ऐसा कुछ नहीं हुआ। यहां मुसलमान माता की चौकी पर आते हैं और हिंदू इफ्तार के लिए शरबत तैयार करते हैं।

मालेरकोटला के नवाब शेर मोहम्मद खान ने सरहिंद के सूबेदार का विरोध करते हुए श्री गुरु गोबिंद सिंह जी के छोटे साहिबजादों के पक्ष में अपनी आवाज उठाई थी। इसके चलते पंजाब के इतिहास में मालेरकोटला की सांस्कृतिक पहचान है। नवाब शेर मुहम्मद खान ने श्री गुरु गोबिंद सिंह जी के दोनों छोटे साहिबजादों बाबा जोरावर सिंह और बाबा फतेह सिंह को जीवित दीवार में चिनवा देने के आदेश का खुलेआम विरोध किया था।

नवाब शेर मोहम्मद खान के इस बहादुरी भरे कदम के बारे में पता लगने पर दशमेश पिता श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने उन्हें आशीर्वाद दिया और मालेरकोटला की सुरक्षा का वचन दिया था। गुरु साहिब जी ने नवाब शेर मोहम्मद खान को श्री साहिब भी भेजा था। इससे पहले भी पंजाब सरकार ने जनवरी में मालेरकोटला में मुबारिक मंजिल पैलेस के अधिग्रहण, संरक्षण और उपयोग की स्वीकृति दी थी। बेगम मुनव्वर उल निसा ने प्रदेश सरकार को लिखा था कि मुबारक मंजिल पैलेस मालेरकोटला की वह इकलौती मालिक हैं और वे इस संपत्ति को प्रदेश या पर्यटन व सांस्कृतिक मामले विभाग सहित किसी भी व्यक्ति को देने के पूरे अधिकार रखती हैं। मालेरकोटला पंजाब में मुस्लिम तहजीब की एक मात्र धरोहर है जिसके जिला बनने से इसके और विकास की राह खुलेगी। 

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