योगी आदित्यनाथ सरकार की महत्वाकांक्षी फसली ऋण योजना ने उत्तर प्रदेश के वित्तीय गणित को बिगाड़ दिया है।
36,000 करोड़ की इस योजना में केंद्र सरकार के किसी भी तरह की आर्थिक मदद से इनकार के बाद, योगी सरकार नें अपने संसाधनों से ही इस मद में बजट का इंतेजाम किया था और बाद में इसका व्यापक प्रचार प्रसार कर के वाहवाही भी लूटी। परन्तु इस योजना का साया कई अन्य विभागों के बजट और उनकी योजनायों पर पड़ने लगा है।
योगी सरकार ने अब सातवें वेतन आयोग के बकाए के भुगतान को अगले वित्तीय वर्ष 2018-19 पर टाल दिया है। जबकि बकाए के प्रथम किश्त का भुगतान इसी साल होना निश्चित था।
पिछली अखिलेश यादव सरकार ने दिसंबर 2016 में सातवें वेतन आयोग की संस्तुतियों को मंजूरी दी थी और जनवरी-दिसम्बर 2016 के बकाये के 50 प्रतिशत राशि को अगले यानी 2017-18 वित्तीय वर्ष में भुगतान हेतु फैसला लिया था। बाकी का 50 प्रतिशत का भुगतान 2018-19 में होना तय हुआ था।
योगी सरकार ने भी बकाए की प्रथम किश्त करीब 7000 करोड़ का भुगतान इसी साल करने का मन बनाया था। परन्तु सरकारी खजाने की हालत नें इस फैसला पर पानी फेर दिया है।
वित्त विभाग के सचिव मुकेश मित्तल नें हाल ही में एक शासनादेश जारी किया कि प्रदेश सरकार ने बकाए की पहली किश्त का भुगतान अगले 2018-19 वर्ष व बाकी के बकाये का भुगतान 2019-20 में करने का फैसला लिया है।
वित्त विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार, फसली ऋण योजना के मद में किये गए भारी भरकम प्रतिपूर्ति एवं जीएसटी में अनुमान के अनुरूप टैक्स संग्रह ना होने के चलते प्रदेश सरकार को यह फैसला लेना पड़ा।
इसके अलावा सत्तारूढ़ दल के कई अन्य चुनावी वादों को भी योगी सरकार परवान चढ़ाने में अभी तक विफल रही है जिसमें छात्रों को मुफ्त लैपटॉप एवं डाटा कनेक्शन का वादा शामिल है।