मुख्य न्यायधीश डीबी भोसले और न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा की एक खंडपीठ ने इस मामले की सीबीआई से जांच कराने की मांग वाली जनहित याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए यह आदेश पारित किया। इससे पहले, इस अदालत ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद 20 फरवरी को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
इस मामले की सीबीआई जांच की मांग कर अदालत का रुख करने वालों में दिल्ली स्थित भाजपा नेता और सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय और मथुरा के निवासी विजय पाल सिंह तोमर शामिल हैं। इसके अलावा, पिछले साल हुई इस झड़प में मारे गए पुलिस अधीक्षक मुकुल द्विवेदी की पत्नी अर्चना द्विवेदी और भाई प्रफुल्ल द्विवेदी द्वारा बाद के चरण में अर्जियां दायर की गई थीं।
राज्य में विधानसभा चुनावों के बाकी बचे दो चरणों से पहले आया यह आदेश उत्तर प्रदेश में सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी के लिए एक बड़ा झटका है। राज्य सरकार इस मामले की सीबीआई जांच के खिलाफ रही है। उसने उच्च न्यायालय के एक सेवानिवृत्त न्यायधीश की अगुवाई में एक जांच आयोग गठित किया है।
दिल्ली से जारी एक बयान में उपाध्याय ने इस फैसले की यह कहते हुए सराहना की, कि पिछले साल जून में जवाहर बाग में हुई यह हिंसा कानून व्यवस्था का कोई साधारण मामला नहीं था। यह करीब 5,000 करोड़ रुपये मूल्य की एक सरकारी जमीन पर स्वयंभू नेता राम वृक्ष यादव और उसके अनुयायियों द्वारा किए गए अवैध कब्जा से जुड़ा था।
उल्लेखनीय है कि उत्तर प्रदेश सरकार ने जनवरी, 2014 में राम वृक्ष यादव के संगठन स्वाधीन भारत विधिक सत्याग्रह को जवाहर बाग के भीतर दो दिन के लिए विरोध प्रदर्शन करने की अनुमति दी थी, लेकिन इस समूह के सदस्यों ने इस विशाल पार्क पर दो साल से अधिक समय तक कब्जा जमाए रखा।
उच्च न्यायालय के एक आदेश के बाद भारी हिंसा के बीच इस पार्क को खाली कराया गया। अवैध रूप से रिहाइश के दौरान इस पार्क में बनाई गईं झोपड़ियों से भारी मात्रा में हथियार और विस्फोटक बरामद किए गए थे। (एजेंसी)