भाषा के मुताबिक चुनाव के बाद मानसिक थकान से उबरने के लिए शर्मिला आज सुबह इस छोटे से जनजातीय गांव में पहुंची हैं। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि वह मानवाधिकार के लिए अपनी लड़ाई जारी रखेंगी और लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा करती रहेंगी।
उनसे जुड़े एक करीबी सूत्र ने बताया कि वह यहां अट्टापड्डी में करीब एक महीने रहेंगी। यह केरल की बड़ी जनजातीय बस्ती है।
शर्मिला यहां तमिलनाडु के कोयंबतूर से होते हुए आई हैं और उनकी केरल की यह पहली यात्रा है।
मानवाधिकार कार्यकर्ता से जब चुनावी हार के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा, राजनीतिक क्षेत्र में कुछ भी रचनात्मक और पारदर्शी व्यवस्था देखने को नहीं मिलेगी, क्योंकि चुनाव पैसे और बाहुबल पर आधारित है।
शर्मिला आफ्सपा कानून के खिलाफ 16 वर्ष तक अनशन पर रहीं। वह मणिपुर के थाउबुल विधानसभा से मुख्यमंत्री ओकराम इबोबी सिंह के खिलाफ चुनाव मैदान में थीं लेकिन सिर्फ 90 वोट ही हासिल कर सकीं।
उन्होंने कहा कि वह चुनावी मैदान में वोट बैंक के लिए नहीं थीं। उन्होंने कहा कि वह अपनी लड़ाई नहीं रोकेंगी।
शर्मिला ने यह भी कहा कि वह केरल आकर खुश हैं क्योंकि आफ्सपा के खिलाफ लड़ाई के दैारान यहां से उन्हें काफी समर्थन मिला था।
मानवाधिकार कार्यकर्ता ने यह भी कहा कि वह जनजातीय लोगों की समस्याओं को जानने के लिए इस अवसर का लाभ उठायेंगी।
गौरतलब है कि हाल के वर्षों में अट्टापड्डी में बड़े पैमाने पर नवजात बच्चों की मौत होने की खबर आई है।
एजेंसी