बीते दिनों राजस्थान के शेखावाटी अंचल सहित 14 जिलों में कर्जमाफी के लिए बहुत बड़े स्तर पर किसान आंदोलन हुआ। किसानों ने उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र की तर्ज पर अपना कर्ज माफ करने के लिए पूरे शेखावाटी को बंद कर दिया। जिसके बाद सरकार ने वार्ता कर किसानों के 50 हजार रुपये तक के ऋण माफ करने के लिए कमेटी बनाने का आश्वासन दिया है।
किसानों की यह कोई पहली और आखिरी समस्या नहीं है जिस पर सरकार के साथ संघर्ष हुआ है। राज्य में लगातार किसान सरकार के खिलाफ होते जा रहे हैं। कभी कर्ज माफी तो कभी मुआवजे के लिए किसानों का हमेशा सरकार से टकराव जारी रहता है।
आज तक आपने तरह तरह के आंदोलन देखे होंगे, लेकिन पहली बार इस तरह का आंदोलन हुआ है, जिसमें जमीन बचाने के लिए किसान पांच दिन से अपनी ही जमीन के अंदर गड़े हुए हैं। सरकार हमेशा की तरह बातचीत कर हल निकालने की बातें कर रही है, तो किसान अपना घर-बार, काम-धंधा छोड़कर जमीन के अंदर गड़े हुए हैं। करीब 1500 किसान परिवार अपनी कुछ बीघा जमीन बचाने के लिए खड्डों में समाए हुए हैं। सरकार के कारिंदे केवल ए.सी. कमरों में बैठककर बात कर रहे हैं, समाधान का मार्ग आज पांच दिन बीतने के बाद भी प्रशस्त नहीं हो पाया है।
ऐसा भी नहीं है कि यह आंदोलन किसी दूर दराज के गांव या कस्बे में चल रहा है, जहां पर सरकार की नजर ही नहीं पड़ती है। अपनी एक से डेढ़ बीघा जमीन बचाने के लिए जुटे कृषकों का यह आंदोलन प्रदेश की राजधानी जयपुर में जारी है। सरकार ने इन किसानों की जमीन अधिग्रहीत कर ली है, लेकिन किसानों ने यह कहकर मुआवजा लेने से इनकार कर दिया कि जयपुर विकास प्राधिकरण द्वारा अधिग्रहीत
की गई उनकी जमीन की यह प्रक्रिया नियमानुसार नहीं हुई थी।
की गई उनकी जमीन की यह प्रक्रिया नियमानुसार नहीं हुई थी।
7 साल से जारी है किसानों का यह संघर्ष
वर्ष 2010 की बात है, जब जेडीए ने नींदड़ गांव की 1350 बीघा जमीन को अधिग्रहीत करने का नोटिस जारी किया। किसानों ने इस अधिग्रहण्ा का विरोध किया, लेकिन उनकी एक नहीं सुनी गई और 2013 में जमीन को एक्वायर करने का नोटिफिकेशन जारी कर दिया। तब किसानों ने आंदोलन शुरू किया, राजस्थान विधानसभा का घेराव भी किया। इस दौरान कई किसानों को गिरफ्तार भी किया गया, जिनके केस आज तक बदस्तूर जारी है।
साल 2013 में राजस्थान में विधानसभा चुनाव के समय बीजेपी ने नींदड़ की अधिग्रहीत जमीन किसानों को वापस लौटाने का वादा किया, लेकिन इस सरकार का गठन हुए करीब 4 साल गुजर चुके हैं, बावजूद इसके आजतक जमीन की आपाप्ति को निरस्त नहीं किया गया, बल्कि जेडीए उस जमीन पर कब्जा लेने पहुंच गया।
सरकारी जमीन तो महज 70 बीघा है
जेडीए ने यहां पर जो 1350 बीघा जमीन एक्वायर कर रखी है, उसको सरकारी जमीन के साथ जुड़ी हुई होने के आधार पर की है। नियमानुसार सरकारी जमीन से जुड़ी हुई किसी भी भूमि के टुकड़े का सरकारी योजना के विस्तार के लिए एक्वायर किया जा सकता है, बशर्ते वह टुकड़ा सरकारी जमीन से छोटा या उसके बराबर होना चाहिए। नींदड़ में जिस जमीन को जेडीए ने अधिग्रहीत किया है उसमें सरकारी जमीन केवल 70 बीघा है, जो कि नियमानुसार कम से कम 700 बीघा होनी चाहिए। इस अधिग्रहीत की गई कुल भूमि में 150 बीघा मंदिर माफी है। जो किसानों की जमीन है उसमें से 274 बीघा जमीन वह है जिसमें निजी आवासीय कॉलोनियां बसी हुई हैं, जहां पर 1000 से ज्यादा परिवार रहते हैं।
किसानों के पास मौजूद 725 बीघा जमीन में करीब 1500 किसान परिवार रह रहे हैं। जेडीए ने जिस आधार पर सर्वे कर इस जमीन को एक्वायर किया, वह बरसों पुराना नियम है। ताजा सर्वे की मांग कर रहे किसानों का कहना है कि जो सर्वे किया गया वह उनके बाप-दादाओं के समय का है। अभी उनके एक परिवार के करीब एक से डेढ़ बीघा जमीन ही हिस्से-बटे में आती है। करीब 13000 लोगों की बस्ती इस जमीन पर बसी हुई है।
जेडीए को मोटे मुनाफे का है लालच
अब बात करते हैं जेडीए द्वारा अधिग्रहीत किये जाने की। जिस जमीन पर जेडीए रेजिडेंशियल कॉलोनी बसाना चाहता है उस पर पहले से 13 हजार लोगों का अर्द शहर बसा हुआ है। जेडीए इस जमीन को सस्ते दामों में एक्वायर कर करीब 1000 करोड़ रुपये का मोटा माल कूटना चाहता है। इसी चांदी की कुटाई के चलते जेडीए आवाप्त की गई जमीन का दुबारा से सर्वे नहीं करवाना चाहता है। आज तक सरकार से नींदड़ बचाओ संघर्ष समीति की चार बार बात हो चुकी है। किसानों के इस संघर्ष में भागीदार बने हुए राजस्थान विवि के पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष और संघर्ष समिति के संयोजक डॉ. नगेंद्र सिंह शेखावत का कहना है कि हम जमीन की आवाप्ति का विरोध नहीं कर रहे, हम चाहते हैं कि केवल इस जमीन का दुबारा सर्वे हो जाए।
पांच दिन से जमीन में गड़े हुए हैं किसान
एक तरफ सरकार बातचीत का नाटक खेल रही है, वहीं दूसरी तरफ मौके पर किसानों ने अपनी ही जमीन में गड्ढे खोदकर समाए हुए हैं। यहां पर आदमी, औरतें और उनके बच्चे बीते 5 दिन से गड्ढों में गड़े हुए हैं। किसानों का साफ मत है कि सरकार पहले यह जांच ले कि सर्वे सही हुआ है या नहीं? इस तरह का आंदोलन पहले कभी राजस्थान की धरती पर नहीं हुआ है। पिछले दिनों भी राजस्थान के किसानों की सरकार के साथ लड़ाई हो चुकी है। किसान कहते हैं कि जमीन में हम गढ़े हुए हैं, लेकिन ऐसा नहीं हो कि अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में सरकार ही जमीन में गढ़ जाए।