पंजाब में हालात सामान्य नहीं हैं‚ इसकी पुष्टि कई घटनाएं कर रही थीं। यूपीए सरकार के समय खुफिया एजेंसियों की इस बारे में रिपोर्ट के बाद राज्य के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल को दिल्ली तलब भी किया गया था। नॉर्थ ब्लॉक स्थित गृह मंत्रालय में इस बाबत हुई उच्चस्तरीय बैठक में बादल को पूरी स्थिति से अवगत भी करवा दिया गया था। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने स्वयं बादल से इस बारे में बात की थी। वर्ष 2013 में पंजाब के फतेहगढ़ साहिब में पांच आतंकियों को गिरफ्तार किया गया। वर्ष 2014 में थाईलैंड से पकड़े गए खालिस्तान लिब्रेशन फोर्स के चीफ हरमिंदर सिंह मिंटू से भी पुलिस को पुख्ता जानकारियां मिली थीं। मिंटू का पंजाब में बड़ा नेटवर्क काम कर रहा था।
हालात यहां तक पहुंच गए कि राजनीतिक स्तर पर बातचीत और पहल जरूरी हो गई लेकिन जमीनी स्तर पर कुछ नहीं किया गया। खुफिया विभाग के सूत्रों के मुताबिक विदेशों में बैठे खालिस्तान समर्थक लोगों द्वारा कट्टरपंथियों को उकसाने के कई मामले संज्ञान में आए। सरकार ने इसपर चौकसी बरतने की बजाय लगातार ऐसी घटनाएं हो जाने दीं जिन्होंने आग में घी का काम किया। बीते वर्ष शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) की ओर से ऑपरेशन ब्लू स्टार में मारे गए आतंकवादियों के मेमोरियल को हरी झंडी देना, आतंकी गतिविधियों में संलिप्त रहे आतंकियों को देश की दूसरी जेलों से पंजाब ले जाना आदि।
पंजाब में खालिस्तानी उग्रवाद फिर से सुगबुगा रहा है। बीते दिनों जम्मू में हुई हिंसा इसकी ताजा गवाह है। जम्मू जैसी चिनगारियां अब लपटें बन उठने लगी हैं और अभी तक गुरदासपुर में हुए आतंकी हमले में नौ जाने लील ली हैं। गौरतलब है कि जम्मू में ब्लू स्टार ऑपरेशन के जिम्मेदार जरनैल सिंह भिंडरावाले के पोस्टर उतारने और पुलिसिया हिंसा में एक सिख युवक की मौत का मसला इतना बड़ा हो गया था कि पूरे राज्य में हिंसा फैल गई थी। उस समय भी यही कहा जा रहा था कि हिंसा की ये लपटें पंजाब तक नहीं पहुंचनी चाहिए क्योंकि वहां तो आग लगने के लिए पहले से बारूद तैयार है।
सरकारें स्मारक बनवाती रहीं और आतंकवाद से जुड़े परिवारों को सम्मानित करने की राजनीति करती रहीं और आतंकी 25 साल बाद अस्सी के दशक की खौफनाक यादें ताजा कर पंजाब की सड़कों पर बेकसूर लोगों का खून बहाने में सफल रहे।