झारखण्ड जनाधिकार महासभा व उससे जुड़े संगठनों ने दूसरे राज्य में फंसे मजदूरों को लाने और उनकी स्थिति को लेकर मदद करने की मांग की है। महासभा का कहना है कि अफसोसजनक है कि लॉकडाउन के एक माह बाद भी, केंद्र व राज्य सरकार ने अभी तक सुचारू रूप से इस आपदा के समाधान की ओर काम नहीं किया है। पहले तो कोविद-19 से निपटने की तैयारी में देरी हुई, उसके बाद ऐसा लगता है जैसे केंद्र सरकार ने तय किया हो कि वे जांच की दर नहीं बढ़ाएंगे और इसी उम्मीद में रहेंगे कि लॉकडाउन से ही महामारी समाप्त हो जाएगी।
महासभा का कहना है कि अधिकांश देशों में किए गए जांच के अनुपात में भारत में बहुत कम जांच की गयी है और अन्य राज्यों की तुलना में झारखण्ड में बहुत कम। अभी तक के विश्व्यापी अनुभव से यह साफ है कि इस महामारी को रोकने के लिए मुख्य रूप से बड़े पैमाने में जाँच और संक्रमित लोगों के आइसोलेशन की ज़रूरत है।
मजदूरों को अभी तक राहत नहीं
संस्था का कहना है कि झारखंड के लाखों मजदूर, बिना राशन के, अन्य राज्यों में फंसे हुए हैं। केंद्र सरकार ने अभी तक इन मजदूरों के लिए कोई खास राहत की घोषणा नहीं की है। 25 दिनों के बाद राज्य सरकार ने फंसे हुए मजदूरों को दो हजार रुपये देने की घोषणा की लेकिन पंजीकरण व इसके लिए उपलब्ध राशि की अस्पष्टता के कारण, यह मदद पहुंचने में भी देरी होने की संभावना है। इसे ठीक करने की जरूरत है। सबसे पहले सभी मज़दूर अपने घर जाना चाहते हैं लेकिन केंद्र सरकार मज़दूरों को, बिना भोजन-पानी के, छोटे कमरों में बंद या खुले में सड़क पर छोड़कर, पूर्ण रूप से संतुष्ट नजर आती है। अधिकांश मज़दूरों को अभी तक लॉकडाउन के अवधि की मज़दूरी भी नहीं मिली है।
देश में नजर आ रही है बढ़ती भुखमरी
महासभा का कहना है कि केंद्र सरकार को शायद झारखंड सहित पूरे देश में बढ़ती भुखमरी नज़र नहीं आ रही है। पूरे राज्य से भुखमरी की खबरें, खास कर के बिना राशन कार्ड वाले परिवारों की, आ रही है। लॉकडाउन के दौरान कम से कम तीन लोगों की मौत भूख सम्बंधित कारणों से हो चुकी ह। देश के खाद्य भंडार में ज़रूरत से तीन गुना अधिक राशन उपलब्ध होने के बावजूद (770 लाख टन) केंद्र सरकार ने अभी तक जन वितरण प्रणाली को सार्वभौमिक नहीं किया है। झारखंड के ग्रामीण व शहरी बस्ती क्षेत्रो में सबको राशन सुनिश्चित करने के लिए खाद्य भंडार में उपलब्ध राशन का मात्र एक प्रतिशत लगेगा!
सांप्रदायिक रंग देना चिंताजनक
यह भी अत्यंत चिंताजनक है कि पिछले कुछ सप्ताह में भाजपा और कई मीडिया कंपनियों द्वारा कोरोना के फैलाव को एक साम्प्रदायिक रंग देने की कोशिश की जा रही है। तब्लीग़ी जमात कार्यक्रम के बाद से सीधे तौर पर एक प्रोपगैंडा तैयार किया जा रहा है कि वाइरस को फ़ैलाने के लिए मुसलमान ही ज़िम्मेदार है। झारखण्ड सरकार द्वारा सोशल मीडिया पर इन संदेशों को फैलने से रोकने की कोशिश सराहनीय है। संस्था के पदाधिकारी भरत भूषण चौधरी ने बताया कि केंद्र और राज्य सरकार को तुरंत कोरोना जांच और कोरेंटाईन की सुविधा को बढ़ाना चाहिए। पीपीई किट की व्यवस्था करनी चाहिए, साथ ही स्वास्थ सुविधाओं पर खर्च बढ़ाना चाहिए। राज्य सरकारों को तुरंत जन वितरण प्रणाली को दुरुस्त कर राशन वितरण सुगम बनाना चाहिए। मध्याह्न भोजन और आंगनवाड़ी से मिलने वाले पोषण अधिकार भी भी बढ़ाया जाए।