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अटाली की औरतें नहीं जानती कि उनके बच्चे कहां पैदा होंगे

बीस साल की सहरुमा पेट से है। नवां महीना जारी है। उसके पास न तो जच्चा-बच्चा कार्ड और न ही उसे पता है कि बच्चे की पैदाइश कहां हो सकेगी। पिछले चार महीनों से उसने डॉक्टर के यहां कोई चेकअप भी नहीं करवाया है। सहरुमा फरीदाबाद के गांव अटाली के उस अल्पसंख्यक पीड़ित समुदाय से है जिन्हें सांप्रदायिक हिंसा के चलते चार महीने पहले अपना घर और गांव छोड़ना पड़ा था। फरीदाबाद के अटाली में हालात जस के तस हैं। जिन 175 परिवारों ने गांव छोड़ा था उनके हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं। गौरतलब है कि लगभग चार महीने पहले अटाली गांव में मस्जिद बनाने के विवाद पर सांप्रदायिक हिंसा भड़क गई थी।
अटाली की औरतें नहीं जानती कि उनके बच्चे कहां पैदा होंगे

कुछ लोग बल्लभगढ़ मदरसे में रह रहे हैं और कुछ लोगों ने आसपास किराए पर मकान ले रखे हैं। ज्यादा दिक्कत गर्भवती महिलाओं की है। इनके पास इनके कार्ड नहीं हैं और यहां शहर में इन्होंने न तो किसी डॉक्टर को दिखाया है और न आंगनवाड़ी के फायदे ले पा रही हैं। बल्लभगढ़ के एक चार कमरों के मकान में चार परिवार रह रहे हैं। लाला खान, हनीफ, शब्बीर और आजाद का परिवार। घर की महिला आशा बताती है कि गांव में अच्छा लगता था। यहां एक कमरे का 2500 रुपये किराया दे रहे हैं और बिजली-पानी अलग से देना पड़ रहा है। एक कमरे में लगभग 6-8 लोगों का परिवार रह रहा है। आशा का कहना है कि गांव में रहते थे तो मर्द लोग काम पर चले जाते थे लेकिन यहां जान –पहचान न होने के कारण काम भी नहीं मिलता। मर्द सारा दिन घर पर ही रहते हैं।

 

शहनाज बताती है ‘गांव में मंहगाई खलती नहीं थी क्योंकि अपना घर था, साग-सब्जियां सस्ती हुआ करती थीं। यहां हर सब्जी 40 रुपये किलो है। दाल मंहगी है, पानी भी खरीद कर पी रहे हैं और ऊपर से कमाई है नहीं। घर में खाने वाले 5-6 लोग हैं। ’ अहम बात यह है कि स्कूल जाने वाले बच्चों का भविष्य अधर में अटका पड़ा है। इनके प्रमाणपत्र, स्कूल, वर्दी सब अटाली के सांप्रदायिक हिंसा की भेंट चढ़ गई। बेटी-पढ़ाओ-बेटी बचाओ मुहिम पर लाखों रुपये फूंक देने वाली हरियाणा सरकार तालीम से वंचित हो चुके इन बच्चों के बारे में न तो कुछ कर रही है न बात करने को तैयार है। ऑल इंडिया तंजीम-ए-इंसाफ के महामंत्री अमीक जामई के अनुसार लगभग 150 बच्चों की पढ़ाई छूट चुकी है 18 गर्भवती महिलाएं ऐसी हैं जिन्हें पता नहीं कि उनके बच्चे कहां पैदा हो पाएंगे।

 

तीस साल की रेहाना बेवा है। उसके दो बच्चे हैं। मनीषा और मनीष। दोनों का स्कूल जाना छूट गया है। रेहाना पिछले 11 सालों से अपनी मां के यहां रह रही है। बताती है कि गांव में कम से कम वह मजदूरी करने चली जाती थी लेकिन यहां तो हालात बहुत खराब हो गए हैं। अब सारी जिम्मेदारी उसकी मां पर आ गई है। रेहाना अपनी मां के साथ 4,000 रुपये किराये के कमरे में रह रही है।  अमीक का कहना है कि बीती ईद पर मुस्लिम समुदाय के लोग गांव गए थे। लगा था कि मामला सुलझ गया है लेकिन बाद में फिर से वही दबाव की राजनीति शुरू हो गई कि ये मुस्लिम लोग गांव नहीं आ सकते और न ही अटाली में मस्जिद बना सकते हैं। गांव अटाली जाने पर वहां मास्टर धर्मवीर ने बताया कि ऐसा नहीं है। वे चाहते हैं कि मुस्लिम लोग गांव आ जाएं। धर्मवीर के अनुसार जो भी हालात बने वे गांव के नौजवान तबके की वजह से बने। हालांकि मामला कई दफा उठता था लेकिन इस दफा वे अपने नौजवानों को संभाल नहीं सके। फिर भी उन्हें विश्वास है कि मामला जुलझ जाएगा।    

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