दो दिन पहले औद्योगिक संगठनों के प्रतिनिधियों से बात करते हुए राज्य की उद्योग सचिव पूजा सिंघल कह रही थीं कि राज्य में निवेश को बढ़ावा देने के साथ वैसे निवेशक जो प्रदेश में पहले से निवेश किए हुए हैं की समस्याओं का निराकरण किया जायेगा।
झारखंड चेंबर ऑफ कामर्स और स्मॉल स्केल इंडस्ट्रीज के प्रतिनिधियों को भरोसा दिला रही थीं कि जल्द ही झारखंड इंडस्ट्रीज प्रमोशन सोसाइटी बनाई जायेगी। जिसके माध्यम से उद्यमियों को होने वाली समस्याओं का निपटारा किया जायेगा। अपने अधिकारियों को उन्होंने फॉरेस्ट क्लीयरेंस, प्रदूषण अनापत्ति आदि के लंबित आवेदनों के जल्द निपटारे का निर्देश दिया। राज्य में उद्यमियों को उद्योग लगाने में किसी प्रकार की परेशानी न हो इसके लिए उद्यमियों के प्रतिनिधियों के साथ हर माह बैठक कर समीक्षा की जायेगी। बंद पड़े या कमजोर उद्योगों को पुनर्जीवित करने के लिए संभावित विकल्पों पर विचार का भी उन्होंने भरोसा दिया। जल्द ही रूरल इंडस्ट्रियल पॉलिसी बनाने का भी सपना दिखाया। यह सपने परोसने जैसी बातें तत्काल उद्यमियों को पसंद आयीं, उन्होंने सरकारी प्रयास की सराहना की।
दरअसल इस बैठक के दो दिन पहले मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन ने उद्योग विभाग को निर्देश दिया था कि लघु एवं मध्यम उद्योगों की समस्याओं की समीक्षा करे। घरेलू और बाहरी दोनों प्रकार के निवेशकों की आवश्यकताओं पर फोकस करते हुए नीति-प्रक्रिया में सुधार की कार्रवाई करे। मुख्यमंत्री को ऐसा इसलिए कहना पड़ा क्योंकि जब में प्रदेश में निवेश के लिए माहौल बनाने में जुटे थे। यहां के औद्योगिक संगठन अपनी समस्याओं का रोना रो रहे थे। उद्योगों के न पनपने के पीछे विभागों की बाबू गिरी का रोना रो रहे थे। उद्योग, प्रदूषण, भूमि से जुड़े कार्यालयों के अधिकारियों के असहयोग का रोना रो रहे थे।
कोरोना संक्रण के कारण रोजगार और राजस्व दोनों पर मार पड़ी है। इससे मुकाबले की दीर्घकालीन योजना के तहत नये कल-कारखाने लगें इसके लिए मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन की पहल पर 27-28 अगस्त को दिल्ली में इनवेस्टर्स मीट का आयोजन किया गया। एक आकर्षक निवेश प्रोत्साहन नीति पेश की गई। कई प्रक्षेत्र में छूट और राहत के आकर्षक प्रावधान किये गये। कुछ और हो रहे हैं। करीब एक लाख करोड़ के निवेश और पांच लाख लोगों को रोजगार का सपना देखा गया। मगर एमओयू दस हजार करोड़ के निवेश पर हुआ। इससे करीब डेढ़-दो लाख लोगों को रोजगार का दावा किया गया है।
राज्य के व्यापार-उद्योग जगत ने आलोचना तब भी की थी। दलील यह थी कि पहले से लगे उद्योगों की बदहाली पर सरकार का ध्यान नहीं है। दिल्ली में बैठक कर सिर्फ बाहर से निवेश की उम्मीद करना व्यावहारिक नहीं। तब मुख्यमंत्री ने यहां के उद्यमियों की समस्याओं को दूर करने के लिए उद्योग विभाग को निर्देश दिया। मुख्यमंत्री का प्रयास सराहनीय है मगर अधिकारियों का सहयोग कितना मिल पाता है कहना कठिन है।
निवेश की संभावनाओं का हकीकत जानने के लिए यह भी जानना होगा कि हेमन्त सोरेन के सत्ता संभालने के बाद झारखंड की सबसे बड़ी कपड़ा मिल, रांची का ओरिएं क्राफ्ट जिसमें करीब साढ़े तीन हजार कामगार थे, को कारोबार क्यों समेटना पड़ा, करीब डेढ़ सौ करोड़ की लागत से रांची में बने फूड पार्क को चालू होने के पहले क्यों नीलाम करने की नौबत क्यों आ गई। औद्योगिक परिसर क्यों मर रहे हैं। पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास के समय हुए इनवेस्टर्स मीट की योजनाएं जमीन पर क्यों नहीं उतरीं। तब भी अरबों के निवेश और लाखों को रोजगार का सपना दिखाया गया था। प्रदेश के अधिकारी तो अब भी यहीं हैं। औद्योगिक परिसर के लिए जमीन से जुड़ी समस्या हो, फॉरेस्ट क्लीयरेंस, लाइसेंस नवीकरण की समस्या, प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड से सीटीओ-सीटीई की मंजूरी में विलंब। कार्यालयों में कितने समय से कितने आवेदन लंबित हैं, देखना होगा। सिर्फ प्रदूषण विभाग से ही एनओसी के लिए कोई पांच सौ से अधिक आवेदन लंबित हैं।
बिजली की समस्या तो अपनी जगह है ही। इन समस्याओं की वजहों को दूर किये बिना निवेश की उम्मीद व्यर्थ साबित हो सकती है। निजी क्षेत्र की कंपनियों में 75 प्रतिशत स्थानीय लोगों के लिए आरक्षण निवेशकों को कहां तक सूट करता है, यह भी सवाल है। निवेशक अपने फायदे के लिए निवेश करता है, उद्योग धंधे लगाता है। ऐसे में उनकी सुविधा और पहले से पैसे लगाकर फंसे हुए लोगों की पीड़ा समझनी होगी। सिंगल विंडो सिर्फ जुमला नहीं रहे यह भी देखना होगा। बाबुओं की बाबूगिरी पर हेमन्त लगाम लगाने में कामयाब नहीं हुए तो उम्मीद करना, सपने देखना जैसा साहिब हो सकता है।