बांबे हाईकोर्ट ने सरकारी नौकरियों और शिक्षा में मराठा समुदाय को आरक्षण देने के सरकार के फैसले को वैध करार दिया है लेकिन उसने कहा है कि कोटा 16 फीसदी से घटाकर 12-13 फीसदी किया जाना चाहिए।
शिक्षा में 12 फीसदी और नौकरियों में 13 फीसदी हो आरक्षण
जस्टिस रंजीत मोरे और भारती डांगरे की खंडपीठ ने कहा कि राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग की सिफारिशों के अनुसार कोटे का प्रतिशत घटाया जाना चाहिए। आयोग ने शिक्षा में 12 फीसदी और नौकरियों में 13 फीसदी कोटे की सिफारिश की थी।
सरकार ने आरक्षण के लिए सरकार की प्रक्रिया सही
हाईकोर्ट ने कहा कि हम मानते हैं कि राज्य सरकार ने सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्ग की अलग श्रेणी बनाने और आरक्षण को मंजूरी देने की समुचित कानूनी प्रक्रिया अपनाई है। हालांकि हमारा मानना है कि कोटा 16 फीसदी से घटाकर 12-13 फीसदी किया जाना चाहिए जैसी आयोग की सिफारिश थी।
अनुच्छेद 342(ए) में संशोधन से राज्य के अधिकार अप्रभावित
अदालत ने कहा कि आरक्षण देने के लिए राज्य के अधिकार पर संविधान के अनुच्छेद 342(ए) में हुए संशोधन से कोई असर नहीं पड़ा है। अनुच्छेद 342(ए) के 102वें संशोधन के अनुसार आरक्षण को मंजूरी तभी दी जा सकती है जब किसी समुदाय का नाम तैयार सूची में अंकित हो। हमारा निष्कर्ष है कि राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग द्वारा पेश की गई रिपोर्ट मापने योग्य आंकड़ों पर आधारित है और उसके द्वारा मराठा समुदाय को सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े के तौर वर्गीकृत किया जाना ठीक है।
50 फीसदी से ज्यादा आरक्षण अपवाद स्वरूप
हाईकोर्ट ने कहा कि हमें इसका ज्ञान है कि सुप्रीम कोर्ट ने पहले कहा था कि कोटा 50 फीसदी से ज्यादा नहीं होना चाहिए। लेकिन अपवाद स्वरूप परिस्थितियों में कोटा 50 फीसदी से ज्यादा हो सकता है, बशर्ते वह मापने योग्य आंकड़ों पर आधारित हो।
मेडिकल कोर्सों में पहले ही लागू किया आरक्षण
अदालत का आदेश आने के तुरंत बाद राज्य सरकार ने उसे बताया कि उसने पोस्ट ग्रेजुएट मेडिकल कोर्सों में उसने 16 फीसद तक आरक्षण पहले ही दे दिया है। सरकारी वकील ने अदालत के अनुरोध किया कि इस साल इन कोर्सों के लिए 16 फीसदी बनाए रखने की अनुमति दी जाए। अदालत ने सरकार से इस संबंध में अलग से आवेदन पेश करने का निर्देश दिया।
विरोध में दायर हुई थीं अनेक याचिकाएं
अदालत सरकार द्वारा नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में मराठा समुदाय को 16 फीसदी आरक्षण दिए जाने के राज्य सरकार के फैसले के खिलाफ दायर की गई की याचिकाओं की सुनवाई कर रही थी। महाराष्ट्र विधानसभा ने 30 नवंबर 2018 को मराठा समुदाय को 16 फीसदी आरक्षण देने के लिए एक विधेयक को पारित किया था। सरकार ने इसके लिए उसे सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़ा वर्ग घोषित किया था। 16 फीसदी यह आरक्षण मौजूदा 52 फीसदी आरक्षण के अतिरिक्त है। सरकार के इस कानून के खिलाफ कई याचिकाएं दायर की गई थीं। कुछ याचिकाएं इस कानून के समर्थन में भी दायर की गई थीं।
चुनावी चाल बताया गया था याचिकाओं में
अदालत ने सभी याचिकाओं पर छह फरवरी को सुनवाई शुरू की थी और अप्रैल में पूरी कर ली थी। विरोध करने वाली याचिकाओं में कहा गया था कि मराठा समुदाय के लिए एसईबीसी की नई श्रेणी बनाना सुप्रीम कोर्ट के फैसले के विरुद्ध है जिसमें आरक्षण 50 फीसदी से ज्यादा करने पर प्रतिबंध भी लगाया गया था। उन्होंने सरकार के फैसले को चुनावी चाल और राजनीतिक मकसद से लिया गया कदम भी करार दिया था।