जनगणना में आदिवासियों के लिए अलग धर्म कोड का मुद्दा झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के लिए दोनों हाथों में लड्डू जैसा है। स्वीकृति मिले तब भी न मिले तब भी। प्रस्ताव विधानसभा से सर्व सम्मत प्रस्ताव पास कराकर उन्होंने एक जंग जीत ली है। केंद्र को भेजा जा रहा है। केंद्र से रिश्तों में चल रही खटास के बीच मंजूरी के लिए वे केंद्र पर दबाव बनायेंगे और इसी बहाने देश के आदिवासियों को एकजुट करेंगे।
हिंदुओं की तरह मंदिरों में सिर नवाने, माथे पर तिलक लगाने और हाथों में बद्धी बांधने वाले हेमंत सोरेन ने दुमका उप चुनाव के समय घोषणा की कि राज्य स्थापना दिवस यानी 15 नवंबर के पूर्व वे प्रस्ताव पास कर केंद्र को भेजेंगे। आदिवासियों की बड़ी आबादी वाला दुमका उनकी खुद की छोड़ी हुई सीट थी और छोटा भाई बसंत वहां से झामुमो की टिकट पर उम्मीदवार थे। आदिवासियों को रिझाने वाला यह मजबूत चारा था। आदिवासी धर्म कोड की जमीन पहले से तैयार थी।
इधर पूरे झारखंड में इसको लेकर विभिन्न संगठनों का आंदोलन गरम था, एक प्रकार से चरम पर था। इसलिए राजनतिक दृष्टिकोण से भी मामला अनुकूल था। बसंत जीत चुके हैं और हेमंत अपनी प्रतिष्ठा बचाने में कामयाब रहे। वादे के अनुसार जनगणना में धर्म कोड के लिए 11 नवंबर को विधानसभा का विशेष सत्र बुलाया और सर्वसम्मत प्रस्ताव पास कराने में सफल रहे। सफलता इसलिए कि धुर विरोधी भाजपा का भी समर्थन मिला। भाजपा का स्टैंड अंतिम दिन तक पूरी तरह स्पष्ट नहीं था। वोटिंग की नौबत आती, विरोध का मतलब आदिवासियों का विरोध। मजबूरन भाजपा को भी समर्थन में तर्क-वितर्क के साथ हामी देनी पड़ी। खुद भाजपा के भी अनेक विधायक जनजातीय हैं ऐसे में अंदरूनी दबाव भी था। यह बात अलग है कि आरएसएस आदिवासियों को हिंदू मानती है। इसी साल के शुरू में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत रांची आये थे तो कहा था कि जनगणना के कॉलम में आदिवासी खुद को हिंदू लिखें इसके लिए व्यापक जागरूकता अभियान चलाया जायेगा। खैर, सदन में भाजपा को समर्थन करना पड़ा। झारखंड में 26 प्रतिशत से अधिक आबादी वाले आदिवासी सभी राजनीतिक दलों के लिए वोट बैंक भी है। इसे नाराज कर सत्ता का सपना किसी के लिए भी सपना है। हेमंत इस मोर्चे पर सफल रहे और विधानसभा से सर्वसम्मत प्रस्ताव पास करा लिया।
केंद्र से फिर दो-दो हाथ
कोयला खदानों की कामर्शियल माइनिंग, जीएसटी, बिजली के बकाया मद में राज्य के खाजने से केंद्र द्वारा खुद पैसे काट लिये जाने जैसे कई मुद्दे रहे जिसको लेकर केंद्र से हेमंत सरकार की टकराव चलती रही। हाल में तो जांच के लिए सीबीआइ के सीधे प्रवेश पर भी सरकार ने रोक लगा दी है। केंद्र के पास प्रस्ताव भेजने के बाद हेमंत सोरेन मंजूरी के लिए दबाव बनायेंगे। संघ का स्टैंड अलग है ऐसे में संघ को नाखुश कर केंद्र सरकार आसानी से मंजूरी दे देगी कहना कठिन है। आदिवासी और राज्यों में भी हैं और झारखंड से संख्या और वहां की आबादी के प्रतिशत, दोनों में अधिक है। जनगणना 2021 में होगी उसके लिए प्रक्रिया जल्द प्रारंभ करनी होगी, समय ज्यादा नहीं है। 2015 में सरना के नाम पर झारखंड के आदिवासियों की मांग खारिज की जा चुकी है। इस बार प्रस्ताव में सरना के साथ आदिवासी भी जुड़ा है।
हेमंत के लिए अवसर ही अवसर
हेमंत सोरेन के पिता दिशोम गुरू शिबू सोरेन हों या हेमंत आदिवासी और झारखंड की लड़ाई की सोरेन परिवार की पहचान रही है। झारखंड विधानसभा से प्रस्ताव पास होने के बाद हेमंत सोरेनअब केंद्र पर दबाव बनाने में जुटेंगे। उन्होंने कहा है कि वे इस मसले को लेकर राष्ट्रपति से मिलकर ज्ञापन सौंपेंगे और उन राज्यों जहां आदिवासियों की संख्या अधिक है के मुख्यमंत्रियों से मिलेंगे, जनजातीय सलाहकार परिषद के सदस्यों से बात करेंगे। यह भी कहा कि देश में आदिवासी समुदाय की जड़ एक है और धर्म एक सूत्र में बांधने की व्यवस्था है। यानी हेमंत की नजर पूरे देश के आदिवासियों पर है। झारखंड की पहल पर केंद्र से अलग धर्म कोड की मंजूरी मिल जाती है तो हेमंत का कद देश के आदिवासियों में बहुत बड़ा हो जायेगा। विभिन्न राज्यों से इसकी मांग उठती रही है। कद इसलिए बढ़ जायेगा क्योंकि अनेक राज्य हैं जहां आदिवासियों की जनसंख्या या प्रदेश की आबादी के हिसाब से आदिवासी जनसंख्या का प्रतिशत झारखंड की तुलना में अधिक है। छोटी आबादी वाले छोटे राज्य के नेतृत्व के लाभ का मुकुट तब हेमंत के सिर होगा। 2011 की जनगणना के अनुसार देश में लगभग 10.45 करोड़ आदिवासी हैं, कुल जनसंख्या का 8.6 प्रतिशत। वहीं झारखंड में 86 लाख और कुल आबादी का 26.2 प्रतिशत आदिवासी हैं। मध्य प्रदेश में 1.53 करोड़ आदिवासी हैं तो महाराष्ट्र में एक करोड़ से ज्यादा। छत्तीसगढ़ में 78 लाख से अधिक और वहां की जनसंख्या के हिसाब से 30 प्रतिशत। गुजरात में 14 प्रतिशत ही आदिवासी हैं मगर संख्या झारखंड से अधिक 89.17 लाख। राजस्थान में 92 लाख और ओडिशा में 95 लाख आबादी है। जाहिर है झारखंड बहुत पीछे है मगर नेतृत्व का मौका हेमंत ने झपटा है। अगर केंद्र से मंजूरी नहीं मिली तो केंद्र पर आक्रमण, राज्यों के साथ गोलबंदी के बहाने राजनीति चमकाने का हेमंत सोरेन को एक और बड़ा मौका मिल जायेगा। बहरहाल आदिवासी संगठन विधानसभा से प्रस्ताव पास होने पर सड़कों पर जश्न मना रहे हैं। कांग्रेस भी पीछे क्यों रहती, प्रदेश अध्यक्ष रामेश्वर उरांव ने कहा कि कांग्रेस ने चुनाव घोषणा पत्र में ही सरना धर्म के लिए सार्थक पहल का वादा किया था।