झारखण्ड भाजपा में सब ठीकठाक नहीं चल रहा है। झारखण्ड में भी पड़ोसी राज्य बंगाल की हवा पहुंच रही है। यहां बंगाल जैसे हालात नहीं हैं और हाल में चुनाव भी नहीं हैं। मगर 2019 के विधानसभा चुनाव में पराजय से भाजपा ने सीख नहीं ली है। उसके बाद तीन उप चुनाव में भाजपा एक भी सीट हासिल नहीं कर सकी। इसके भी लेकर भीतर-भीतर आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला चलता रहा। पार्टी सूत्रों के अनुसार खेमों में बंटी भाजपा में पार्टी में नेताओं को सम्मान नहीं मिल रहा है। पार्टी खेमों में बंटी दिख रही है। संगठन से जुड़े लोग खुद को उपेक्षित महसूस कर रहे हैं।
हालत यह है कि पार्टी की ओर से बयान जारी किये जाने और प्रेस कांफ्रेंस में बड़े नेताओं के साथ बैठने तक को ले किच-किच होती रही। हाल ही कार्यालय में पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता और मीडिया विभाग के पदाधिकारी के बीच तूतू मैंमैं भी हो गया। मगर प्रदेश अध्यक्ष ने संज्ञान तक नहीं लिया। हेमन्त सरकार के एक साल होने पर सरकार के रिपोर्ट कार्ड के समानांतर भाजपा रिपोर्ट कार्ड जारी करती रही। विभागवार रघुवर सरकार में मंत्री रहे लोगों को लाकर उनसे काउंटर कराती रही। अचानक वे वरिष्ठ नेता लापता से हैं। इधर छोटे-छोटे मामलों पर भी प्रदेश अध्यक्ष दीपक प्रकाश की मोर्चा संभालते रहे। सत्ताधारी झामुमो के प्रवक्ता की ओर से आने वाले बयानों का काउंटर भी खुद अध्यक्ष करते रहे। भाजपा प्रवक्ता और विभिन्न प्रकोष्ठों के लोग साइलेंट रहे। उन्हें मौका नहीं मिलता। हाल में जब मामला सतह पर आया तो जून महीने से पार्टी और विभिन्न मोर्चों के लोग सामने आने लगे। अन्यथा पार्टी कार्यालय से प्रदेश अध्यक्ष दीपक प्रकाश, विधायक दल के नेता बाबूलाल मरांडी, प्रदेश महामंत्री आदित्य साहू और प्रदीप वर्मा की सक्रियता ज्यादा दिखती थी।
वहीं, विधायक नीलकंठ सिंह मुंडा, सांसद सुनील सिंह, अन्नपूर्णा देवी, विधायक अपर्णा सेना गुप्ता और राज पलिवार जैसे उपाध्यक्ष साइलेंट रहे। रघुवर दास के कैबिनेट में मंत्री रहे राजपलिवर का मधुपुर विधानसभा उप चुनाव से टिकट कटने के बाद से पलिवार पूरी तरह किनारे हैं। कुछ मंत्री और प्रवक्ता की भूमिका भी गौण सी रही। नतीजतन दो प्रवक्ताओं ने तो पार्टी कार्यालय से ही कन्नी काट लिया। इधर दफ्तर में नहीं दिख रहे। पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि लक्ष्मण गिलुआ जब प्रदेश अध्यक्ष थे व्यवस्था लोकतांत्रिक थी, सभी पदाधिकारियों को बोलने का मौका मिलता था। वैसे लंबे समय से यहां खेमेबाजी है, पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी, अर्जुन मुंडा, रघुवर दास में अलग-अलग आंतरिक प्रतिष्पर्धा है। इनके अलग-अलग न्यूज वाट्सअप ग्रुप चलते रहे। गोड्डा सांसद निशिकांत दुबे इस प्रतिस्पर्धा से ऊपर दिखते हैं। दिल्ली में अपने प्रभाव के कारण अपने इलाके में बहुत काम कराया है। अब बाबूलाल मरांडी प्रदेश अध्यक्ष के थोड़ा करीब हुए हैं तो अर्जुन मुंडा दिल्ली और प्रदेश के मोह के बीच झूल रहे हैं। तो मुख्यमंत्री पद गंवाने के बाद पार्टी में केंद्रीय उपाध्यक्ष बनाये गये रघुवर दास अपनी जगह बनाने में लगे हैं। प्रदेश में अब तक सिर्फ रघुवर दास ही गैर आदिवासी मुख्यमंत्री हुए। ऐसे में भाजपा में अर्जुन मुंडा और बाबूलाल मरांडी में सीएम मटीरियल देखा जाता है। प्रदेश संगठन महामंत्री धर्मपाल सिंह भी गुटीय राजनीति पर काबू पाने में बहुत सफल होते नहीं दिख रहे। भीतर का असंतोष बड़ा आकार ले इससे पहले खेमेबाजी की आग पर पानी डालने इससे उबरने की जरूरत है।