रांची। जिस बंद लिफाफे पर झारखंड की राजनीति में तूफान मचा रहा उसी पर एटम बम विस्फोट की बात कह राज्यपाल ने रमेश बैस ने फिर से राज्य की राजनीति को गरम कर दिया है। चुनाव आयोग के मंतव्य पर राज्यपाल की दो माह की खामोशी के बाद भड़काऊ बयान से यूपीए नेताओं में नाराजगी है। संवैधानिक पद की अपनी मर्यादा है। ऐसे में राज्यपाल इस तरह की टिप्पणी कर क्या संदेश देना चाहते हैं, लोग जानना चाहते हैं। मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन के खुद के नाम माइनिंग लीज लेने के मसले पर राज्यपाल रमेश बैस चुनाव आयोग से सेकेंड ओपिनियन ले रहे हैं।
सवाल यह है कि चुनाव आयोग का सेकेंड ओपिनियन एटम बम फटने लायक नहीं रहा तो राजभवन क्या करेगा। हाल ही रायपुर के छत्तीसगढ़ में एक इलेक्ट्रॉनिक चैनल के साथ बातचीत में राज्यपाल ने कहा कि ''हेमंत सोरेन के माइनिंग लीज के मामले में चुनाव आयोग के मंतव्य पर वे सेकेंड ओपिनियन ले रहे हैं। आयोग का मंतव्य आने के बाद निर्णय करूंगा। .....झारखंड में पटाखों पर प्रतिबंध नहीं है हो सकता है एकाद एटम बम फट जाये। उन्होंने यह भी कहा कि आयोग का मंतव्य आने के बाद राज्यपाल बाध्य नहीं है कि वह कब निर्णय करे या आयोग के मंतव्य का पालन करे। यह भी कहा कि बदले की भावना से काम किया मेरे ऊपर कोई उंगली न उठाये इसलिए सेकेंट ओपिनियन ले रहे हैं...।''
राज्यपाल के ताजा बयान के बाद मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन ने लापरवाह अंदाज में प्रतिक्रिया दी, लिफाफे को बंद ही रहने दें, धूमधाम से सोहराय और छठ मनायें। दो माह की खामोशी के बाद राज्यपाल के बयान को लेकर यूपीए के नेता राजभवन पर आक्रामक हो गये। झामुमो के महासचिव सुप्रियो भट्टाचार्य ने कहा कि राज्यपाल पहले ओपिनियन पर ही कंफ्यूज हैं। वे दूसरा नहीं तीसरा ओपिनियन भी ले लें। मगर डराने का काम नहीं करें। झारखंड में यूरेनियम भी है जिससे न्यूक्लियर बम बनता है। हम कारपेट बॉम्बिंग करेंगे। वैसे सबसे बड़ा ओपिनियन जनता का होता है वह हमारे साथ है। हेमन्त सरकार में शामिल कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष राजेश ठाकुर कहते हैं कि राज्यपाल भाजपा नेता की तरह बयान दे रहे हैं जबकि किसी दल के नहीं होते। संवैधानिक पद है उसकी गरिमा और मर्यादा के अनुसार राज्यपाल को व्यवहार करना चाहिए। और बम डिफ्यूज हो चुका है, हमारी सरकार बहुमत में है।
खुद के नाम माइनिंग लीज को लेकर हेमन्त के खिलाफ भाजपा की राज्यपाल से शिकायत के बाद राज्यपाल ने चुनाव आयोग से मंतव्य मांगा था। आयोग के विशेष दूत ने 25 अगस्त को ही राजभवन मंतव्य पहुंचा दिया। आयोग का पत्र राजभवन पहुंचते ही झारखंड की राजनीति में भूचाल मचा रहा। मीडिया में हेमन्त सोरेन की विधानसभा सदस्यता खत्म होने की खबरें लीड छपती रही। सोशल मीडिया में खबरें वायरल रहीं। सोशल मीडिया में पोस्ट करने के मामले में भाजपा के बड़े नेताओं में होड़ मची रही। मगर हर छोटी, बड़ी गतिविधियों पर रिलीज जारी करने वाला राजभवन पूरी तरह खामोश रहा। इससे राज्य में राजनीतिक संशय का माहौल रहा। विधायकों पर डोरे डालने का खेल भी सामने आया।
इस बीच राज्यपाल का हल्के ढंग से बयान आया कि आयोग के आयोग के लिफाफे पर गोंद ऐसा चिपका है कि खुल नहीं रहा। इस बीच चुनाव आयोग का मंतव्य जानने यूपी के नेता राज्यपाल से मिले, हेमन्त के वकील में आयोग से मतव्य की कॉपी मांगी, आयोग का मंतव्य जानने खुद हेमन्त राजभवन गये, आरटीआई के तहत भी सूचना मांगी गई मगर नतीजा शून्य रहा। आरटीआई पर आयोग ने पत्र की प्रति देने से इनकार कर दिया। वहीं आयोग के मंतव्य पर राजभवन लंबे समय खामोश खामोश रहा तो यूपीए के नेता आक्रामक हो गये। राजभवन को खामोश देख भाजपा के आक्रामक रहे नेता भी बैकफुट पर आ गये। तो खुद को खतरे में देख हेमन्त सोरेन धड़ाधड़ नीतिगत फैसले करते रहे। इस दो माह में एक प्रकार से हेमन्त सोरेन ने अगले चुनाव को लेकर लगभग नीतिगत फैसलों का टास्क पूरा कर लिया है। बहरहाल चुनाव आयोग के मंतव्य के दो माह तक राजभवन की खामोशी को लेकर सवाल उठने लगा है कि क्या आयोग के मंतव्य और राज्यपाल की भावना में तारतम्य नहीं है या कानून कुछ और कह रहा है। बहरहाल राज्यपाल इस पर जल्द कोई आदेश नहीं जारी करता है तो यूपीए नेताओं का राजभवन पर आक्रमण बढ़ सकता है।