दलित समुदाय से ताल्लुक रखने वाले जीतनराम मांझी को मुख्यमंत्री बनाकर नीतीश कुमार प्रदेश में नए राजनीतिक समीकरण बनाना चाह रहे थे।
लेकिन मांझी कुछ ही समय में बागी रूख अपनाने लगे और अपने बयानों से जनता दल यूनाइटेड के नेताओं के सामने मुश्किल खड़ा करने लगे।
भाजपा की लहर कि लहर को देखते हुए मांझी का झुकाव उधर भी होने लगा था। ऐसे में पार्टी नेतृत्व ने मांझी को हटाने का मन बनाया। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद यादव ने सात फरवरी को विधायकों की बैठक बुलाई जिसमें 111 में से 97 विधायकों और 41 में से 37 विधान पार्षदों ने भाग लिया।
जबकि मांझी ने इस बैठक को ‘अनधिकृत’ बताते हुए आगामी 20 फरवरी को अपने आवास पर विधायक दल की बैठक बुलाई है। बैठक के दौरान विधायक अरूण मांझी जो कि जीतन राम मांझी के समर्थक माने जाते हैं, ने नीतीश कुमार को पार्टी विधायक दल का नेता चुने जाने का प्रस्ताव रखा जिसे सर्वसम्मति से स्वीकार कर लिया गया। इसके साथ ही उनके राज्य की बागडोर एक बार फिर संभालने का मार्ग प्रशस्त हो गया।
इससे पूर्व नीतीश कुमार समर्थक 21 मंत्रियों जिन्होंने मांझी और उनके समर्थक सात अन्य मंत्रियों के कैबिनेट में लाए गए बिहार विधानसभा को भंग करने के प्रस्ताव को खारिज कर दिया था।
नीतीश कुमार समर्थक मंत्रियों ने राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी और राज्यपाल केसरी नाथ त्रिपाठी को पत्र फैक्स कर उनसे अधिसंख्य मंत्रियों द्वारा उसे खारिज कर दिए जाने के कारण उसे स्वीकार नहीं करने का अनुरोध किया।