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शराब के धंधेबाजों के लिए बिहार में ‘बहार’

पटना से उमेश कुमार राय दो साल पहले अप्रैल महीने में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जब सूबे में...
शराब के धंधेबाजों के लिए बिहार में ‘बहार’

पटना से उमेश कुमार राय

दो साल पहले अप्रैल महीने में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जब सूबे में शराब पर प्रतिबंध लगाने की घोषणा की थी, तो उन्हें लगा था कि सब लोग शराब छोड़ देंगे और शराब का धंधा करनेवाले दूसरा धंधा अपना लेंगे। दूसरे राज्यों में शराबबंदी पूरी तरह फेल हो जाने के बावजूद उन्होंने न तो इसके लिए पहले से कोई योजना तैयार की और न ही इसके दुष्परिणामों पर ही गौर किया।

इसका परिणाम यह निकला कि शराब से सरकार को हर साल होनेवाली 4000 करोड की कमाई खत्म हो गई, लेकिन शराब का सुरूर उतरने की जगह बिहार के लोगों के सिर चढ़ने लगा।

नीतीश कुमार अपने कार्यक्रमों में शराबबंदी के सफल होने का राग अलाप रहे हैं, लेकिन जमीनी तस्वीर यही है कि शराब बिहार में पहले की अपेक्षा व्यस्थित तरीके से बिक रही है और खपत भी खूब हो रही है।

शराब के थोक विक्रेता से लेकर खुदरा विक्रेता और ग्राहक तक का चेन बना हुआ है, जो निर्बाध और पेशेवर तरीके से चल रहा है। खरीद-फरोख्त का जरिया बना है मोबाइल फोन। बिना मोबाइल फोन के शराब की कोई डील संभव नहीं है।

ऐसा नहीं है कि यह कोई नई बात है। व्यवस्थित तरीके से शराब बेचने की बातें पहले भी कही जा चुकी हैं और जब सरकारी अफसरों से इसका जिक्र किया जाता है, तो उनका कहना होता है कि ये सारी बातें सुनी-सुनाई हैं।

लेकिन, ऐसा नहीं है। हाजीपुर क्षेत्र में शराब का धंधा करनेवाले प्रकाश (बदला हुआ नाम) से जब इस सिलसिले में बातचीत हुई, तो उसने शराब के धंधे की सारी बारीकियों के बारे में खुलकर बताया। साथ ही उसने यह भी बताया कि उसकी तरह खुदरा विक्रेता सैकड़ों की संख्या में मौजूद हैं और बड़े आराम से घर बैठे शराब बेचकर अच्छी कमाई कर रहे हैं।

प्रकाश के पास 20 से 25 स्थायी ग्राहक हैं जो नियमित तौर पर रोज शराब खरीदते हैं। प्रकाश रोज एक पेटी शराब बेचते हैं। एक पेटी में 700 एमएल की 12 बोतलें, 375 एमएल की 24 बोतलें व 180 एमएल की 48 बोतलें आती हैं। प्रकाश कहते हैं, ‘700 एमएल की बोतल 800 रुपये में, 375 एमएल की बोतल 200 रुपये  और 180 एमएल की बोतल 200 रुपये में बेचते हैं। 

शराब की खरीद-बिक्री की सारी डील मोबाइल फोन से ही होती है। शराब के लिए कुछ कोड वर्ड भी हैं, ताकि पुलिस अगर मोबाइल पर होनेवाली बातचीत रिकॉर्ड भी कर ले, तो उसे शक न हो। मसलन 375 एमएल की बोतल खरीदनी हो, तो ग्राहक उसे अठन्नी और 180 एमएल की बोतल खरीदनी हो तो उसे चवन्नी कहता है।

प्रकाश बताते हैं, ‘मोबाइल फोन पर कभी भी शराब शब्द इस्तेमाल नहीं होता है। न ही कस्टमर की तरफ से न ही हमारी तरफ से। अगर ग्राहक को शराब लेनी होती है, तो वह कहेगा कि उसे सामान चाहिए। अगर कोई नया आदमी है या समझ लीजिए कि पुलिस का आदमी है, तो वह सीधे यह कहेगा कि शराब चाहिए। इससे हम समझ जाते हैं कि मामला गड़बड़ है और फिर रॉन्ग नंबर का हवाला देकर फोन काट देते हैं।’

खुदरा विक्रेता कभी भी नये कॉल को इंटरटेन नहीं करता है, क्योंकि इससे उन्हें संदेह हो जाता है कि हो न हो वह पुलिस का मुखबीर हो।

प्रकाश ने कहा, ‘हम नये लोगों से कभी डील नहीं करते हैं। अगर शराब खरीदने के इच्छुक व्यक्ति से मेरा सीधा परिचय नहीं है, तो उसे मेरे जान-पहचानेवाले किसी व्यक्ति का रिफरेंस देना होगा। अगर मैं आश्वस्त हो जाता हूं कि सचमुच वह मेरे किसी परिचित के जान-पहचान का है, तभी उसे शराब बेचता हूं।’

शराब की बिक्री की डील मोबाइल फोन पर हो जाने के बाद जगह तय होती है जहां शराब की डेलिवरी होनी है। ज्यादातर केसों में ग्राहक के घर तक शराब पहुंचा दी जाती है। अगर विक्रेता के पास वक्त नहीं है, तो वह ग्राहक को किसी सुनसान जगह पर बुलाता है और शराब की बोतलें पकड़ा देता है।

खुदरा विक्रेता शराब घर में छिपाकर नहीं रखते हैं, बल्कि उसे मिट्टी के नीचे डाल देते हैं कि कहीं झाड़ियों में छिपाकर रखते हैं, ताकि पुलिस अगर संदेह के आधार पर छापेमारी भी करे, तो उसे शराब न मिल सके।

दो साल पहले बिहार सरकार ने जब बिहार मद्य निषेध व उत्पाद एक्ट, 2016 लागू किया था, तो उसमें कई तरह के कड़े प्रावधान रखे गए थे। शराब बनाने, रखने, बेचने व निर्यात करनेवालों को इस अधिनियम के तहत 10 साल से लेकर उम्रकैद तक की सजा हो सकती है और एक लाख रुपये जुर्माना लगाया जा सकता है।

वहीं, अगर कोई व्यक्ति शराब पीते हुए या नशे की हालत में पकड़ा जाता है, तो उसे 5 से  7 साल तक की सजा हो सकती है। यही नहीं, 1 लाख से 7 लाख रुपये तक जुर्माना लगाया जा सकता है।

आंकड़ों पर गौर करें तो शराबबंदी क़ानून के अंतर्गत इस साल मार्च तक कुल 1 लाख 21 हज़ार 586 लोगों की ग़िरफ्तारी हुई थी. इनमें शराब तस्करों से लेकर शराब पीनेवाले व देशी शराब बनानेवाले शामिल हैं।

इसके बावजूद शराब का अवैध धंधा बिहार में खूब फल-फूल रहा है। थोक से लेकर खुदरा शराब विक्रेता तक एक-एक पेटी पर मोटी कमाई कर ले रहे हैं। प्रकाश ने बताया, ‘थोक विक्रेता से 7 हजार रुपये में एक पेटी शराब शराब खरीदते हैं। एक दिन में एक पेटी शराब खपत हो जाती है जिससे 2600 रुपये तक की कमाई हो जाती है।’

वहीं, थोक व्यापारी की बात करें, तो वे उत्तर प्रदेश, झारखंड आदि जिलों से आसानी से शराब मंगवा लेते हैं। एक थोक व्यापारी ने कहा, ‘एक पेटी शराब घर तक लाने में 4000 से 5000 रुपये खर्च हो जाते हैं। हम खुदरा व्यापारियों को 7 हजार रुपये में एक पेटी बेचते हैं।’

यहां यह भी बता दें कि जब बिहार में शराबबंदी नहीं थी, तो बाहर से आनेवाली शराब की क्वालिटी की जांच होती थी, लेकिन अब जब अवैध तरीके से शराब की सप्लाई हो रही है, तो किसी को नहीं पता कि यूपी या झारखंड से आनेवाली शराब में किस तत्व की मात्रा कितनी है।

शराब में किसी भी तत्व की मात्रा सामान्य से अधिक होना सेहत के लिए बेहद खतरनाक होता है। शराब के एक अन्य खुदरा विक्रेता से जब इस संबंध में बात हुई, तो उसने कहा कि कई बार ग्राहकों की तरफ से शिकायत मिलती है कि इस बार की शराब बहुत कड़वी थी।

ग्राहकों की इस शिकायत पर कोई कार्रवाई भी नहीं होती, क्योंकि पूरा कारोबार ही अवैध तरीके से चल रहा है, फिर शिकायत किससे की जाए। ऐसा नहीं है कि पूरे मामले से पुलिस प्रशासन अनजान है। गाहे-ब-गाहे पुलिसिया कार्रवाई होती है और शराबें भी जब्त की जाती हैं, लेकिन ‘मैनेज’ कर लिया जाता है।

वर्ष 2016 में अप्रैल से शराबबंदी शुरू होने के बाद से लेकर पिछले साल मार्च तक पुलिस ने 5,14,639 लीटर विदेशी शराब, 11,371 और 3,10,292 लीटर ठर्रा जब्त की थी। इसी तरह 2017 में भी भारी मात्रा में शराब की जब्ती हुई। इसके बावजूद शराब का अवैध धंधा करनेवालों में कोई खौफ नहीं है।

नाम न छापने की शर्त पर एक अन्य शराब कारोबारी ने कहा, ‘असल में शराब की अवैध बिक्री से बेतहाशा कमाई हो रही है। एक पेटी पर 2500 रुपये तक की कमाई कम नहीं है। अगर महीने में 30 पेटी शराब बेची जाए तो 75 हजार रुपये कमाई हो जाती है। अगर पुलिस शराब के धंधेबाज को पकड़ भी लेती है, तो कुछ ‘ले-देकर’ मामला रफा-दफा करा दिया जाता है। ऐसे में भला कोई क्यों शराब का धंधा छोड़ेगा?’

वर्ष 2015 का बिहार विधानसभा चुनाव जदयू और राजद ने साथ मिलकर लड़ा था। उस चुनावी मौसम में एक गाना बड़ा मशहूर हुआ था। इस गाने के बोल थे-बिहार में बहार है, नीतीश कुमार है। 

बिहार में बहार है या नहीं यह तो नहीं पता, लेकिन शराबबंदी के बाद शराब के धंधेबाजों के लिए ‘बहार’ जरूर आ गई है।

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