रामगोपाल जाट
राजस्थान में ऑनलाइन टैक्सी कंपनी ओला-उबर के खिलाफ उनके ड्राइवरों ने मोर्चा खोल दिया है। पीपल्स ग्रीन पार्टी के वाहन चालक संगठन और राजस्थान वाहन चालक संगठन ने आरोप लगाया है कि दोनों कंपनियां अपने काम के लिए ड्राइवरों का शोषण कर रही है जिससे उनका टैक्सी चलाना दूभर हो गया है। एक तरह से ड्राइवर कंपनियों के गुलाम बनकर काम कर रहे हैं। इसके विरोध में कंपनियों के राज्यभर के 27सौ ड्राइवरों ने पहली अप्रैल को काम बंद रखने की चेतावनी दी है।
पीपल्स ग्रीन पार्टी के अध्यक्ष डॉक्टर सुधांशु ने कहा है कि ड्राइवरों को दोनों कंपनी गुमराह कर रहीं हैं। उन्होंने ड्राइवरों को इस मुसीबत से निकालने के लिए राज्य सरकार के दखल की मांग की है। उनका कहना है कि राज्य का परिवहन विभाग और पुलिस प्रशासन इन कंपनियों का फेवर करते हैं। ड्राइवरों के साथ सौतेला व्यवहार हो रहा है। उन्होंने मांग की है कि कंपनियां शुद्ध मुनाफा 25 फीसदी के बजाय अधिकतम 10 फीसदी करें तथा ड्राइवरों की अन्य समस्याओं के लिए तुरंत बातचीत शुरू करें। पीपल्स ग्रीन की ट्रेड यूनियन की ओर से कहा गया है कि विज्ञापन द्वारा पहले बड़े-बड़े लालच दिए गए और पचास हजार से एक लाख रुपये तक कमाने के सपने दिखाए गए लेकिन अब किश्त चुकाने के लिए भी कर्ज लेना पड़ रहा है।
डॉक्टर सुधांशु ने बताया कि ड्राइवर्स को शुरू में लगा कि जिंदगी को नई उड़ान मिल रही है। ऐसे में ड्राइवर्स ने योजना को हाथों-हाथ लिया और रोजी-रोटी में जुट गए। इधर कंपनी ने कभी विज्ञापन बंद ही नहीं किया। धीरे-धीरे ज्यादा से ज्यादा ड्राइवर इस योजना में आते रहे। पता ही नहीं चला कि कब पार्टनर, एंटरप्रेन्योर और स्वाभिमानी ड्राइवर एक भीड़ का हिस्सा बन गए और कंपनी के गुलाम बन गए। अब कंपनी के पास एक की जरूरत के बदले दो गाड़ी है, जो छोड़ना चाहे छोड़ जाए और जिसकी गरज हो वह चुपचाप काम करे, अन्यथा परिणाम भुगतने को तैयार रहे। उन्होंने बताया कि अधिक गाड़ियां, कम सवारियां, कम भाड़ा और कंपनी का ज्यादा मुनाफा।
राजस्थान वाहन चालक संगठन के प्रदेश अध्यक्ष योगेश कुंतल ने बताया कि कंपनी करीब-करीब और औसतन 25 फीसदी किराए का हिस्सा काटकर के ड्राइवरों को पैसा देती है। इससे हर ड्राइवर की चौथाई जेब कट जाती है। ऐसे में वह इसे नीति मानकर स्वीकार करता है। परिवहन विभाग बिना जरूरत को देखे रोज नए परमिट जारी कर रहा है। न बिजनेस, न स्टैंड, न पार्किंग है, बस है तो सिर्फ ड्राइवर की हार।
राजस्थान वाहन चालक संगठन के प्रदेश संयोजक अंकुश पुरोहित ने बताया कि बाजार की वर्तमान प्रतिस्पर्धा में अधिक व्यवसाय के लालच में यह कंपनियां किराए को कम से कम कर देती हैं, जिससे सवारी आकर्षित हो सके। दूसरी तरफ गाड़ी का पेट्रोल और मेंटीनेंस भी ड्राइवर के जिम्मे है और बैंक कर्ज की किश्त देनी भी जरूरी है। कोई विकल्प न होने से ड्राइवर अब लागत से कम पर भी राइड करने पर विवश हैं और उनकी आवाज सुनने को कोई तैयार नहीं है। जरा सा भी विरोध करने पर पुलिस कार्रवाई की धमकी दी जाती है। तब बेचारा ड्राइवर करे भी तो क्या करे।
वाहन चालक संगठन के प्रवक्ता मुकेश साहू ने बताया कि दूसरी और कंपनी ने एक बिजनेस Android एप्लीकेशन बनाई है, जिसे विज्ञापन तथा बैंक सपोर्ट देती है। इसके बदले हर बिल में चौथा हिस्सा काट लिया जाता है। साथ ही, यह कंपनियां बाजार में यह भी माहौल बनाए रखती हैं कि इन्हें सैकड़ों करोड़ रुपये का घाटा हो रहा है और यह फंडिंग के दम पर जिंदा हैं, जबकि कंपनियां ड्राइवरों का खून चूस रही हैं। इस संबंध में यूनियन के प्रतिनिधियों ने दोनों कंपनियों, राज्य परिवहन विभाग, पुलिस विभाग तथा समाज कल्याण विभाग को मांग पत्र दिया है और मांगें नहीं मानने पर काम बंद करने की चेतावनी दी है।