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फिर सामने आई मनसे की गुंडागर्दी, उत्तर भारतीयों के साथ की मारपीट

मराठी मानुष का नारा बुलंद करने वाले राज ठाकरे की पार्टी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) की...
फिर सामने आई मनसे की गुंडागर्दी, उत्तर भारतीयों के साथ की मारपीट

मराठी मानुष का नारा बुलंद करने वाले राज ठाकरे की पार्टी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) की क्षेत्रवादी नफरत की एक और घटना सामने आई है। मनसे के कार्यकर्ताओं ने एक बार फिर से उत्तर भारतीयों के साथ मारपीट की है। इस बार भी मुद्दा नौकरी का है। खबरों के अनुसार मनसे कार्यकर्ताओं ने महाराष्ट्र के सांगली में गैर-महाराष्ट्रीयन लोगों के साथ जमकर मारपीट की है। इस घटना का एक वीडियो भी सामने आया है, जिसमें मनसे कार्यकर्ता लोगों को रोक-रोककर मारपीट कर रहे हैं।

खबरों के अनुसार मंगलवार को एमएनएस के कार्यकर्ता हाथ में लाठी लेकर सड़कों पर उतरे और सामने जो भी उत्तर भारतीय दिखा उसकी बेरहमी से पिटाई करने लगे। कार्यकर्ता लोगों की लाठी-डंडे और लात-घूसों से पिटाई करते देख्‍ाे गए।

दरअसल, राज ठाकरे की पार्टी ने सांगली में 'लाठी चलाओ भैय्या हटाओ' नाम से पर-प्रांतीय हटाओ मुहिम शुरू की है। मनसे का आरोप है कि सांगली स्थित एमआईडीसी में पर-प्रांतीयों को नौकरी दी जा रही है।उनकी मांग है ‌कि यहां 80 फीसदी नौकरी सिर्फ और सिर्फ मराठी लोगों को दी जाए।

मराठी मानुष के मुद्दे पर आंदोलन

आपको बता दें कि फरवरी 2008 में राज ठाकरे ने कथित उत्तर भारतीयों के खिलाफ एक आंदोलन का नेतृत्व किया। 2009 में एग्जाम देने मुंबई आए हिंदी भाषी उम्मीदवारों की पिटाई कर मनसे सुर्खियों में आई थी। ठाकरे की महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) ने हाल ही में गुजराती भाषियों के खिलाफ भी आंदोलन छेड़ा था। इसके तहत मनसे कार्यकर्ताओं ने दादर और माहिम इलाके में कई दुकानों के गुजराती भाषा में लगे बोर्ड जबरदस्ती हटा दिए। पुलिस ने बोर्ड हटाने वाले मनसे के सात कार्यकर्ताओं को हिरासत में भी लिया।

2008 में महाराष्ट्र सरकार को सुप्रीम कोर्ट का नोटिस

उत्तर भारतीयों पर हो रहे हमलों के मद्देनजर सर्वोच्च न्यायालय ने 2008 में महाराष्ट्र सरकार को नोटिस जारी किया था। यह नोटिस प्रदेश में राज ठाकरे के नेतृत्व वाली महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) द्वारा गैर मराठियों और उत्तर भारतीयों के खिलाफ चलाई जा रही मुहिम पर रोक लगाने में सरकार की कथित नाकामी के चलते दिया गया था। उक्त नोटिस तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश के.जी.बालकृष्णन की अध्यक्षता वाली न्यायपीठ के द्वारा जारी किया गया था।

सुप्रीम कोर्ट में दाखिल जनहित याचिका में याचिकाकर्ता सलेक चंद जैन के वकील सुग्रीव दुबे ने कहा था कि मनसे नेता राज ठाकरे के बयानों से भड़की भीड़ ने जब दो उत्तर भारतीय डॉक्टरों अजय और विजय दुबे की हत्या कर दी तब भी राज्य सरकार ने जरूरी कदम नहीं उठाए। उन्होंने यह भी कहा कि मनसे द्वारा किये गए हमलों पर देशभर में तीव्र प्रतिक्रियाएं हुईं, जिससे देश की अखंडता और एकता पर खतरा पैदा हो गया है।

याचिका में उन्होंने केंद्र सरकार पर भी आरोप लगाया कि वह भी इन घटनाओं की मूक दर्शक बनी रही और संविधान की धारा 355 के तहत अपने अधिकारों का प्रयोग कर राज्य सरकार को इस संवैधानिक संकट से निपटने के लिए जरूरी दिशा-निर्देश नहीं दिये।

कोर्ट से फटकार के बाद राज ठाकरे को मिली थी जमानत

उत्तर भारतीयों के खिलाफ हुई हिंसा के बाद राज ठाकरे को गिरफ्तार कर सशर्त जमानत मिली थी। विक्रोली मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट के जमानत के आदेश के मुताबिक "राज कभी भी सामाजिक द्वेष फैलाने वाला न तो भाषण देंगे और न ही लेख लिखेंगे। एक बॉन्ड पेपर भर कर ये आश्वस्त करना होगा कि वो कभी भी प्रांतवाद को लेकर जहर बुझी भाषा का इस्तेमाल नहीं करेंगे और न ही भीड़ या एक से अधिक संगठित दल को उकसाने की कोशिश करेंगे।"

खुद राज ठाकरे के वकील ने इस आदेश की तस्दीक की थी। राज ठाकरे के वकील अखिलेश चौबे ने कहा था कि विक्रोली कोर्ट ने राज को ये एह‌तियात बरतने को कहा था कि वह पुलिस की मदद करें और सामाजिक द्वेष न फैलाएं।

2008 में उत्तर भारतीयों के खिलाफ हिंसा

फरवरी 2008 में राज ठाकरे ने यूपी और बिहार के लोगों के साथ मनसे के आंदोलन का नेतृत्व किया था। शिवाजी पार्क की एक रैली में राज ने चेतावनी दी, अगर मुंबई और महाराष्ट्र में इन लोगों की दादागीरी जारी रही तो उन्हें महानगर छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया जाएगा। आश्चर्यजनक रूप से देश की दोनों राष्ट्रीय पार्टियां कांग्रेस और भाजपा उसकी इस गुंडागर्दी पर मूकदर्शक बनी रहीं।

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