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चुनावी रणनीति/हिमाचल प्रदेश: क्या 2024 में चल पाएगा मोदी कार्ड

  “लगातार हार रही भाजपा को आगामी लोकसभा में जीत हासिल करने के लिए खोजना होगा नया मंत्र” भारतीय...
चुनावी रणनीति/हिमाचल प्रदेश: क्या 2024 में चल पाएगा मोदी कार्ड

 

“लगातार हार रही भाजपा को आगामी लोकसभा में जीत हासिल करने के लिए खोजना होगा नया मंत्र”

भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ कर्नाटक विधानसभा चुनाव का जनादेश आने से दस दिन पहले ही कांग्रेस के लिए खुशी की एक वजह हिमाचल ने दे दी थी। पांच महीने पहले राज्य की सत्ता में आई कांग्रेस पार्टी ने नगर निकाय चुनाव में शानदार जीत हासिल की थी। दिसंबर 2022 में राज्य का मुख्यमंत्री बनने के बाद सुखविंदर सिंह सुक्खू की यह पहली चुनावी परीक्षा थी। नगर निकाय चुनावों में उन्हें लगभग उन्हीं कारणों से मतदाताओं का समर्थन मिला, जिन कारणों ने कांग्रेस पार्टी और सुखविंदर सिंह सुक्खू को राज्य विधानसभा चुनावों में जीत दिलवाई थी। नगर निकाय के कुल 34 सदस्यों वाले सदन में कांग्रेस ने 24 वार्डों में प्रभावशाली जीत हासिल की, जिसमें कांग्रेस के टिकट पर 14 महिलाएं भी जीतीं जो एक रिकॉर्ड है। शिमला की इस जीत को भुनाने में कांग्रेस पार्टी ने जरा देरी नहीं की। पार्टी ने तुरंत ही कर्नाटक के चुनाव में सुक्खू को पार्टी का स्टार प्रचारक बना दिया। कर्नाटक में सत्ता आने पर बजरंग दल पर प्रतिबंध लगाने के वादे के बाद पार्टी ने सुक्खू को भाजपा के गढ़ हुबली में तैनात किया।

भाजपा ने 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में सभी चार सीटों पर सबसे अधिक अंतर के साथ जीत हासिल की। ऐसे में सवाल है कि क्या कांग्रेस आने वाले लोकसभा चुनाव में हिमाचल में अपने जीत के अभियान को कायम रख पाएगी।

चाहे जो हो लेकिन फिलहाल तो सुक्खू और उनकी टीम का मनोबल ऊंचा है। उन्हें उम्मीद है कि कांग्रेस अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव में बहुत अच्छा प्रदर्शन करेगी क्योंकि भारतीय जनता पार्टी कई राज्यों में पहले से ही मुश्किलों का सामना करना कर रही है।

सुक्खू ने कहा, “शिमला नगर निगम में जीत हमारी नीतियों की जीत है और यह हमारे सुशासन को दिया गया समर्थन है। पिछले दो वर्षों में भारतीय जनता पार्टी की यह लगातार तीसरी हार है। पार्टी की हार का 2021 से शुरू हुआ सिलसिला जारी है। 2021 के उपचुनावों में हार का जो सिलसिला शुरू हुआ वह मंडी लोकसभा उपचुनाव, उसके बाद 2022 के विधानसभा चुनाव और अब नगर निकाय के चुनाव तक चला आ रहा है। और कांग्रेस पार्टी लगातार शानदार जीत हासिल करती आ रही है। बावजूद इसके भाजपा हमारे चुनावी वादों को पूरा नहीं करने के नाम पर हमारे खिलाफ लगातार दुष्प्रचार कर रही है।”

हार से बौखलाई भारतीय जनता पार्टी भविष्यवाणी कर रही है कि सुक्खू सरकार अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाएगी और भाजपा जल्द ही राज्य की सत्ता में वापसी करेगी। भाजपा नेताओं का कहना है कि चुनाव में की गई 10 गारंटियों को लेकर जनता के बीच कांग्रेस के खिलाफ जनाक्रोश धीरे-धीरे बढ़ रहा है।

मंडी उपचुनाव में हार और उसके बाद विधानसभा में करारी हार का 2024 के चुनाव पर मजबूत असर होगा, यह भाजपा अच्छे से जान रही है। यही वजह है कि आगामी लोकसभा चुनाव को देखते हुए पार्टी अभी से लोकसभा चुनाव की तैयारियों में जुट गई है। राज्य भाजपा में फिलहाल संगठनात्मक फेरबदल की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। शिमला (आरक्षित) से मौजूदा लोकसभा सदस्य सुरेश कश्यप को राज्य भाजपा अध्यक्ष के पद से हटा दिया गया है। उनकी जगह पार्टी के वरिष्ठ नेता और पांच बार के विधायक डॉ. राजीव बिंदल को वापस लाया गया है। कोविड-19 के दौरान चिकित्सा खरीद में विवाद के कारण वे अपना पिछला कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए थे। हालांकि बाद में उन्हें राज्य सतर्कता और भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो से क्लीन चिट मिल गई थी।

कांग्रेस पार्टी और उसके विधायकों के बीच लगातार असंतोष बढ़ रहा है। सरकार का ग्राफ लगातार गिर रहा है। जयराम ठाकुर, पूर्व मुख्यमंत्री, भाजपा नेता

कांग्रेस पार्टी और उसके विधायकों के बीच लगातार असंतोष बढ़ रहा है। सरकार का ग्राफ लगातार गिर रहा है। - जयराम ठाकुर, पूर्व मुख्यमंत्री, भाजपा नेता

इसी क्रम में भाजपा के महासचिव (संगठन) पवन राणा को राज्य से बाहर भेज दिया गया है। वे आरएसएस से पार्टी में आए थे और उन्हें राज्य विधानसभा चुनावों में पार्टी की हार पर हमलों का शिकार होना पड़ा था। विशेष रूप से टिकटों के गलत वितरण और पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल को दरकिनार करने के लिए पार्टी के भीतर ही उनके खिलाफ बहुत गुस्सा था। उनकी जगह आए सिद्धार्थ पहले ही कमान संभाल चुके हैं।

भाजपा के मुख्य प्रवक्ता रणधीर शर्मा को नहीं लगता कि 2021 में चार उपचुनावों, राज्य विधानसभा चुनावों और अब नगर निगम में भाजपा की हार के लिए जिम्मेदार कारक 2024 के चुनावों में पार्टी को प्रभावित कर पाएंगे। उलटे वे ही सवाल करते हैं, “क्या आपने कई राज्यों में पहले के चुनाव परिणाम नहीं देखे, जहां लोगों ने राज्य विधानसभा चुनावों, स्थानीय निकायों और वास्तव में लोकसभा में अलग-अलग मतदान किया था।”

पूर्व मुख्यमंत्री जय राम ठाकुर कांग्रेस के भीतर असंतोष की बात उठाते हैं। वे कहते हैं, “कांग्रेस पार्टी और उसके विधायकों के भीतर असंतोष बढ़ रहा है। वे अपने किए वादों पर लोगों का सामना नहीं कर पा रहे हैं। मैंने पहले ऐसी कोई सरकार नहीं देखी जिसका ग्राफ इतनी जल्दी गिर गया हो।”

लेकिन हकीकत यह है कि मुख्यमंत्री सुक्खू ने राज्य में कांग्रेस पार्टी को रणनीतिक रूप से अपने पूरे नियंत्रण में ले लिया है। इसके चलते पीसीसी अध्यक्ष और सांसद प्रतिभा सिंह अपने दिवंगत पति पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह की राजनीतिक विरासत को बचाने के बारे में चिंतित हैं। उनके बेटे विक्रमादित्य सिंह भले ही सुक्खू की कैबिनेट में मंत्री हैं, फिर भी वे परेशान हैं।

इस वजह से ऐसा लगता है कि पार्टी के भीतर सुक्खू के लिए आने वाले दिन कठिन हो सकते हैं। क्योंकि उन्होंने सभी शक्तियों को अपने कार्यालय में केंद्रीकृत कर दिया है। इससे कैबिनेट मंत्रियों की ताकत न के बराबर रह गई है। स्थिति यह है कि सुक्खू के आधा दर्जन ओएसडी और सलाहकार विधायकों और मंत्रियों से आज की तारीख में कहीं ज्यादा ताकतवर हैं।

उधर, कांग्रेस के जिन विधायकों को कैबिनेट में जगह नहीं मिल सकी थी, वे सुक्खू के खिलाफ एकजुट हो रहे हैं। इनमें से कुछ लोग लगातार आलाकमान से मिल रहे हैं। कुछ और नेता, पूर्व विधायक, पूर्व मंत्री, जो चुनाव हार गए या टिकट से वंचित रह गए, वे अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के पदों के लिए कतार में हैं, लेकिन मुख्यमंत्री उन्हें घास नहीं डाल रहे हैं।

राज्य का सबसे बड़ा जिला कांगड़ा, जिसे राज्य की राजनीतिक राजधानी माना जाता है भी, सुक्खू के ताज में कांटा साबित हो सकता है। क्योंकि सरकार ने इस जिले को उचित प्रतिनिधित्व नहीं दिया है। कुल 15 में से 10 कांग्रेसी विधायकों को चुनने के बावजूद कांगड़ा से पार्टी के पास सिर्फ एक कैबिनेट मंत्री है। इसके उलट शिमला ने सात विधायकों को चुना और उसके तीन कैबिनेट मंत्री हैं। यह असंतुलन असंतोष का विषय बन गया है।

सवाल यह है कि कांग्रेस को मिला ताजा चुनावी लाभ 2024 के लोकसभा चुनाव में शिमला के पार और सुक्खू के सुशासन के नारे से परे कांग्रेस की मदद कैसे करेगा। दूसरी ओर, भाजपा को भी इस पहाड़ी राज्य में मोदी के करिश्मे से परे देखना होगा और आने वाले महीनों में अपने पक्ष में एक मजबूत समर्थन तैयार करना होगा क्योंकि फिलहाल सरकारी कर्मचारी, सेब किसान और युवा सहित कई वर्ग भाजपा से खुश नहीं हैं।

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