विरोध आंदोलन के तरीके दिनोंदिन बदलता जा रहा है और प्रदर्शनों में जनता की भारी भीड़ जुटने लगी है। विरोध के जन आंदोलन बनने से महाराष्ट्र की देवेंद्र फडणवीस सरकार सकपका गई है। कोपर्डी में जिस नाबालिग की गैंगरेप के बाद हत्या हुई थी वह मराठा समाज की थी जबकि आरोपी दलित हैं। इसलिए मराठा समाज आंदोलित हो उठा है जो दिनोंदिन भाजपा की मुश्किलें बढ़ा रहा है।
हालांकि अब तक आंदोलन का नेतृत्व न तो बड़ा मराठा नेता कर रहा है और न ही कोई राजनीतिक पार्टी। रणनीति के तहत मराठा समुदाय के लोग एक योजनाबद्ध तरीके से सड़कों पर उतर रहे हैं, जिनमें युवा, महिलाएं और युवतियां खासतौर से शामिल हो रही हैं।
एट्रोसिटी रद्द करने की मांग से शुरू हुए इस आंदोलन में अब मराठा आरक्षण की मांग भी की जाने लगी है। लिहाजा राजनीतिक जानकार इस मराठा आंदोलन की तुलना गुजरात के पटेल आंदोलन से करने लगे हैं। मराठा आंदोलन का नेतृत्व पटेल आंदोलन चलाने वाले हार्दिक पटेल जैसा युवा नहीं बल्कि रिटायर्ड पूर्व आईएएस निर्मल देशमुख कर रहे हैं।
महाराष्ट्र में करीब 32 फीसदी हिस्सेदारी वाला मराठा समाज सिर्फ संख्याबल में ही नहीं बल्कि सूबे में मजबूत राजनीतिक और आर्थिक ताकत भी है। अब तक अहमदनगर, बीड, उस्मानाबाद में मराठाओं की रैलियां निकल चुकी है। इसके साथ ही अमरावती, सतारा, पुणे, नासिक और नई मुंबई में आंदोलन की रणनीति तैयार हो चुकी है। सतारा में छत्रपति शिवाजी महाराज के वंशज उदयनराजे भोसले मराठा आंदोलन का नेतृत्व करने का ऐलान किया है। अंत में मराठा मुंबई में शक्ति प्रदर्शन करेंगे जिसमें 25 लाख लोगों की भीड़ जुटाने की तैयारी चल रही है।
मराठा आंदोलन को देखते हुए मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने पार्टी के वरिष्ठ मंत्रियों के साथ बैठक की है। राज्य सरकार ने मराठा समाज की मांगों पर गंभीरता से विचार कर उस पर अपनी सहमति भी दी है। जल्द ही समाज के नेताओं को बातचीत के लिए बुलाया जाएगा।