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झारखंड: क्या है हेमंत की मन की बात, जिसे पीएम मोदी ने नहीं सुनी तो हो गए नाराज

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की झारखंड के मुख्‍यमंत्री हेमन्‍त सोरेन से फोन पर बात और उस पर हेमन्‍त...
झारखंड: क्या है हेमंत की मन की बात, जिसे पीएम मोदी ने नहीं सुनी तो हो गए नाराज

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की झारखंड के मुख्‍यमंत्री हेमन्‍त सोरेन से फोन पर बात और उस पर हेमन्‍त सोरेन की टिप्‍पणी पर बवाल मचा रहा। हेमन्‍त सोरेन ने कह दिया कि उन्‍होंने सिर्फ मन की बात की, बेहतर होता काम की बात करते और काम की बात सुनते। ट्वीटर पर हेमन्‍त सोरेन का इतना टिप्‍पणी करना था कि ट्वीटर पर वार शुरू हो गया। उनकी टिप्‍पणी की आलोचना करने वाले भाजपा नेताओं की सोशल मीडिया पर कतार लग गई। कई दूसरे प्रदेशों के मुख्‍यमंत्री ने भी आलोचना कर दी। प्रधानमंत्री से मूल बात क्‍या हुई, हेमन्‍त सोरेन ने उसका खुलासा नहीं किया। सवाल यह भी उठा कि हेमन्‍त सोरेन के मन की बात क्‍या है।

दरअसल हेमन्‍त सोरेन की टिप्‍पणी कोई एक दिन का सवाल नहीं है। उनकी सरकार के एक साल होने पर आउटलुक से बात करते समय ही विरोधी पार्टी के शासन वाले प्रदेशों के साथ केंद्र के सौतेले व्‍यवहार को लेकर चिंता जाहिर की थी। नीतिगत मामलों को लेकर केंद्र से टकराव शुरू से चल रहा था। कोरोना संकट में जब लोगों को तड़पते देखा तो उनका रहा सहा असंतोष फट पड़ा। हेमन्‍त सोरेन नाराज होने पर भी अमूमन शालीनता के साथ शब्‍दों का इस्‍तेमाल करते हैं। कोरोना काल में जनता की परेशानी और केंद्र की उपेक्षा को उन्‍होंने अपने पार्टी महासचिव और प्रवक्‍ता सुप्रियो भट्टाचार्य के माध्‍यम से सामने रखा।

सुप्रियो ने कहा कि सीमित संसाधनों के बावजूद राज्‍य सरकार अपने स्‍तर से बेहतर प्रयास कर रही है। ऑक्‍सीजन के संकट को दूर करने के लिए संजीवनी वाहन, मरीजों को बेड आदि के लिए ऑनलाइन व्‍यवस्‍था की गई है। मुख्‍यमंत्री बेचैनी से व्‍यवस्‍था में लगे हुए हैं। रोज सौ से डेढ़ सौ अतिरिक्‍त बेड की व्‍यवस्‍था की जा रही है। मगर केंद्र झारखंड के साथ सौतेला व्‍यवहार कर रहा है। रविवार को ही केंद्र ने 500 पीएसए प्‍लांट की मंजूरी दी उसमें झारखंड को एक भी नहीं मिला। रेमडेसिविर का संकट था, बंगलादेश की कंपनी से 50 हजार वायल मंगाने की व्‍यवस्‍था की गई। सब को सहजता से वैक्‍सीजन मिल सके इसके लिए केंद्र से झारखंड ने 4.5 करोड़ वैक्‍सीन की मांग की मगर दस प्रतिशत भी नहीं मिला। सिर्फ 29.83 लाख डोज ही मिले। करीब 4 लाख 28 हजार रेमडेसिविर की मांग की गई, मिला सिर्फ 29.50 हजार।

पांच हजार वेंटिलेटर की मांग के विरुद्ध सिर्फ मिले सिर्फ 300 मिले। जबकि  500 ऑक्‍सीजन कांसंट्रेटर की मांग पर सिर्फ 100 मिले। दवाओं और दूसरे मेडिकल संसाधन की भी यही स्थिति रही। कटौती हुई। सवाल विरोधी सरकार नहीं जनता का है। यह तो ताजा मामला है। हेमन्‍त सरकार का अनुभव केंद्र के प्रति शुरू से खराब रहा। कोल ब्‍लॉक की कामर्शियल माइनिंग भी झाखण्‍ड के हितों के विपरीत थी, सुप्रीम कोट में सरकार को जाना पड़ा।

कोल कंपनियों के पास बकाया, लीज की जमीन के एवज में हजारों करोड़ का बकाया लंबे समय से है। दामोदर वैली कारपोरेशन से झारखण्‍ड को बिजली मिलती है। उसका बकाया हुआ तो किस्‍तों में करीब 22 सौ करोड़ रुपये काट लिये गये। जब कोरोना के कारण राज्‍य की माली हालत बेहतर नहीं थी। प्रधानमंत्री को पत्र लिखना बेकार गया। केंद्र के ही उपक्रम कोयला कंपनियों के पास राज्‍य सरकार का बहुत बकाया है, उसी कोयले से डीवीसी की भट्ठी जलती है मगर उसका भुगतान नहीं हो रहा है।

आधारभूत संरचना के अभाव में यहां के मेडिकल कॉलेजों में नामांकन पर प्रतिबंध लगा दिया गया जबकि झारखंड के देवघर में ही एम्‍स के साथ ऐसा नहीं हुआ। जीएसटी कंपनसेशन के मामले में भी शर्तों का पालन न करने को लेकर हेमन्‍त सोरेन आवाज उठाते रहे मगर नहीं सुनी गई। अभी लंबी लडाई के बाद जनगणना में सरना आदिवासी धर्म कोड का विधानसभा से पारित सर्वसम्‍मत प्रस्‍ताव केंद्र के पास है मगर कोई कार्रवाई नहीं हो रही है।

ये तमाम सवालात हैं जो प्रकारांतर से हेमन्‍त सोरेन के मन की बात हैं। प्रधानमंत्री, केंद्रीय मंत्री को पत्र के माध्‍यम से अपनी बात उठाते रहते हैं, पार्टी के फोरम से बात कहलाते हैं मगर इनके मन की बात सुनने वाला कोई नहीं तो इन्‍हें कहना पड़ता है कि केंद्र झारखण्‍ड से सौतेला व्‍यवहार कर रहा है। झामुमो के एक वरिष्‍ठ नेता ने कहा कि इसी तरह के अनुभवों से गुजरने के बाद जब पीड़ा चरम पर पहुंचती है तो लिखना पड़ता है प्रधानमंत्री जी सिर्फ मन की बात करने के बदले काम की बात करते, काम की बात सुनते तो बेहतर होता।

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