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यूपी के बुंदेलखंड में भूख से हो रही मौतेः योगेंद्र यादव

उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड में सात जिलों में हुए सर्वेक्षण में सामने आया है कि यहां के 38 फीसदी गांवों में भूख से एक मौत हुई है। जबकि राज्य सरकार इसे सिरे से खारिज कर रही है। यही नहीं जिस गाय को बचाने के लिए देश में बवाल हो रहा है, बुंदलेखंड के 41 फीसदी लोग गरीबी और भुखमरी के चलते अपनी गायों को छोड़ रहे हैं। यह खुलासा स्वराज अभियान के संयोजक योगेंद्र यादव ने किया। स्वराज अभियान की ओर से बुंदेलखंड के सात जिलों की 27 तहसीलों के 108 गांवों में यह सर्वेक्षण किया गया है।
यूपी के बुंदेलखंड में भूख से हो रही मौतेः योगेंद्र यादव

सर्वेक्षण में खुलासा

इस सर्वेक्षण में देश के जाने माने अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज, रितीका खेड़ा, संजय सिंह (परमार्थ, औरई) और योगेंद्र यादव समेत कई स्वयं सेवी शामिल थे। सर्वेक्षण में सामने आया है कि बुंदेलखंड में लगातार तीसरे साल से चल रहा सूखा अब अकाल की स्थिति में है। बीते आठ महीनों में यहां के 53 फीसदी गरीब परिवारों ने दाल नहीं खाई है। 69 फीसदी ने दूध नहीं पिया है। हर पांचवा परिवार कम से कम एक दिन भूखा सोया है। 38 फीसदी गांव से इस होली के बाद भूख से मौत की खबरें आई हैं। होली के बाद 60 फीसदी परिवारों में गेंहूं, चावल, मोटे अनाज या आलू की जगह फिकारा की रोटी खाई है। फिकारा एक प्रकार की स्थानीय घास है। होली से लेकर अभी तक 40 फीसदी परिवारों ने अपने पशु बेच दिए जबकि 27 फीसदी लोगों ने अपनी जमीन बेच दी या उसे गिरवी रखा। चारे की कमी के कारण 36 फीसदी गांव में 100 से ज्यादा गाय-भैंस छोड़ने को मजबूर हुए।

 

वजह

फसलों को हुए नुकसान की वजह पानी की कमी, पानी को संरक्षित करके न रखना, रोजगार के अवसरों की कमी देखने में आया। इन वजहों से बहुत गरीब परिवारों में अब भुखमरी की नौबत आ सकती है। गौरतलब है कि इस दफा तीसरे साल बुंदेलखंड में सूखा पड़ा है।

 

सर्वेक्षण का पैटर्न    

इसमें 27 तहसीलों के 108 गांव लिए गए। सर्वे पूरी तरह से लोगों से बातचीत पर आधारित है। कुल 1206 परिवारों जिनमें 399 सबसे गरीब परिवारों का इंटरव्यू लिया गया। दशहरा से दिवाली के बीच किए गए इस सर्वे के लिए स्वराज अभियान और बुंदलेखंड आपदा राहत मंच के कार्यकर्ताओं ने गांव-गांव जाकर सूखे के असर का जायजा लिया।

 

कौन-कौन सी फसलें प्रभावित

बुंदेलखंड में खरीफ की फसल लगभग बरबाद हो गई है। ज्वार, बाजरा, मूंग और सोयाबीन उगाने वाले 90 फीसदी से अधिक परिवारों ने फसल बरबाद होने की पुष्टि की है। इसी प्रकार तिल-61 फीसदी, अरहर-84 फीसदी, उड़द-68 फीसदी परिवारों ने बरबाद होने की बात बताई। सूखे के चलते पानी का संकट बढ़ रहा है। दो-तिहाई गांव में पिछले साल की तुलना में घरेलू कां के पानी की कमी आई है, आधे से ज्यादा गांवों में पीने का पानी प्रदूषित हुआ है। दो-तिहाई गांवों में पानी की वजह से झगड़े के समाचार हैं। एक-तिहाई सरकारी हैंड पंप खराब पड़े हैं।

 

चिंताजनक संकेत

चिंताजनक संकेतों में भुखमरी और कुपोषण के संकेत शामिल हैं। बीते एक महीने के खानपान के बारे में पूछने पर पता लगा कि एक औसत परिवार को महीने में सिर्फ 13 दिन सब्जी खाने को मिली। परिवार में बच्चों और बूढ़ों को सिर्फ 6 दिन दूध नसीब हुआ और 4 दिन दाल। गरीब परिवारों में आधे से ज्यादा ने एक दिन भी दाल नहीं खाई थी और 69 फीसदी ने दूध नहीं पिया था। गरीब परिवारों में 19 फीसदी को एक महीने में कम से कम एक दिन भूखा सोना पड़ा। यही नहीं सामान्य परिवारों में भी दाल और दूध का उपयोग कम हो गया है। यहां के 79 फीसदी परिवारों ने बीते कुछ महीनों में कभी न कभी रोटी या चावल सिर्फ नमक के साथ खाया है। 17 फीसदी परिवार घास की रोटी (फिकारा) खाने पर मजबूर हुए।

योगेंद्र यादव ने कहा कि इसे दूर करने के लिए राज्य सरकार को तुरंत कदम उठाने होंगे। इस मौके पर वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि समाजवादी नेता मुलायम सिंह अपनी जन्मदिन मनान  में व्यस्त हैं तो प्रधानमंत्री विदेशी दौरों में। अगर तुरंत किसानों की हालत को गंभीरता से नहीं लिया गया तो सके परिणाम बहुत ज्यादा बुरे हो सकते हैं।

 

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