विधानसभा चुनाव नजदीक आने के साथ ही राजस्थान में भारतीय जनता पार्टी के विधायकों के बिगड़े बोल सामने आते जा रहे हैं। दो दिन पहले ही हनुमान जी को आदिवासियों का पहला नेता करार देने वाले भाजपा के विधायक ज्ञानदेव आहूजा का विवाद थमा ही नहीं था कि दूसरे ही दिन सांगोद से भाजपा के विधायक हीरालाल नागर ने यह कहकर नया बखेड़ा खड़ा कर दिया कि राजस्थान में किसान मुआवजे के लिए आत्महत्या करते हैं।
भाजपा के सांगोद से विधायक हीरालाल नागर ने कहा है कि किसान कर्जे के कारण नहीं, बल्कि मुआवजे के लिए सुसाइड कर रहे हैं। नागर का वीडियो वायरल होने के बाद पार्टी सकते है, वहीं कृषिमंत्री ने नागर के वीडियो को ही झूठा करार देते हुए मीडिया पर इसका ठीकरा फोड़ दिया। नागर का वायरल वीडियो मरते किसानों की लाशों पर नमक छिड़कने का काम कर रहा है। कृषिमंत्री सैनी ने तो यहां तक कह दिया है कि लहसुन के दाम नहीं मिलने के कारण मरने वाला किसान था ही नहीं। सैनी का दावा भी जोरदार है, उनका कहना है कि मरने वाले के नाम एक इंच भी जमीन नहीं थी, वह साझे में जमीन लेकर खेती कर रहा था।
राजस्थान के दो मंत्रियों में विरोधाभास
किसानों की आत्महत्या के मामले में सरकार के ही दो मंत्री आमने-सामने हो गए हैं। कृषि मंत्री प्रभुलाल सैनी ने कहा है कि राज्य की पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार के शासनकाल में 152 किसानों ने आत्महत्या की थी, इसलिए वर्तमान सरकार पर आरोप लगाने से पहले कांग्रेस पार्टी को श्वेत पत्र जारी करना चाहिए। लेकिन करीब सप्ताह भर पहले ही कांग्रेस के कार्यकाल को भाजपा सरकार में ही गृहमंत्री गुलाबचंद कटारिया ने किसानों के लिए अच्छा करार देते हुए कहा था कि तब एक भी किसान ने सुसाइड नहीं किया।
एक तरफ राजस्थान की सरकार किसानों के 50-50 हजार तक का कर्ज माफ करना की प्रक्रिया शुरू कर चुकी है, वहीं दूसरी तरफ भाजपा के ही मंत्रियो-विधायकों के यह बड़बोलेपन वाले बोल आने वाले विधानसभा चुनाव के वक्त पार्टी को परेशानी में डाल सकते हैं।
एक ओर कर्जे से परेशान मजबूत कहे जाने वाले किसान आत्महत्या के लिए मजबूर है, वहीं दूसरी तरफ नेताओं के बयानों ने उनके घावों पर नमक छिड़कने का काम किया है।
चुनाव का खेल शुरू हो चुका है
जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आ रहे हैं, वैसे-वैसे राजनीतिक दलों को सबसे बड़े वोट बैंक यानी किसानों की याद आने लगी है। हालांकि, सर्वविदित है कि यह याद सिर्फ कुछ दिनों की होती है। नवंबर-दिसंबर में चुनाव सम्पन्न होने के साथ ही फिर से पांच महीनों के लिए किसानों का मुद्दा खत्म हो जाएगा। यही वजह है किसानों की समस्या कई दशकों से जस की तस बनी हुई है। जय जवान, जय किसान का यह नारा किसानों की अहमियत दर्शाता है, मगर आजादी के करीब 72 साल बाद भी आज किसानों के हालात इस नारे पर भी सवाल खड़े कर रहे हैं। दरअसल, जब भी चुनाव आते है राजनीतिक दल खुद को किसान हितैषी बताने का कोई मौका नही चूकते हैं। कांग्रेस पार्टी इन दिनों किसानों के मामलों को लेकर भाजपा सरकार पर लगातार हमला बोल रही है। राजस्थान में किसान आत्महत्या कर रहे हैं, वहीं भाजपा दावा कर रही है कि पहली बार किसानों का न केवल ऋण माफ कर रहे हैं बल्कि किसानों की आय दोगुना कर रहे हैं।
5 किसानों ने इसी साल किया सुसाइड
राजस्थान की बात करें तो मंत्री सैनी जहां 152 किसानों की आत्महत्सा कांग्रेस शासनकाल में होने की बात कह रहे हैं, वहीं अपनी सरकार में केवल 3 किसानों के मरने का दावा करते हैं, लेकिन असलियत यह है कि अकेले हाडौती क्षेत्र में इस साल के पांच में 5 किसान सुसाइड कर चुके हैं।
राजस्थान में 68 लाख खातेदार किसान हैं
राजस्थान सरकार ने बजट सत्र में प्रत्येक किसान का 50-50 हजार रुपए तक का कर्ज माफ करने का ऐलान किया था, जिसकी शुरुआत बीते दिनों राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने जयपुर दौरे के दौरान कर दी थी। राजस्थान में 68 लाख किसान खातेदार हैं। हर किसान पर औसतन 70 हजार रुपए का कर्ज है। यह कर्ज माफ करने पर राज्य सरकार पर करीब 8 हजार करोड़ का आर्थिक भार पड़ेगा। जबकि राज्य सरकार के खजाने में आज की तारीख में केवल 2 हजार करोड़ रुपए हैं। सरसों, लहसुन, चने की समर्थन मूल्य पर खरीद नहीं हो रही है, जिसके चलते किसान अपनी फल-सब्जी सड़क पर फेंक रहे हैं।
आज भी टमाटर का भाव किसान को मंडी में एक रुपए किलो मिल रहा है। फिलहाल एक क्विंटल चने पर करीब 1200 रुपये का किसान को घाटा हो रहा है। किसान लगातार आत्महत्या कर रहे हैं। प्राकृतिक आपदा से फसल तबाह हो रही है। सरकार घोषणा करती है मगर सहायता नाकाफी साबित हो रही है। तमाम दावों के बाद भी प्रधानमंत्री फसल योजना का किसान को लाभ नहीं मिल रहा है। किसानों के साथ सौतेला व्यवहार सरकारों का शौक बन गया है।
59 लाख करोड़ माफ किया, किसान को केवल 70 हजार करोड़
किसान नेता रामपाल जाट का कहना है कि केंद्र सरकार ने 2004-05 से 2017-18 तक कॉरपोरेट जगत का करीब 59 लाख करोड़ रुपये का कर्ज माफ किया है। दूसरी ओर, किसानों को इस दौरान 2008-09 में केवल 70 हजार करोड़ की छूट दी गई थी। जाट का कहना है कि स्वामीनाथन रिपोर्ट अभी तक लागू नहीं होने दी। राजनीतिक दलों ने किसान का भला तो नहीं किया, मगर बांट जरूर दिया है। आज किसान को सरकारों ने जाति, सम्प्रदाय के आधार पर बांट दिया है, जिसके कारण किसान एकजुट होकर अपने हकों की लड़ाई भी नहीं लड़ पा रहा है। जाहिर सी बात है राजनीतिक दल भले ही किसान के कल्याण के दावे करते हों, मगर जब तक किसान कर्ज में डूबकर आत्महत्या करता रहेगा, तब तक बार-बार सरकार के दावों पर सवाल खड़े होंगे।