अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) ऋषिकेश के डायरेक्टर एवं सीईओ प्रो. रवि कांत ने अपना वह आदेश वापस ले लिया है, जिसमें विकलांग कर्मचारियों को रिटायर करने की बात कही गई थी। 9 अप्रैल 2020 के इस आदेश में कहा गया था कि फैकल्टी समेत कोई भी कर्मचारी अगर शारीरिक या मानसिक दिव्यांगता के कारण अपना कार्य करने में सक्षम नहीं है, तो उसे सीसीएस नियमों के तहत अनिवार्य रूप से रिटायर कर दिया जाएगा।
डायरेक्टर ने कहा, आरपीडी एक्ट का पालन करेगा संस्थान
नेशनल प्लेटफॉर्म फॉर द राइट्स ऑफ द डिसेबल्ड (एनपीआरडी) ने इस सिलसिले में सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय में दिव्यांग अधिकारिता विभाग की सचिव को पत्र लिखा था। एम्स के डायरेक्टर ने 4 मई को स्पष्टीकरण जारी करते हुए कहा कि यह आदेश न तो नौकरी पर रखे गए दिव्यांग कर्मचारियों पर लागू होगा, न ही काम के दौरान दिव्यांग होने वाले कर्मचारियों पर। उन्होंने यह भी कहा है कि संस्थान इस संबंध में दिव्यांग व्यक्ति अधिकार कानून, 2016 (आरपीडी एक्ट) का पालन करेगा।
सेवा के दौरान दिव्यांग हुए कर्मचारी को रिटायरमेंट तक रखने का नियम
संगठन के महासचिव मुरलीधरन ने मंत्रालय को 1 मई को भेजे पत्र में सरकार के उन नियमों का भी हवाला दिया था, जिनका यह आदेश उल्लंघन करता है। उन्होंने 4 जनवरी 2019 को अधिसूचित सेंट्रल सर्विसेज (पेंशन) अमेंडमेंट रूल्स 2018 और आरपीडी एक्ट 2016 का जिक्र किया। आरपीडी एक्ट के अनुसार, “अगर कोई कर्मचारी सेवा के दौरान दिव्यांग होता है तो कोई भी सरकारी प्रतिष्ठान उसे न तो हटाएगा और न ही उसकी रैंक कम करेगा। अगर वह दिव्यांगता के कारण पुराना काम करने लायक नहीं रह जाता है, तो उसे समान वेतनमान और सेवा लाभ के साथ दूसरा पद दिया जाएगा। अगर उसे किसी पद पर समायोजित करना संभव न हो तो उचित पद उपलब्ध होने या रिटायरमेंट की उम्र तक उसे अतिरिक्त कर्मचारी के रूप में रखा जाए।”