उत्तर प्रदेश सरकार ने जिलों का नाम बदलने के साथ महाभारत और रामायण काल से जुड़ी विलुप्त हो रही नदियों को संरक्षित करने का बीड़ा उठाया है। इसके लिए सरकार की ओर से आठ नदियों का चिह्निकरण किया गया है और इन्हें पुनर्जीवित करने के लिए एक सेल का गठन कर डीपीआर बनाने की कार्यवाही शुरू की गई है।
राज्य सरकार की ओर से पहली बार प्रदेश में नदी संरक्षण एवं पुनर्जीविकरण सेल का गठन किया गया है। जिसका अध्यक्ष सचिव सिंचाई को बनाया गया है। इन्हें पुनर्जीवित करने के लिए आठ नदियों का चिह्निकरण कर कार्य शुरू किया गया है। गोमती नदी का उद्गम स्थल पीलीभीत है। यह लखनऊ होते हुए जौनपुर के आगे गंगा में मिलती है। गोमती नदी का श्रमदान के माध्यम से पीलीभीत जिले में 48 किमी की खुदाई की गई है। इस कार्य में जनजागरण कर जनप्रतिनिधि, सामाजिक संगठनों और कारोबारियों से सहयोग लिया गया था। ऐसे ही बरेली और संभल से अरिल नदी, बदायूं से सोत, प्रतापगढ़ से सई, अयोध्या में तमसा, बस्ती में मनोरमा, गोरखपुर में आमी, वाराणसी में वरना नदी विलुप्त है। इनका भी पुनर्जीविकरण करने के लिए प्रयास शुरू किए गए हैं, लेकिन अभी धरातल पर काम नहीं हो पाया है।
इस बारे में सिंचाई मंत्री धर्मपाल सिंह का कहना है कि प्रदेश में विलुप्त आठ नदियों का चिह्निकरण किया गया है। इनका उद्गम स्थल मैदानी है। ये सभी नदियां महाभारत और रामायण काल से जुड़ी हैं और गंगा में मिलती हैं। उनका कहना है कि देश की संपदा सोना चांदी, रुपया पैसा, धन दौलत नहीं है। देश की संपदा धरती पर बहने वाली नदियां हैं, जो आज विलुप्त हो रही हैं। ग्राउंड वाटर खत्म हो रहा है। 2020 में दिल्ली और बैंगलोग में ग्राउंड वाटर खत्म हो जाएगा। प्रदेश में बुंदेलखंड का महोबा जिला भी इस श्रेणी में जल्द आ जाएगा। इसे देखते हुए योगी सरकार ने पहली बार कार्यवाही शुरू की है।
महोबा में कराई जाएगी हेलीकाप्टर से कृत्रिम वर्षा
सिंचाई मंत्री का कहना है कि अगले साल मई-जून माह में महोबा जिले में हेलीकाप्टर से कृत्रिम बारिश कराई जाएगी। इसका मॉडल आईआईटी कानपुर ने तैयार किया है, जो चीन की टेक्नालॉजी से काफी सस्ता है। इसके लिए चीनी टेक्नालॉजी से लागत साढ़े दस करोड़ रुपए पड़ रही थी, लेकिन आईआईटी कानपुर की टेक्नालॉजी से केवल 5.5 करोड़ में होगी।