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एक गांव ऐसा भी: कंक्रीट के जंगल में बसाया हरे-भरे पेड़ों का वन

नोएडा। हरे-भरे पेड़, चिड़ियों की चहचहाहट और इस झुलसाती गर्मी में पेड़ों की ठंडी छाया, वह भी नोएडा जैसे...
एक गांव ऐसा भी: कंक्रीट के जंगल में बसाया हरे-भरे पेड़ों का वन

नोएडा। हरे-भरे पेड़, चिड़ियों की चहचहाहट और इस झुलसाती गर्मी में पेड़ों की ठंडी छाया, वह भी नोएडा जैसे कंक्रीट के जंगल में। ऐसा सुनने में मजाक लगता है लेकिन यह सच है। नोएडा का सोरखा गांव एक कंक्रीट के जंगल में अलग एहसास दिलाता है।

नोएडा में पेड़ों को काटकर नए भवन बनाये जाने का कार्य काफी तेजी से बढ़ने लगा था। बड़ी-बड़ी इमारतों में रहने वाले लोगों को ऑक्सीजन की पूर्ति के लिए नोएडा प्रशासन ने एक बड़ी ऑक्सीजन की पट्टी विकसित करने की योजना तैयार की। इसमें एचसीएल ने आर्थिक मदद मुहैया कराने का संकल्प लिया। फिर पर्यवरण कर्मी पीपल बाबा के नेतृत्व में इसे विकसित करने का काम शुरू किया गया। छह साल पहले वीरान पड़े क्षेत्र में आज 70,000 पेड़ों का एक विशाल शहरी वन स्थापित हो चुका है। आसपास में बसी घनी आबादी के लिए यह वन शुद्ध हवा का अच्छा स्रोत बन चुका है। एनसीआर के लोग यहां छुट्टी के दिनों में पिकनिक पर आते हैं और पर्यावरण के बीच रहकर एन्जॉय करते हैं।

गौतम बुध्द नगर जिले के पूर्व डीएम बीएन सिंह का कहना है कि सोरखा गांव नोएडा अथॉरिटी का हिस्सा था। बाद में यह एनसीआर में आ गया। इस इलाके में 2% से भी कम हिस्से पर पेड़-पौधे थे। यहां आबदी तेजी से बढ़ने के बीच में सबसे बड़ा चुनौतीपूर्ण कार्य था डेन्स फॉरेस्ट्री के माध्यम से एक ऑक्सीजन के फैक्ट्री का विकास करना। इस महत्वपूर्ण काम में गांव के लोगों को साथ जोड़ा गया। एचसीएल की प्रोजेक्ट मैनेजर निधि से संपर्क करके उन्हें इस प्रोजेक्ट के साथ जोड़ा गया। साथ ही इसमें स्वामी प्रेम परिवर्तन उर्फ़ पीपल बाबा की इस प्रोजेक्ट में एंट्री हुई। आज इस बड़े भू-भाग पर यह जंगल मजबूत फेफड़े के रूप में विकसित हो चुका है।

कभी वीरान रही इस जगह पर जंगल के विकसित होने के बाद अब ढेर सारे कीट-पतंगों, पशु-पक्षियों का बसेरा है। ढेर सारे विदेशी पक्षी भी अब यहां पर आने लगे हैं। यहां पर विकसित हुई जैव विविधता सबका मन मोह लेती है। अब करीब 58 प्रकार के जीव इस शहरी वन की शोभा बढ़ा रहे हैं।

सोरखा का जंगल अब पूरी तरह से आत्मनिर्भर बन चुका है। शहरी वनों के विकास के शुरुआती दौर में टैंकर से पानी की आपूर्ति की जाती है, लेकिन जब पेड़ बड़े होने लगते हैं तो टैंकरों का आना जाना काफी कठिन हो जाता है। अतः पौधों की सिंचाई के लिए कृत्रिम तालाबों पर निर्भरता काफी बढ़ जाती है। पीपल बाबा बताते हैं कि जहां कहीं भी वह कृत्रिम जंगल बनाने की शुरुआत करते हैं। वहां पर सबसे ढलान वाली जगह पर तालाब का निर्माण भी करते हैं। हर वर्ष बरसात के पानी के इकट्ठा होनें से 5 से 6 सालों बाद ये कृत्रिम तालाब सालों साल पानी से भरे रहते हैं। इन तालाबों से आप जितना पानी निकालेंगे, जमीन से उतना पानी पुनः आ जायेगा। पीपल बाबा की टीम के सदस्य साहिद ने कहा कि कोरोना काल में जब पानी के टैंकर आने बंद हो गये तो जंगल के बीच स्थित इस कृत्रिम तालाब ने सोरखा के जंगल के इन पेड़ों और आस-पास के जीवों की जान बचाई थी।

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