राज्यपाल रमेश बैस ने हेमन्त सरकार को फिर झटका दिया है। मानसून सत्र में पास 'भीड़-हिंसा एवं भीड़ लिंचिंग निवारण विधेयक 2021' को आपत्तियों के साथ राज्य सरकार को वापस कर दिया है। इसके पहले ट्राइबल यूनिवर्सिटी विधेयक को भी अपनी आ पत्तियों के साथ वापस कर दिया था। दोनों विधेयकों की वापसी में एक समानता जरूर है कि दोनों विधेयक के हिंदी और अंग्रेजी प्रारूप में फर्क था। वहीं मॉब लिंचिंग विधेयक में भीड़ की परिभाषा पर भी राजभवन को आपत्ति है।
सूत्रों के अनुसार राज्यपाल ने विधि विशेषज्ञों से परामर्श के बाद मॉब लिंचिंग विधेयक को वापस करने का फैसला किया है। राजभवन ने कहा है कि मॉब लिंचिंग विधेयक की धारा 2(vi) में भीड़ की दी गई परिभाषा को फिर से परिभाषित करने की जरूरत है। यह सुपरिभाषित कानूनी शब्दावली के अनुरू नहीं है। दो या दो से अधिक व्यक्तियों के समूह को अशांत भीड़ नहीं कहा जा सकता। भीड़ उन लोगों की बड़ी गुस्सैल और उच्छृंखल भीड़ होती है जो अक्सर बेकाबू या हिंसक होते हैं। राज्य सरकार को फिर से भीड़ को परिभाषित करने पर विचार करने को कहा गया है। जहां तक हिंदी और अंग्रेजी प्रारूप का सवाल है, अंग्रेजी के प्रारूप में गवाह संरक्षण योजना का जिक्र है मगर हिंदी संस्करण में नहीं है। ट्राइबल यूनिवर्सिटी विधेयक में भी इसी तरह का फर्क था। इससे यह भी जाहिर होता है कि विधेयक का प्रारूप तैयार करने और अनुवाद करने वालों की अच्छी टीम सरकार के पास नहीं है। जिसकी वजह से सरकार को फजीहत का सामना करना पड़ा है।
मालूम हो कि झारखंड के पहले मणिपुर, राजस्थान और पश्चिम बंगाल मॉब लिंचिंग के संबंधित कानून बना चुके हैं। ट्राइबल यूनिवर्सिटी विधेयक हो या मॉब लिंचिंग निवारण विधेयक दोनों हेमन्त सरकार के लिए माइलेज लेने वाला था। झारखंड का पहला ट्राइबल यूनिवर्सिटी होता मगर जरा सी चूक के कारण मामला फंस गया है। विधानसभा में विधेयक पेश होने पर भाजपा ने इसे तुष्टिकरण वाला बताते हुए कड़ा विरोध जताया था। दो लोगों को भीड़ बताने पर भी सवाल किया था। तब संसदीय कार्य मंत्री आलमगीर आलम ने दलील दी थी कि सुप्रीम कोर्ट का यह कहना था। भाजपा का विरोध था कि तब तो घरेलू विवाद होने पर भी यह मॉब लिंचिंग की श्रेणी में आ जायेगा। विधेयक पास होने के बाद भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष दीपक प्रकाश और विधायक दल के नेता बाबूलाल मरांडी के नेतृत्व में एक शिष्टमंडल ने राज्यपाल से मुलाकात कर बिल को असंवैधानिक, गैर कानूनी और झारखंड की परंपराओं, रीति रिवाज की व्यवस्था के खिलाफ बताते हुए मंजूरी न देने का राज्यपाल से आग्रह किया था। बहरहाल पहले से सरकार और राजभवन के रिश्ते ठीक नहीं चल रहे हैं। अब इसमें और तल्खी आ सकती है।