लोकसभा चुनावों के बाद पंजाब में अब विधानसभा चुनावों का घमासान मचेगा, जिसमें पंजाब की 2 प्रमुख राजनीतिक पार्टियों कांग्रेस व अकाली दल-भाजपा गठबंधन की प्रतिष्ठा दांव पर लगेगी।
राज्य के 7 विधानसभा हलकों के उपचुनाव किसी भी समय हो सकते हैं। इन उपचुनावों में संबंधित हलकों में परचम लहरा पाने से जहां अकाली-भाजपा गठबंधन को प्रदेश में अपनी मजबूती और मौजूदगी को बढ़ाने का एक नया अवसर मिलेगा, वहीं कांग्रेस को हाल ही में हुए लोकसभा चुनावों में मिली जीत को यथावत रखने की अग्निपथ से गुजरना होगा।
लोकसभा 2019 के आम चुनावों में कांग्रेस को 13 में से 8 सीटों पर जीत मिली और अकाली दल-भाजपा गठबंधन के खाते में 4 व आम आदमी पार्टी मात्र 1 सीट जीती थी। अकाली दल के सुप्रीमो सुखबीर बादल के फिरोजपुर और सोम प्रकाश के होशियारपुर लोकसभा चुनाव जीतने के बाद जलालाबाद व फगवाड़ा विधानसभा के उपचुनाव होंगे क्योंकि दोनों ही सांसद संबंधित हलकों से मौजूदा विधायक थे। इसके अलावा राज्य में 5 अन्य विधानसभा क्षेत्रों के मौजूदा विधायकों द्वारा इस्तीफे देने के कारण इन हलकों में भी उपचुनाव होने तय हैं। इन 5 विधानसभा हलकों में भुलत्थ हलका जहां से सुखपाल सिंह खैहरा ने इस्तीफा दिया है। एच.एस. फूलका के इस्तीफे से दाखा सीट खाली हो गई है।रोपड़ और मानसा हलकों से आम आदमी पार्टी के विधायक अमरजीत सिंह संदोहा व नाजर सिंह मानशाहिया के इस्तीफा देकर कांग्रेस में शामिल होने से दोनों हलकों में भी उपचुनाव करवाए जाने हैं। इनके अलावा एक अन्य हलका जैतों में भी उपचुनाव होना है, जहां से आप विधायक बलदेव सिंह ने इस्तीफा दिया और पीपुल्स डैमोक्रेटिव अलायंस के उम्मीदवार के रूप फरीदकोट संसदीय क्षेत्र से चुनाव लड़ा और वह हार गए।
कांग्रेस के पास विधानसभा में 2 तिहाई बहुमत है, इस कारण आगामी उपचुनावों में जीत को सुनिश्चित करना कांग्रेस के लिए इतना जरूरी नहीं है परंतु चाह कर भी कांग्रेस इन उपचुनावों को हल्के से नहीं ले सकती। क्योंकि राजनीतिक धारणा है कि खासकर मुख्यमंत्री के लिए अधिक विधायक होने का अर्थ है अधिक समस्याएं। विधानसभा में कांग्रेस के पहले ही 78 विधायक हैं। अगर कांग्रेस पार्टी उपचुनावों में 4 या 5 हलकों में जीत जाती है तो विधायकों की संख्या इतनी अधिक हो जाएगी कि उन्हें संभालना मुख्यमंत्री के लिए मुश्किलों से भरा होगा। अगर सत्तारूढ़ कांग्रेस उपचुनावों में हार जाती है तो उसे पंजाब की राजनीति में अकाली-भाजपा गठबंधन के मजबूत होने के दूरगामी परिणामों का सामना करना पड़ सकता है। वहीं दूसरी तरफ अकाली-भाजपा गठबंधन के लिए प्रत्येक सीट जीतना बेहद महत्वपूर्ण होगा।
अकाली दल के लिए महत्वपूर्ण बात यह है कि चाहे उसको 2 लोकसभा सीटों पर संतुष्ट होना पड़ा है परंतु लोकसभा चुनावों में पार्टी के वोट प्रतिशत में खासा सुधार हुआ है। फिर भी जलालाबाद और फगवाड़ा से क्सुखबीर बादल और सोम प्रकाश के लोकसभा चुनाव में जीत प्राप्त करने के बाद उपचुनावों में गठबंधन के लिए दोनों विधानसभा हलकों पर कब्जा बनाए रखना कोई आसान काम नहीं होगा। राज्य के शेष 5 विधानसभा क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व ‘आप’ के विधायक कर रहे थे। लोकसभा चुनावों में दाखा को छोड़कर 4 विधानसभा क्षेत्रों मानसा, भुलत्थ, जैतो व रोपड़ में कांग्रेस को बढ़त प्राप्त हुई है जबकि दाखा में लोक इंसाफ पार्टी बढ़त बना पाई। अब देखना होगा कि लोकसभा चुनाव परिणामों के समीकरणों के बाद उपचुनावों में कौन-सी पार्टी अपना वर्चस्व बनाने में कामयाब साबित होगी।