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'राजनीतिक सक्रियता में नजरअंदाज जेएनयू का अकादमिक योगदान'

देश के प्रतिष्ठित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के निवर्तमान कुलपति एसके सोपोरी का कहना है कि जेएनयू को अक्सर राजनीतिक सक्रियता के मंच के रूप में देखा जाता है और अकादमिक क्षेत्र में इसके योगदान को नजरंदाज किया जाता है।
'राजनीतिक सक्रियता में नजरअंदाज जेएनयू का अकादमिक योगदान'

27 जनवरी को सेवानिवृत्त हो रहे सोपोरी ने कहा कि बाहर की दुनिया में जेएनयू के संदर्भ में केवल यह देखा जाता है कि परिसर में क्या राजनीतिक गतिविधियां हुई लेकिन इस तथ्य को नजरंदाज किया जाता है कि विश्वविद्यालय ने कितनी प्रतिभाएं तैयार कीं।

सोपोरी ने पीटीआई भाषा के साथ साक्षात्कार में कहा, लोग अक्सर जेएनयू कैम्पस में राजनीतिक सक्रियता के बारे में चर्चा करते हैं लेकिन विरले ही कोई यहां की अकादमिक सक्रियता के बारे में चर्चा करता है। इस विश्वविद्यालय को इस संदर्भ में कभी भी पेश नहीं किया जाता है। हमारे यहां आमतौर पर प्रति वर्ष 300 राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन होते हैं। यहां पर छात्र गुणवत्तापूर्ण पुस्तकें लिखते और संपादित करते हैं लेकिन बाहर की दुनिया में परिसर को केवल राजनीति दृष्टि से देखा जाता है।

उल्‍लेखनीय है कि सोपोरी पर उनके कार्यकाल के दौरान कभी छात्राें या शिक्षकों ने निशाना नहीं साधा। उन्होंने कहा कि आलोचकों को अपनी बात रखने का अधिकार है लेकिन छोटी छोटी बातों को महिमामंडित नहीं किया जाना चाहिए। पिछले साल नवंबर में सोपोरी ने आरएसएस समर्थिक पत्रिका में प्रकाशित उन टिप्पणियों की आलोचना की थी जिसमें कहा गया था कि जेएनयू राष्ट्र विरोधी ब्लाक का वृहद आश्रय है। सोपोरी ने कहा था कि यह बुद्धिजीवियों का आश्रय है और इसने राष्ट्र निर्माण में काफी योगदान दिया है।

योगगुरू रामदेव को एक सम्मेलन के लिए आमंत्रित किये जाने के बारे में पूछे जाने पर सोपोरी ने कहा कि इस बारे में अलग अलग विचार है। एेसी बात भी नहीं है कि सभी छात्र एेसा नहीं चाहते है, कुछ छात्र चाहते हैं। उन्होंने कहा कि इसका अर्थ यह नहीं है कि आमंत्रण को वापस ले लिया जाए या विरोध करने वालों को दंडित किया जाए। सोपोरी के अनुसार, उनकी दो उपलब्धियां विश्वविद्यालय को नैक की मान्यता मिलना और यौन उत्पीड़न से जुड़ी नीति को सुदृढ बनाना है।

 

 

 

 

 

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