कोरोना संक्रमण के दौरान बीते दो माह में झारखण्ड में करीब 25 हजार ग्रामीणों की मौत हो गई। दस दिनों तक चले सघन स्वाथ्य जांच सर्वे में यह बात सामने आई। इस आधार पर सरकार ने यह भी दावा किया है कि 80 से 85 प्रतिशत गांवों तक कोरोना का प्रसार नहीं हुआ। यानी गांवों में लहर की आशंका बेबुनियाद। 25 हजार लोगों की मौत को सरकार कोरोना और सामान्य मौत के रूप में देखती है। अखबारों, सोशल मीडिया में आये दिन ग्रामीण इलाकों से एक माह और एक पखवाड़े में अनेक लोगों की मौत की सूचनाएं आ रही थीं। जब मीडिया हाउसों ने ग्रामीण इलाकों पर थोड़ा फोकस किया तब इस तरह की खबरें आने लगीं। मौत की वजह के लक्ष्ण के रूप में सर्दी, खांसी, बुखार, हार्ट अटैक के रूप में सामने आ रहे थे। जब कोरोना की जांच ही नहीं हुई तो कोई कैसे बताता कि मौत कोरोना से ही हुई है। सरकारी तंत्र के सामने भी समस्या यही है। कोरोना पीक पर था तो राजधानी सहित शहर के अस्पताल से लेकर श्मशान और कब्रगाह मरीज और लाश की संख्या के कारण हांफ रहे थे। अस्पताल में किसी को ऑक्सीजन युक्त एक बेड मिल जाना लॉटरी लगने से कम नहीं था। डॉक्टर, मेडिकलकर्मियों की भारी कमी बनी हुई थी। ऐसे में जब सारा फोकस शहरों पर था तो गांवों की ओर कौन देखता। वैसे भी जांच हो या वैक्सीन देने का मसला ग्रामीण इलाकों में लोग लगातार भागते रहे। भ्रांति और आशंका को लेकर तो अनेक इलाकों में तो मेडिकल टीम को लोगों ने खदेड़ दिया। ऐसे में गांवों की तस्वीर का सामने आना आसान नहीं है। शहरों पर कम होते दबाव के बीच मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन ने खुद अधिकारियों के साथ बैठक में ग्रामीण इलाकों को लेकर चिंता जाहिर करते रहे, तैयारी और सावधानी को लेकर निर्देश देते रहे। उन्हें सूचना थी संक्रमितों में बारे में सूचना नहीं आ पा रही। मौत होने पर दिशा निर्देशों का ग्रामीण इलाकों में पालन नहीं हो रहा।
स्वास्थ्य विभाग में आइइसी के नोडल अफसर सिद्धार्थ त्रिपाठी के अनुसार ग्रामीण इलाकों में 25 हजार लोगों की मौत का आंकड़ा कोरोना की दूसरी लहर के दौरान का है। यानी एक अप्रैल से 30 मई के बीच का। उनके अनुसार सामान्य दिनों में हर माह 70 हजार लोगों की प्रदेश में मौत होती है। वहीं झारखण्ड सरकार के दैनिक कोविड बुलेटिन के अनुसार पूरे प्रदेश में पांच जून तक कोरोना से मरने वालों की संख्या 5046 थी। गांवों में कोरोना संक्रमण फैलने की सूचनाओं के बाद हालात की पड़ताल के लिए 25 मई से सघन जन स्वास्थ्य सर्वे शुरू हुआ जो चार जून तक चला। इसमें अब तक करीब 49.12 लाख घरों की जांच की गई। इसी दौरान यह सामने आया कि बीते दो माह के दौरान करीब 25 हजार ग्रामीणों की मौत हुई है। लक्ष्ण के आधार पर एक लाख 86 हजार 509 लोगों की रैपिड एंटीजन टेस्ट की गई जिनमें मात्र 920 लोग संक्रमित पाये गये। चिंता की बात यह भी रही कि 15692 लोगों में टीबी, 1,11,520 में शुगर और 1,13,296 में बीपी के लक्ष्ण पाये गये। ग्रामीण इलाकों में कोरोना संक्रमण से मौत विमर्श का विषय हो सकता है। तीसरी लहर की तैयारी में जुटी सरकार अब कोरोना वेरिएंट की मारक क्षमता का जांच कराने जा रही है। हर 15 दिनों में कोरोना से मृतकों के वेरिएंट का पता पतालगाने के लिए नमूने को आइएलएस भुवनेश्वर भेजकर जांच कराया जायेगा। बहरहाल सघन स्वास्थ्य सर्वेक्षण के बहाने टीबी, बीपी और शुगर के मामले एक झटके में सरकार के सामने आ गये हैं जो ग्रामीण इलाकों में महामारी की तरह फैल रहे हैं। इसके लिए भी दीर्घकालीन योजना बनाने की जरूरत है।