देश की राजधानी दिल्ली के दक्षिण पूर्वी जिले में कूड़े से बनने वाली बिजली परियोजना की जनसुनवाई रद्द हो गई है। भारी विरोधों के बीच दिल्ली प्रदूषण समिति और जिलाधिकारी को यह जनसुनवाई रद्द करनी पड़ी।
दरअसल, दिल्ली में कूड़े से बिजली बनाने वाली तिमारपुर-ओखला वेस्ट मेनेजमेंट कंपनी के सुखदेव विहार के पास ओखला में चल रहे 16 मेगावॉट के प्लांट को 40 मेगावॉट करने के लिए बुधवार को 11:00 बजे जिलाधिकारी, साउथ ईस्ट जिला दिल्ली के ऑफिस में जन सुनवाई रखी गई थी। विरोध करने वाले संगठनों का कहना है कि यह जनसुनवाई गैरकानूनी थी। साथ ही 15 सितंबर 2006 पर्यावरण आकलन अधिसूचना के अनुसार जनसुनवाई परियोजना स्थल के पास ही होनी चाहिए थी, लेकिन यह काफी दूर रखी गई। अचानक इसे दिल्ली उपनिदेशक शिक्षा विभाग के परिसर में जनसुनवाई को शिफ्ट कर दिया गया था।
क्यों किया गया विरोध
जनसुनवाई का विरोध करने वाले संगठनों का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट में 16 मेगावॉट की परियोजना के खिलाफ अभी केस चल रहा है। इसलिए इसे 40 मेगावॉट की करने पर जनसुनवाई कानूनी रूप से गलत थी। जन सुनवाई की सूचना मिलते ही आरडब्ल्यूए के जिम्मेदारों और संगठनों ने और व्यक्तिगत लोगों ने दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और जिलाधिकारी को पत्र लिखे थे। 15 जनवरी को एक प्रतिनिधिमंडल भी जनसुनवाई को रोकने का आग्रह किया था।
बता दें कि पर्यावरण पर काम कर रहे कई संगठन इसे लेकर सवाल उठाते रहे हैं। संगठनों का कहना है कि दिल्ली में प्रति दिन निकलने वाला 10 हजार टन कूड़ा एक बड़ी समस्या बनता जा रहा है। ऐसे में कूड़े से बिजली बनाना काफी विशेषज्ञों को व सरकारों को भी एक बहुत अच्छा पर्यावरणीय विकल्प लगता है। मगर सवाल यह है कि इस विकल्प की तकनीक कौन सी होनी चाहिए? जब पास के राज्यों की पराली जलने से दिल्ली के लोगों पर असर पड़ता है प्रदूषण में वृद्धि होती है तो दिल्ली में ही इस प्रदूषण पैदा करने वाली, जमीन के पानी को खराब करने वाली, लोगों के स्वास्थ्य पर बुरा असर डालने वाली परियोजना को चलाते हुए आगे क्यों बढ़ाया जा रहा है?
किसने किया विरोध
सुखदेव विहार के स्थानीय लोग, जसोला विहार के कई पोकेट्स और सैक्टर के लोग, अबुल फजल, हाजी कालोनी, गफ्फार मंजिल, जौहरी फार्म, शाहीन बाग और दिल्ली के अन्य स्थानों से लोग इस जनसुनवाई के खिलाफ पहुंचे थे। जन सुनवाई शुरू होने के समय लोगों ने किसी माइक को चलने दिया, ना कोई कैमरा ऑन होने दिया। बाद में सब ने हस्ताक्षर करके केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय को, दिल्ली के मुख्य सचिव को, प्रदूषण नियंत्रण समिति को और साउथ ईस्ट दिल्ली जिलाधिकारी को पत्र देकर निश्चित किया कि यह जनसुनवाई रद्द मानी जानी चाहिए।