दरअसल, सोमवार को मेघालय के मुख्यमंत्री व कांग्रेस नेता मुकुल संगमा द्वारा पेश किए गए प्रस्ताव को विधानसभा के सभी सदस्यों का समर्थन मिला और इसे पास कर दिया गया। उन्होंने अधिसूचना को वापस लेने की मांग की है, क्योंकि इससे राज्य की अर्थव्यवस्था के साथ लोगों की खाने की आदतें प्रभावित होंगी।
इस मुद्दे को लेकर कांग्रेस सांसद मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि शुरुआत से ही सभी पूर्वोत्तर राज्य कहते आ रहे हैं कि खाने की चीजों पर कोई प्रतिबंध नहीं लगना चाहिए। किसी को क्या खाना चाहिए, क्या नहीं खाना चाहिए यह केंद्र सरकार का एजेंडा नहीं है। इसे उन्हें राज्य सरकार पर छोड़ देना चाहिए। सरकार को खाने के लिए आचार संहिता लागू नहीं करनी चाहिए।
वहीं, कांग्रेस नेता केटीएस तुलसी ने कहा कि सरकार को गायों की बजाए मनुष्यों के जीवन को महत्व देना चाहिए और लोगों के निजी जीवन में बिल्कुल भी हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।
मोदी सरकार की ओर से मई में बूचड़खानों के लिए मवेशियों की खरीद-बिक्री पर बनाए नए नियम को बीफ बैन से जोड़कर देखा जा रहा था। बीफ का मुद्दा मेघालय में इसलिए भड़का है क्योंकि मेघालय में 80 फ़ीसदी से ज़्यादा आबादी ईसाई है। वहीं करीब 89 फीसदी लोग बीफ़ का सेवन करते हैं।
गौरतलब है कि आगामी वर्ष मेघालय में विधानसभा के चुनाव हैं, जिसको देखते हुए बीफ जैसे मुद्दों पर मेघालय में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह सत्ता पाने का जो सपना देख रहे हैं उसे बड़ा झटका लगा है। कांग्रेस के इस कदम से भाजपा को अब अपनी रणनीति में बदलाव करना पड़ सकता है।