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अटाली में हिंसा से पलायन को मजबूर अल्‍पसंख्‍यक

देश के अल्पसंख्यकों को वे स्पष्ट संदेश देना चाहते हैं। इसके लिए तरीके अलग-अलग अपनाए जा रहे हैं। निशाने पर उनका धर्म है और हमले लगातार उनकी लगातार धार्मिक संस्थाओं पर हो रहे हैं। खान-पान, रहन सहन, पहनावे पर बहुसंख्यकवाद का आतंकी डंडा बज रहा है। दोषियों के खिलाफ सख्त निर्णायक कार्रवाई की कोई नजीर नहीं दिखाई दे रही। लिहाजा हमलावरों के मंसूबे परवान चढ़े हुए हैं। देश की राजधानी दिल्ली से महज 30-40 किलोमीटर दूर हरियाणा के बल्लभगढ़ में हुई सांप्रदायिक हिंसा की वारदात में जिस तरह से एकतरफा मुसलमानों को निशाने पर लिया गया, उनके घरों में आग लगाई गई, पुलिस की तैनाती के बीच कुल्हाड़ी से 60 वर्षीय हसन मोहम्मद पर हमला किया गया, उससे साफ है कि नफरत का यह चक्र लंबा चलेगा। अल्पसंख्यकों को सबक सिखाने की मानसिकता जोरों पर है।
अटाली में हिंसा से पलायन को मजबूर अल्‍पसंख्‍यक

यह घटना देश में कई अन्य जगहों पर हाल के महीनों में हुई सांप्रदायिक हिंसा को ही प्रतिबिंबित करती हैं। यह भी कोई संयोग नहीं कि कमोबेश ज्यादातर घटनाएं निजोयित रूप से अंजाम दी गई हैं। हरियाणा के फरीदाबाद में बल्लभगढ़ के निकट अटाली गांव में 25 मई शाम हुई महज एज घंटे की सांप्रदायिक हिंसा के बाद गांव से कई मुसलमान परिवार पलायन कर गए हैं। हिंसा का सबब बनी एक निर्माणाधीन मसजिद, जिस पर पिछले पांच सालों से विवाद चल रहा था और हाल ही में अदालत ने इसके निर्माण की अनुमति दी थी। मस्जिद का निर्माण शुरू होते ही तनाव फैला और इसमें आग लगा दी गई, कई घरों को भी फूंक डाला गया और लोगों को अपना सामान छोड़कर भागना पड़ा। गांव छोड़कर भागे ज्यादातर लोग कह रहे हैं कि उनके लिए वापस अपने घरों को लौटना निकट भविष्य में मुमकिन नहीं लगता। जान बचाने के खयाल से लोग इतने आनन-फानन में घर छोड़कर भागे कि वे अपने घरों को ताला तक न लगा पाए। घरों में पंखे तक चलते रह गए और बाद में पुलिस वालों ने जाकर पंखे बंद किए। दंगाइयों की हरकतों के चिह्न भी इलाके में सब तरफ बिखरे पड़े थे—सड़कों पर हमले में इस्तेमाल किए गए ईंट-पत्थर बिखरे पड़े थे, कहीं जला दिए गए वाहनों के खाली ढांचे खड़े रह गए थे तो कहीं घरों की दीवारें आग से काली पड़ गई थीं।

 

अटाली गांव की जिस निर्माणाधीन मसजिद को लेकर सारा विवाद था, उसकी तरफ जाने वाली गली में दोनों तरफ छोटी-छोटी दुकानें हैं। जिनमें से सिर्फ एक मुसलमान की थी और उसी को आग लगाई गई। पास के 17 मुसलमानों के घरों में आग लगा दी गई। खबर है कि करीब गांव के अधिकांश मुसलमान घर छोड़कर भागे हुए है। हिंसा और आंतक के इस राज के पीछे मानवाधिकार संगठन जनहस्तक्षेप की जांट रिपोर्ट ने पुलिस प्रशान की असंवेदनशीलता को एक बड़ा कारण बताया। इस रिपोर्ट में यह सवाल उठाया गया है कि जब गांव में पहले से तनाव था, जिसकी खबर स्थानीय प्रशासन को थी, तब कैसे यह वारदात हुई। मुख्य घटना के बाद भी, गांव में पुलिस की मौजूदगी के बीच किस तरह से दंगाइयों ने मुसलमानों पर हमले किए, किस तरह से उनके गोदाम जलाए। राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग की टीम जरूर गई, लेकिन समय रहते कोई दखल करने में पहले ही की तरफ असफल रही। जिस तरह से गांव में आतंक का राज अभी भी कायम है, उसकी आंच पूरे हरियाणा में पहुंच रही है। हिंदू-मुसलमानों के बीच लगातार दरार को बढ़ाने के सुनियोजित मंसूबे का ही शिकार हुआ हरियाणा का अटाली गांव।

 

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भेदभाव की मारक दीवार

 धर्म-जाति-लिंग और नस्ल के आधार पर भेदभाव करने की इजाजत देश का संविधान नहीं देता लेकिन यह भेदभाव खुलेआम हो रहे हैं। तमाम मामलों में थोड़ी देर के हंगामे के बाद इंसाफ दूर की कौड़ी ही बनी रहती है। गुजरात की मिस्बाह कादरी को मुंबई के बडाला में फ्लैट देने से इसलिए मना कर दिया गया क्योंकि वह मुस्लिम है। इसकी शिकायत जब उसने की तो देश भर में हंगामा मचा। इसकी शिकायत राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग में करने वाले वकील और सामाजिक कार्यकर्ता शहजाद पूनावाला का कहना है कि मुसलमानों के खिलाफ नफरत लगातार बढ़ रही है, अब लोग शिकायत कर रहे हैं तो विकास का सच्चा चेहरा बेपर्दा हो रहा है। इससे पहले मुंबई में ही एक मुसलमान एमबीए युवक जीशान खान को हीरे का निर्यात करने वाली कंपनी हरि कृष्णा एक्सपोर्ट्स द्वारा मुस्लिम होने की वजह से नौकरी न दिए जाने पर हंगामा मचा था। धर्म के आधार पर भेदभाव के ये अपवादस्वरूप मामले नहीं है। इन नौजवानों ने अपने साथ हुए अन्याय को उजागर किया तो मुसलमानों के खिलाफ नफरत की मानसिकता उजागर हुई। गुजरात के वडोदरा शहर में मुसलमानों को हिंदू संभ्रात इलाकों में रहने से वंचित करने का मामला सहित अनेक मसले उठ रहे हैं। इस तरह का भेदभाव जिस कदर बढ़ रहा है, वह अल्पसंख्यकों में वतन में बेवतनी के अहसास को भर रहा है।

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