उत्तराखंड की सिलक्यारा सुरंग में फंसे उत्तर प्रदेश के श्रावस्ती जिले के छह मजदूर करीब 17 दिन बाद मंगलवार रात को सुरंग से बाहर निकल आये। अपने अपनों की खैरियत को लेकर शुरू से ही हर पल बेचैनी में गुजार रहे परिजन और ग्रामीण उनके सही-सलामत बाहर आने की खबर सुनकर झूम उठे और उसी समय से गांव में शुरू हुआ जश्न बुधवार सुबह तक जारी रहा।
सिलक्यारा सुरंग में श्रावस्ती के राम मिलन और अंकित समेत छह श्रमिक फंसे थे। राम मिलन के बेटे संदीप कुमार ने बुधवार को ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया कि मंगलवार रात जैसे ही सुरंग में फंसे श्रमिकों के बाहर निकलने की पहली खबर मिली, वैसे ही ‘सब ठीक हो गया’ बोलते हुए लोग घरों से बाहर निकल आए। देर रात तक आतिशबाजी हुई, लोगों ने दीये जलाकर और एक दूसरे को मिठाई खिलाकर दीपावली मनाई।
कुमार ने बताया कि गांव में जबदहा बाबा और प्रभुनाथ बाबा के दो मंदिर हैं। रात में मंदिरों के कपाट बंद थे तो लोग बाहर से ही माथा टेकते हुए और बुधवार सुबह मंदिरों के कपाट खुलते ही भगवान के चरणों में शीश नवाकर धन्यवाद देते दिखाई दिए।
सुरंग में फंसे रहे श्रावस्ती के सभी श्रमिक सुरक्षित बताये जाते हैं और वे इस वक्त उत्तराखंड के अस्थायी शिविर चिकित्सालय में हैं। उनके परिवारों ने केंद्र, उत्तराखण्ड और उत्तर प्रदेश सरकार की सराहना करते हुए उन्हें धन्यवाद दिया है।
उत्तरकाशी से 800 किलोमीटर दूर नेपाल सीमा पर मौजूद श्रावस्ती के मोतीपुर कला गांव में सत्रह दिनों से आशा और निराशा के माहौल से टूट से चुके श्रमिकों के परिजन टीवी और सोशल मीडिया पर निरंतर आ रहे सकारात्मक संकेतों के आधार पर अच्छे परिणाम की उम्मीद लगाए थे।
कुमार ने बताया कि मंगलवार शाम से जैसे-जैसे बचाव अभियान की सफलता के संकेत आ रहे थे और सुरंग के बाहर लोगों की भीड़ बढ़ रही थी वैसा ही कुछ माहौल गांव में भी था। आसपास रहने वाले रिश्तेदार और अन्य लोग खासतौर पर थारू बिरादरी के लोग श्रमिकों के घरों में टीवी स्क्रीन पर नजरें गड़ाए बैठे थे।
उत्तर प्रदेश सरकार के राज्य समन्वयक अरून मिश्र ने बुधवार को सुबह उत्तरकाशी से फोन पर ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया, ‘हम लोग इस समय उत्तरकाशी हवाई पट्टी के नजदीक चिन्यालीसौड़ नामक जगह पर सरकार द्वारा बनाए गए अस्थाई अस्पताल में मौजूद हैं। यहां भर्ती उत्तर प्रदेश के आठों श्रमिक पूरी तरह से स्वस्थ हैं। सभी श्रमिकों को आज यहां से ऋषिकेश स्थित एम्स में ले जाया जाएगा। वहां इन्हें मानसिक रोग विभाग में भर्ती कराकर इनकी मनोवैज्ञानिक जांच होगी। संभवतः बृहस्पतिवार को उन्हें अस्पताल से छुट्टी दे दी जाएगी।’
मिश्र ने बताया कि पिछले 17 दिनों में सुरंग के भीतर उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर का रहने वाला श्रमिक अखिलेश सबसे ज्यादा सक्रिय था। वह बाहर से दिए जा रहे निर्देशों के अनुसार, सभी श्रमिकों को योगासन कराता था। लखीमपुर का मंजीत जब बाहर निकला तो उसके पिता उससे लिपटकर रोने लगे। मंजीत के पिता को रोने से मना किया गया तो बोले ‘साहब! अभी तक हम नहीं रोए थे लेकिन अब आंसू नहीं रूक रहे।’ उन्होंने बताया कि श्रावस्ती के सभी छह श्रमिक पूरी तरह स्वस्थ हैं, सभी अपने पैरों पर चलकर बाहर निकले थे और अब वे जल्दी घर वापस जाना चाहते हैं।
मिश्र ने बताया कि बचाव अभियान समाप्त होने के बाद उन्होंने श्रावस्ती के श्रमिक राम मिलन से बात की तो उसने कहा, ‘साहब, हमें लाग कि हम दूसर जिंदगी पाए गएन।’ उन्होंने बताया, ”बचाव अभियान के दौरान फोन पर हमारी रोज किसी ना किसी श्रमिक से बात होती थी। सुरंग में फंसे श्रावस्ती के श्रमिक अंकित से एक बार जब हमने कहा कि ‘हिम्मत बनाए रखना’ तो अंकित का जवाब था कि ‘हिम्मत के बल पर ही तो हम इतने दिनों से जिंदा हैं।’
फिलहाल श्रावस्ती के मोतीपुर कला गांव में जश्न और उल्लास का माहौल कायम है। ग्रामीणों का कहना है कि जब उनके परिवारजन वापस लौटेंगे तो हम एक बार फिर दीए, आतिशबाजी और मिठाइयों के साथ दीवाली मनाएंगे।
उत्तराखंड के उत्तरकाशी में गत 12 नवंबर को यमुनोत्री मार्ग पर सुरंग में कार्य होने के दौरान मलबा गिरने से सुरंग बंद हो जाने के चलते 41 मजदूर फंस गये थे। करीब 17 दिन तक चले बचाव अभियान के बाद मंगलवार रात मजदूरों को बाहर निकाला जा सका।