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झारखंडः ऐसे गहने आपने नहीं पहने होंगे, जानिये ये कौन बना रहा है और कहां मिलेगा

रांची। आज धनतेरस के मौके पर देश भर में आभूषण दुकानों में महिलाओं की भीड़ है। हर कोई कुछ ले लेना चाहता...
झारखंडः ऐसे गहने आपने नहीं पहने होंगे, जानिये ये कौन बना रहा है और कहां मिलेगा

रांची। आज धनतेरस के मौके पर देश भर में आभूषण दुकानों में महिलाओं की भीड़ है। हर कोई कुछ ले लेना चाहता है। हर नजर को नये डिजाइन की तलाश है। आप का टेस्‍ट भी डिजाइन को लेकर थोड़ा अलग है तो आपके लिए यह बड़ा बाजार है। शहरों, महानगरों की तमाम दूसरी महिलाओं से अलग। यह है आदिवासियों में प्रचलित अलग-अलग तरह के आभूषण। गले में पहनी जाने वाली हंसुली, हार, बिछुआ, बाजुबंद, कमरबंद, झुमका, बाली, कड़ा, पायल और भी न जाने क्‍या, क्‍या। हार या हंसुली ही है तो भांति-भांति तरह का। सब हाथ से बने। जब महिलाएं आभूषण दुकानों पर धनतेरस की खरीद में जुटी थीं, उसी समय भारतीय प्रशासनिक सेवा की अधिकारी नैंसी सहाय आदिवासी आभूषणों को आप तक पहुंचाने की तैयारी कर रही थीं। एक संगठित प्रयास को जनता के हवाले किया। 'आदिवा' ब्रांड के नाम से। आदिवासियों का पारंपरिक आभूषण। धनतेरस के दिन से ही झारखंड के विभिन्‍न जिलों में इसकी इसकी बिक्री भी शुरू हो गई। यह एक प्रकार से आदिवासी संस्‍कृति का संरक्षण भी है।

नैन्‍सी सहाय झारखंड स्टेट लाइवलीहुड प्रोमोशन सोसाईटी (जेएसएलपीएस) की मुख्‍य कार्यपालक पदाधिकारी हैं। मंगलवार को उन्‍होंने रांची के हेहल स्थित जेएसएलपीएस के राज्य कार्यालय  में सखी मंडल की महिलाओं द्वारा  निर्मित पारंपरिक आदिवासी आभूषण के ब्रांड आदिवा का शुभारंभ किया। मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन की पहल पर सखी मंडल के उत्पादों को बड़े बाजार से जोड़ने के लिए पलाश ब्रांड की शुरुआत की गई थी , जिससे ग्रामीण महिलाओं की आमदनी में इजाफा हुआ है । इसी कड़ी में राज्य की पहचान आदिवासी ज्वैलरी को विशिष्ट रूप से स्थापित करने के लिए आदिवा आदिवासी ज्वैलरी ब्रांड का शुभारंभ किया गया है। मौके पर आदिवा ज्वैलरी के कैटलॉग का विमोचन कर ज्वैलरी ब्रांड का शुभारंभ किया गया। आदिवा आभूषण की खरीदारी ऑनलाईन माध्यम से पलाश मार्ट मोबाइल एप्लिकेशन के जरिए की जा सकती है एवं पलाश मार्ट में भी उपलब्ध रहेगा। पलाश ब्रांड अंतर्गत आदिवा सह ब्रांड के रूप में लॉन्च किया गया है।

नैन्‍सी सहाय ने आउटलुक से कहा कि अभी खूंटी, लोहरदगा, दुमका की करीब पांच सौ महिलाएं जो आभूषण बनाती और ग्रामीण बाजारों, मेलों में ही बेचती थीं को जोड़ा गया है। पलाश प्रोडक्‍ट के ऑनलाइन मार्केटिंग के लिए अमेजन से भी हमारा समझौता है। ऐसे में आदिवा ज्‍वेलरी अमेजन पर भी उपलब्‍ध होगा। उससे जनजातीय आभूषण को बाहर की दुनिया तक पहुंचेगा। नई पहचान मिलेगी। कई कलस्‍टर में पहले इन आभूषणों का निर्माण हो रहा था अब एक ब्रांड के अधीन आ गया है। अभी चांदी, ब्रास और दूसरे मेटल के आभूषण बन रहे हैं। खूंटी के मुरहू में बड़ा कलस्‍टर काम कर रहा है। पूरा गांव ही पारंपरिक आभूषण बनाने में लगा है। खूंटी में मुंडा समाज के लोग इससे जुड़े हैं। लोहरदगा सदर में भी बड़ा काम कर रहा है। दुमका में भी। दुमका में डोकरा आर्ट को भी इसमें शामिल किया है। आगे दूसरे जिलों को भी जोड़ेंगे। तत्‍काल राज्‍य में करीब डेढ़ सौ पलाश मार्ट है जहां ये उपलब्‍ध करा रहे हैं। अभी करीब पांच सौ महिलाएं आभूषण निर्माण में जुटी हैं। और प्रशिक्षण के मसले पर उन्‍होंने कहा कि मुरहू की महिलाओं से उन्‍होंने पूछा था तो महिलाओं का जवाब था कि हम ही दूसरे लोगों को प्रशिक्षण देंगे। उन्‍हें प्रशिक्षण की जरूरत नहीं।

उन्‍होंने कहा कि आदिवा ब्रांड के लॉन्च का मुख्य उद्देश्य राज्य के पारंपरिक आभूषण को एक नई पहचान के जरिए बड़े बाजार से जोड़कर ग्रामीण महिलाओं को स्वरोजगार एवं राज्य की धरोहर आदिवासी ज्वेलरी को सहेजना है। ग्रामीण विकास विभाग के  सचिव डॉ मनीष रंजन के मार्गदर्शन में सखी मंडल की महिलाओं द्वारा निर्मित आदिवासी आभूषण को बड़े बाजार से  जोड़कर उद्यमिता के नए आयाम स्थापित करने का प्रयास है आदिवा ।

सखी मंडल द्वारा हस्तनिर्मित आदिवासी ज्वैलरी को आदिवा देगा नया कलेवर

'आदिवा ' के लॉचिंग कार्यक्रम में राज्य के सभी 24 जिलों से जेएसएलपीएस की टीम ऑनलाइन जुड़ी थी। वहीं आदिवा ज्वैलरी निर्माण से जुड़ी खूंटी के मुरहू की कुछ महिलाएं लॉंचिंग कार्यक्रम में मौजूद थी। ज्वैलरी सह ब्रांड 'आदिवा' की लॉन्चिंग पर खुशी जाहिर करते हुए खूंटी की यशोदा देवी ने कहा कि इस पहल से हम बहनों द्वारा हस्तनिर्मित ज्वैलरी को नया कलेवर मिल पा रहा है। मुझे उम्मीद है कि हमारे द्वारा निर्मित आदिवासी आभूषण महिलाओं की सुंदरता में चार-चांद लगाएंगे एवं उनकी पहली पसंद होगी आदिवा। हमलोग चांदी, सिल्वर, मेटल आदि से पारंपरिक आदिवासी ज्वैलरी बनाते है, जो लोगों को काफी पसंद आती है।

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