पंजाब प्रदूषण रोकथाम बोर्ड के चेयरमैन प्रो. एस.एस. मरवाहा ने दिल्ली के प्रदूषण के लिए पंजाब को जि़म्मेदार ठहराने के दावों को दलीलों सहित नकारते कहा कि दिल्ली के प्रदूषण में वहाँ के अंदरूनी कारकों का ही योगदान है, जिसका उच्च स्तरीय वैज्ञानिक अध्ययन करवाना अति ज़रूरी है।
पत्रकार वार्ता के दौरान चेयरमैन मरवाहा ने कहा कि जब धान के सीजन में पंजाब के प्रमुख शहरों का वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) हरियाणा के दिल्ली के साथ लगते प्रमुख शहरों की अपेक्षा बहुत कम है तो उस समय पंजाब के किसानों पर दिल्ली के प्रदूषण का दोष लगाना गलत है। उन्होंने कहा कि प्रदूषण के मुख्य कारकों पीएम-10 और पीएम-2.5 (धूल कण) क्रमवार 25 से 30 किलोमीटर और 100 से 150 किलोमीटर की दूरी ही वायु में तय कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि मिसाल के तौर पर पटियाला के धूल कण अम्बाला तक तो पहुँच नहीं सकते तो फिर यह कैसे कहा जा सकता है कि पराली का धुआँ दिल्ली के प्रदूषण के लिए जि़म्मेदार है।
मरवाहा ने इस अवसर पर तथ्यों को पेश करते हुए बताया कि पंजाब के प्रमुख शहरों अमृतसर, जालंधर, लुधियाना, खन्ना, मंडी गोबिन्दगढ़ और पटियाला की तुलना में सोनीपत, पानीपत, करनाल और जींद के वायु गुणवत्ता सूचकांक का स्तर बहुत ही खऱाब है जबकि पंजाब में पराली की संभाल के सीजन के दौरान यह सूचकांक संतोषजनक से मध्यम है। इससे भलीभांति अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि पंजाब को बिना वजह ही दिल्ली के प्रदूषण का दोषी बनाया जा रहा है।
उन्होंने सीजन के निपटारे के बाद के महीनों दिसंबर, जनवरी और फरवरी का विशेष हवाला देते हुए कहा कि दिल्ली और इसके आसपास के इलाकों में इन महीनों के दौरान पाए जाते प्रदूषण का किसको दोषी माना जायेगा, क्योंकि उस समय तो पंजाब में पराली को आग लगने वाली कोई घटना नहीं हो रही होती।
मरवाहा ने कहा कि धूलकणों की पीएम-2.5 श्रेणी का अप्रैल 2019 और 2020 के तुलनात्मक अध्ययन से दिल्ली की वायु को प्रदूषित करने वाले अंदरूनी कारकों का पता लगाया जा सकता है, क्योंकि लॉकडाउन के दौरान भी दिल्ली का वायु गुणवत्ता सूचकांक कोई ज़्यादा संतोषजनक नहीं पाया गया। उन्होंने साथ ही जि़क्र किया कि धूल कणों की श्रेणी पीएम-10 की दिल्ली के अलग-अलग स्थानों पर अक्तूबर 2020 की घनत्व को यदि पढ़ा जाये तो इससे स्पष्ट हो जायेगा कि दिल्ली के प्रदूषण में पंजाब का योगदान बिल्कुल नहीं है।
चेयरमैन मरवाहा ने बताया कि पंजाब प्रदूषण रोकथाम बोर्ड की तरफ से धान की पराली और अवशेष को आग लगाने से रोकने के लिए किये जा रहे यत्नों के अंतर्गत जहाँ जागरूकता को बढ़ाया जा रहा है, वहीं एनएसएस वॉलंटियरों के द्वारा कुछ चुनिंदा किसानों के खेतों में सूक्ष्म जैविक तकनीकों के द्वारा पराली के खेत में ही निपटारे का तजुर्बा किया जा रहा है जिसके लिए एक वॉलंटियर पूरे 45 दिन की इस प्रक्रिया के दौरान नजऱ रख रहा है। इसके अलावा पंजाब सरकार की तरफ से स्वस्थानी प्रबंधन के अंतर्गत किसानों को पिछले साल तक 52000 मशीनरी उपलब्ध करवाई गई और इस साल 23000 पराली प्रबंधन यंत्र सब्सिडी पर मुहैया करवाए जा रहे हैं।
उन्होंने बताया कि पिछले साल चाहे पराली को आग लगाने की घटनाएँ साल 2018 से संख्या में अधिक थीं परंतु क्षेत्रफल के पक्ष से 10 से 12 प्रतिशत कम थीं। इसी तरह इस साल जब 148 लाख मीट्रिक टन धान संभाला जा चुका है तो अब तक की पराली को आग लगाने की घटनाएँ पिछले साल आज के दिन तक संभाले गए 114 मीट्रिक टन के मुकाबले कम हैं। उन्होंने बताया कि पंजाब प्रदूषण रोकथाम बोर्ड भविष्य में इस बात की भी कोशिश कर रहा है कि धूल कणों की बहुत ही हल्की श्रेणी पीएम-1 के दिल्ली और पंजाब में अध्ययन की कोशिश को अमली रूप दिया जा सके।