हर मानसून में यमुना में बाढ़ से विस्थापित लोगों के लिए, अस्थायी आश्रय स्थल रीत न बन जाए, उपाय सोचने होंगे
हर रोज 900 रुपये कमाने वाले दिहाड़ी राजमिस्त्री अजय (25), अब काम पर नहीं जा पा रहे हैं। फिलहाल वह मयूर विहार फेज वन मेट्रो स्टेशन के नीचे सरकार के बनाए राहत शिविरों में से एक में रह रहे हैं। यहां सफेद तंबू की लंबी कतारे हैं, जहां उनके जैसे बहुत से लोग हैं। अजय बताते हैं, ‘‘जब हमने अपना घर खो दिया है, मैं काम के बारे में कैसे सोच सकता हूं? मैंने कमाने के बजाय अपने परिवार के साथ रहना चुना और इसकी मुझे कीमत चुकानी पड़ रही है।’’ यमुना के बढ़ते जलस्तर के कारण जब लोगों को इसके किनारे बने अपने अस्थायी घरों को छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा, तब ये शिविर बनाए गए। राहत शिविर में रहने वाले अधिकांश मजदूर हैं या घरेलू सहायक का काम करते हैं।
आम तौर पर भीड़भाड़ वाले लोहे के पुल पर एक तरफ यातायात रुक गया है। करीब 10 किलोमीटर दूर इस पुल को यमुना के उफान के चलते एकतरफ से बंद कर दिया गया है।
वजीराबाद और हथिनीकुंड बैराजों से भारी मात्रा में पानी छोड़े जाने के कारण, दिल्ली में यमुना नदी इस साल पहली बार 206 मीटर के स्तर को पार कर गई। उसी दिन, दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने यमुना किनारे प्रभावित इलाकों का निरीक्षण किया और राहत शिविरों में रह रहे परिवारों से मुलाकात की थी। 2023 में भी यमुना का जलस्तर 208.66 मीटर तक बढ़ गया था। इस कारण हमेशा की तरह पानी निचले इलाकों में भर गया था और हजारों लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया गया था।
साउथ एशिया नेटवर्क ऑन डैम्स, रिवर्स ऐंड पीपल (एसएएनडीआरपी) ने 2023 की बाढ़ का विश्लेषण किया था। उसके अनुसार, 2024 की एक रिपोर्ट में चेतावनी दी गई थी कि शहर 2023 की बाढ़ के बाद से ही उबर नहीं पाया है। एसएएनडीआरपी ने 2023 की बाढ़ के पीछे तीन मुख्य कारणों की पहचान की थी। पहली, 9-13 जुलाई के बीच पांच दिनों तक हुई भारी बारिश, दूसरा, हथिनीकुंड, वजीराबाद और ओखला बैराजों से निकलने वाले पानी के गलत आंकड़े और तीसरा, यमुना के बाढ़ क्षेत्र में भारी अतिक्रमण और कीचड़ का जमाव।
इसके अलावा, जल शक्ति मंत्रालय द्वारा गठित और केंद्रीय जल आयोग के नेतृत्व में यमुना नदी के संयुक्त बाढ़ प्रबंधन अध्ययन (2024) में पाया गया कि 2023 में पांच दिन की कुल जमा वर्षा 1978 की तुलना में 24 से 43 प्रतिशत अधिक थी। इस कारण पुरानी दिल्ली रेलवे ब्रिज पर यमुना का जलस्तर 208.66 मीटर तक पहुंच गया था। समिति ने बाढ़ की 500 साल तक की वापसी अवधि, नदी की वहन क्षमता और बैराजों की कार्यप्रणाली की जांच की थी। इससे निष्कर्ष निकला कि अतिक्रमण से जल जमाव की समस्या ज्यादा बढ़ जाती है इसलिए वहां से लोगों को हटाने, गेटों के बेहतर संचालन और मजबूत संस्थागत तंत्र की सिफारिश की गई।
लेकिन जैसे-जैसे मानसून की बारिश के साथ यमुना का जलस्तर बढ़ता है और इसके किनारे बसे लगभग 10,000 लोग विस्थापित होते हैं, यह सवाल उठता है कि निचले इलाकों से लोगों को निकालना हर साल की बात क्यों बन गई है। पिछली सरकारों ने क्या उपाय किए थे? क्या वे पर्याप्त थे और अगले साल ऐसी स्थिति दोबारा न आए, इसके लिए मौजूदा सरकार क्या कदम उठाएगी?