दरअसल अस्सी-नब्बे के दशक में पशुपालन के मद में विभिन्न कोषागारों से करीब एक हजार करोड़ रुपये की अवैध निकासी हुई थी। सीबीआइ ने 66 मामले दर्ज किए थे, जिसमें छह में लालू प्रसाद को भी अभियुक्त बनाया गया। छठा मामला बांका कोषागार से 46 लाख रुपये की अवैध निकासी का है। पटना में सीबीआइ की विशेष अदालत में इसकी सुनवाई चल रही है। लालू से जुड़े इन छह मामलों में 211 करोड़ रुपये की अवैध निकासी का आरोप है, जिनमें लालू प्रसाद को सात बार जेल जाना पड़ा है। पांच मामलों में कुल साढ़े 32 साल जेल की सजा हुई है और 1.65 करोड़ रुपये का जुर्माना लगा है, जिनमें वे करीब साढ़े तीन साल जेल में रहे। हालांकि ज्यादा समय बीमारी के नाम पर अस्पताल में गुजरा।
अब सीबीआइ की अदालत ने डोरंडा कोषागार से निकासी के मामले में ईडी (प्रवर्तन निदेशालय) की जांच का आदेश दिया है। ईडी ने दुमका और देवघर कोषागार से अवैध निकासी को लेकर मामला दर्ज कर लिया है। सीबीआइ कोर्ट से सजा के बाद लालू प्रसाद की ओर से हाइकोर्ट में याचिका दायर की गई है।
पशुपालन घोटाला में सजा के बावजूद लालू अपने समर्थकों में लोकप्रिय रहे हैं। उनकी अदा भी निराली रही है। कुछेक वाकये याद कीजिए। 9 जनवरी 1999 की बात है। लालू प्रसाद की पत्नी राबड़ी देवी मुख्यमंत्री थीं। लालू बेऊर जेल से जमानत पर निकले तो हाथी पर बैठकर अपने आवास पहुंचे थे। फिर, अलग राज्य बन चुके झारखंड में 2002 में रांची की विशेष अदालत में पेशी थी। लालू पटना से अपने समर्थकों के हुजूम के साथ गरीब रथ पर सवार होकर पहुंचे थे। रथ के पीछे मीलों तक उनके साथ चलने वाली गाड़ियों का काफिला था, जगह-जगह उनके समर्थक उनके स्वागत में खड़े थे। आज बुढ़ापे की अवस्था में उनकी किडनी 20 प्रतिशत की क्षमता से काम कर रही है और वे अनियंत्रित बीपी, मधुमेह सहित डेढ़ दर्जन बीमारियों से ग्रस्त हैं। चलने में भी सहयोग की जरूरत पड़ती है। उनकी जेल यात्रा भी विवादों में रही। पटना में राबड़ी देवी का शासन था तो बीएमपी के गेस्ट हाउस को ही कैंप जेल बना दिया गया था। रांची में सहयोगी पार्टी की सरकार रही तो रिम्स के निदेशक का तीन एकड़ का बंगला उनके लिए जेल बना रहा।
बिहार में उनका जनाधार थोड़ी-बहुत टूटन के बावजूद बरकरार रहा है। लेकिन अब भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष तथा बिहार के पूर्व उप-मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी कहते हैं, ‘‘सीबीआइ अदालत से उन्हें इतनी सजा मिल चुकी है कि अब वे मुखिया का भी चुनाव नहीं लड़ सकते। उनका बिहार में कोई असर नहीं रह गया है।’’ लेकिन उनकी पार्टी राजद ने तेजस्वी के नेतृत्व में 2020 के विधानसभा चुनाव में जबरदस्त प्रदर्शन किया। लालू आज भी अपनी पार्टी में खासी अहमियत रखते हैं। हाल में 10 फरवरी को राजद कार्यकारिणी की पटना में बैठक में तेजस्वी को राजद अध्यक्ष बनाने की चर्चा उड़ी थी, जिस पर लालू प्रसाद ने विराम लगा दिया। उन्होंने कहा कि 11 अक्टूबर को दिल्ली में पार्टी के अधिवेशन में राष्ट्रीय अध्यक्ष सहित अन्य पदाधिकारियों के चुनाव होंगे।
उधर, बुढ़ापे में लालू के प्रति उपजती सहानुभूति से भी राजनीति गरमा गई है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा, ‘‘मुझे इस बारे में कुछ नहीं कहना है। जो लोग आज उनके साथ हैं, वे भी केस करने वालों में थे। वे मेरे पास भी आए थे कि मैं भी इसमें पार्टी बन जाऊं पर मैंने इनकार कर दिया था। केस करने वालों से ही पूछिए।’’ राजद के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष शिवानंद तिवारी को यह थोड़ा तीखा लगा। उन्होंने कहा, ‘‘सारी दुनिया जानती है कि चारा घोटाला की सीबीआइ से जांच के लिए हाइकोर्ट में जो याचिका दी गई, उसमें एक पर दस्तखत करने वाला मैं भी था, दूसरे पर वृषण पटेल थे। आजकल हम दोनों लालू जी के साथ हैं। नीतीश कुमार यह क्यों भूल रहे हैं कि यह कोई व्यक्तिगत फैसला नहीं था, पार्टी का था जिसके वे नेता थे। जॉर्ज फार्नांडीस ने हमें फोन किया कि हमारी पार्टी खत्म हो जाएगी सिर्फ भाजपा दिखाई पड़ेगी। तब विमान से मैं आया और दस्तखत किया। भाजपा सेहरा लेना चाहती थी कि हम लालू प्रसाद से लड़ रहे हैं। मकसद था कि चुनाव में लालू को नहीं पटक पा रहे तो अदालत में दूसरे तरीके से उन्हें घेरा जाए। मकसद नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बनाना था। जहां तक चारा घोटाले का सवाल है, इसमें सब शामिल हैं। नीतीश बताएं कि उनकी श्याम बिहारी सिन्हा से मुलाकात हुई थी कि नहीं। खुद सुशील मोदी ने कहा है कि नीतीश कुमार ने भी चारा घोटाला का पैसा खाया है। मोदी बताएं कि वे बयान पर कायम हैं या नहीं।’’
सुशील मोदी कहते हैं, ‘‘लालू जी की सजा से मुझे कोई आश्चर्य नहीं हुआ। आश्चर्य यह है कि जिन लोगों ने उन पर मुकदमा दायर किया, शिवानंद तिवारी, वृषण पटेल और प्रेमचंद्र मिश्र वे तमाम लोग लालू के सलाहकार हैं या उनके साथ हैं और आरोप हम पर लगाया जाता है कि हमने फंसा दिया।’’
जो भी हो, यह विवाद इन दिनों बिहार में एक राजनैतिक रूप लेता जा रहा है, जिसके अक्स अगले चुनावों में दिख सकते हैं।
किस मामले में कितनी सजा
1 अक्टूबर 2013: चाईबासा कोषागार से 37.7 करोड़ रुपये निकासी मामले में 5 साल कैद व 25 लाख रुपये जुर्माना
6 जनवरी 2018: देवघर कोषागार से 90 लाख रुपये निकासी मामले में साढ़े तीन साल सजा
24 जनवरी 2018: चाईबासा कोषागार से 33.67 करोड़ रुपये की निकासी मामले में पांच साल
24 मार्च 2018: दुमका कोषागार से से 3.13 करोड़ रुपये निकासी मामले में 7 साल की सजा
16 फरवरी 2022: डोरंडा कोषागार से 139.35 करोड़ रुपये निकासी मामले में पांच साल जेल और 60 लाख रुपये जुर्माना।
लालू जेल यात्रा
अब तक चार मामलों में सात बार जेल में 39 महीने 19 दिन बिता चुके हैं राजद प्रमुख
30 जुलाई 1997: पहली बार 135 दिन
28 अक्टूबर 1998: 73 दिन
5 अप्रैल 2000: 11 दिन
28 नवंबर 2000: एक दिन
3 अक्टूबर 2014: 70 दिन
23 सितंबर 2017 से 17 अप्रैल 2021 तक
16 फरवरी 2022 पांचवें मामले में हुई सजा