झारखंड में स्थानीय निकायों यानी गांव की सरकार का संचालन कौन करेगा इस पर सरकार जल्द निर्णय करेगी। दिसंबर 2015 में त्रिस्तरीय पंचायती निकायों का चुनाव हुआ था। पहली बैठक से पांच साल के कार्यकाल की गणना होती है। जो इसी माह क्रमश: खत्म हो जायेगी। पंचायजी राज मंत्री आलमगीर आलम ने आउटलुक से कहा कि तीन जनवरी को मुखिया का कार्यकाल समाप्त हो गया है। पंचायती निकायों में जनप्रतिनिधियों के कोई दस हजार से अधिक पद हैं उनमें मुखिया की संख्या 4402 है।
पंचायती राज मंत्री ने कहा कोविड के कारण पंचायती निकाय के चुनाव समय पर नहीं हो सके। मियाद खत्म होने के बाद उनका संचालन कैसे किया जाये सरकार इस पर मंथन कर रही है। हमारे पास दो विकल्प हैं। या तो बीडीओ, पंचायती राज अधिकारियों आदि के जिम्मे निकायों को सौंप दिया जाये। दूसरा विकल्प है कि स्थानीय निकायों के ही जनप्रतिनिधि रहे लोगों की कमेटी बना दी जाये। इस कमेटी में मुखिया, वार्ड पार्षद, पंचायत समिति सदस्य आदि रहेंगे। ज्यादा कोशिश है कि समिति बनाकर ही संचालन किया जाये। दस दिनों के भीतर इस पर अंतिम निर्णय कर लिया जायेगा। उन्होंने कहा कि राज्य निर्वाचन आयुक्त का पद भी रिक्त है। उनकी नियुक्ति के बाद मतदाता सूची के निर्माण, विखंडन, आरक्षण का निर्णय किया जाना है। राज्य निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति में नेता प्रतिपक्ष की भूमिका भी होती है। नेता प्रतिपक्ष का मामला अभी फंसा हुआ है। महाधिवक्ता से इस मसले पर राय ली जा रही है कि बिना नेता प्रतिपक्ष के राज्य निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति का रास्ता कैसे निकले। उनकी राय आने के बाद राज्य निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति के संबंध में निर्णय किया जायेगा। आलमगीर आलम ने कहा कि मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश को भी इसी तरह के संकट का सामना करना पड़ रहा है। मध्य प्रदेश में तो पंचायती निकायों का कार्यकाल कई माह पूर्व समाप्त हो गया। उत्तर प्रदेश में भी दिसंबर के अंत में कार्यकाल समाप्त हो गया है।