राजभवन के सामने से 75 घंटे के बाद गुजर रहे हैं तो अचानक भ्रम हो सकता है कि कहीं दूसरे इलाके में तो नहीं आ गये। यहां के जाकिर हुसैन पार्क में करामाती अंदाज में रौनक आ गई है। कोई डेढ़ एकड़ में फैला यह पार्क पिछले सात-आठ सालों से बंद रहने के कारण झाड़ियों में इस तरह डूब गया था मानो जंगल हो। कोरोना काल में तो कोई झांकने भी नहीं आता था। अब इस 'जंगल' में भागते-दौड़ते बच्चों की किलकारी सुनाई दे रही है। आजादी अमृत महोत्सव ने इस पार्क को भी आजादी दिला दी। पहल थी रांची नगर निगम के नगर आयुक्त मुकेश कुमार की। 75 घंटे के परिवर्तन की तस्वीरें देखेंगे तो दिल से महसूस होगा कि अधिकारी चाहें तो क्या नहीं हो सकता है। एक सौ मजदूर लगे और सूरत बदल गई। महानगर की तरह बदलती शहरों की संस्कृति में पार्क एक पार्क भर नहीं हैं। पूरी संस्कृति है। बुजुर्ग बच्चों के साथ पार्क में जाते हैं तो पड़ोस के न पहचानने वालों से भी रिश्ते बनते हैं, बच्चों के बहाने बातें होती हैं।
नगर आयुक्त मुकेश कुमार ने आउटलुक से कहा कि एक और दो अक्टूबर की बारिश तंग करती रही, इसके बावजूद हमने योजना को समय सीमा में अंजाम दिया। पेंट होता था, बारिश में बह जाता था। कई फेड हो गये, ट्रैक जुड़ाई, पत्थरों को लगाने का काम भी प्रभावित होता था। पार्क को स्पाइस गार्डेन में परिवर्तित कर दिया है। तेजपत्ता, पान, रुद्राथ, जायफल, नीम, गिलोय, मुलेठी, हल्दी, शिमला मिर्च, हरसिंगार सौ से ज्यादा औषधीय पौधे लगाये गये हैं जो आने वाले समय में परिवर्तन का एहसास दिलायेंगे। हाथी टूटा हुआ था जोड़कर फाउंटेन जिंदा किया, कबाड़ का खूब इस्तेमाल किया, फेके हुए टायर को रंगकर बैठने, झूला, घेराबंदी के लिए इस्तेमाल किया। मौजूदा पार्क अब जिंदा हो गया है। अंधेरे में गुजरेंगे तो रोशनी से नहाया हुआ। मनोज कुमार कहते हैं कि ड्राइव शुरू करने के एक दिन पहले गया था बहुत खराब हालत में था। अमृत महोत्सव में 75 घंटे का टाइम लाइन सारे शहरों को दिया गया था।
शहरी स्वच्छता को लेकर प्रधानमंत्री का आह्वान था। इस प्रयास से संदेश भी जायेगा, प्रेरणा भी मिलेगी। सोच से जाहिर किया कि बिना बहुत भारी भरकम चीजें लगाये, योजना बनाये भी चीजों को परिवर्तित किया जा सकता है। परिवर्तन का एहसास करने मंगलवार को 25-30 काउंसिलर, जनसंपर्क निदेशक भी इस पार्क में आये। अब इस पार्क में और वैल्यू एडीशन के लिए 75 दिन का लक्ष्य रखा गया है। ऐसे काम जो 75 घंटे में नहीं हो सकते थे। स्थायी प्रकृति वाले कंक्रीट का काम हो या दूसरा। कैंटीन को भी ऑपरेशनल किया जायेगा। स्वयं सहायता समूह की महिलाओं को भी जोड़ा जायेगा। पूरी तरह इको फ्रेंडली स्वरूप रहेगा। रैपर की अनुमति नहीं होगी। चाय, कॉफी भी ग्लास में। डिस्पोजेबल नहीं। डस्टबिन की न के बराबर इस्तेमाल होगा।