कोरोना के बढ़ते संक्रमण के बीच विभिन्न प्रदेशों में लॉकडाउन और वीकेंड कर्फ्यू के बीच झारखंड के कामगारों को पुराने दौर की चिंता सता रही है। काम बंद होने, बंद होने की आशंका के मद्देनजर प्रवासी कामगार वापस लौटने लगे हैं। गढ़वा का इम्तेयाज मुंबई से लौटा है, पेंटर का काम करता है। उसका भाई परवेज भी इलेक्ट्रिक फिटिंग का काम करता है। दोनों लौटे, कहते हैं कि जब संकट होता है तो महानगर में कोई मददगार नहीं होता। रोजाना महाराष्ट्र, पंजाब, दिल्ली, सूरत से हजारों की संख्या में कामगार वापस लौट रहे हैं।
हालांकि पिछली बार की तरह की अफरातफरी नहीं है। मगर लौटने वाले लोगों की जांच न हेने से संक्रमण के और तेज होने का खतरा मंडरा रहा है। पश्चिम बंगाल के चुनावी दौरे पर गये, कोलकाता से राजधानी से लौटे पत्रकार मित्र ने बताया कि दोपहर में ट्रेन रांची स्टेशन पहुंची। किसी की जांच नहीं हुई। हालांकि आने वाले लोगों की जांच का प्रशासन दावे करता रहता है। दिल्ली से आने वाली ट्रेनों से ही रोजाना कोई एक हजार से अधिक लोग आ रहे हैं। मगर स्टेशन पर ऑपचारिकता के रूप में कोरोना जांच के लिए महज चार-पांच काउंटर रहते हैं। ऐसे में लंबी यात्रा कर लौटने वालों के लिए जांच की खातिर दो-चार घंटे का इंतजार भारी पडता है। अधिसंख्य लोग किनारे से निकल लेते हैं। जांच हो भी गई और निकले तो रिपोर्ट बाद में आती है। ऐसे में ऑटो, टैक्सी से सफर करने वाले दूसरों के लिए खतरा हैं।
नौ लाख प्रवासी मजदूर
पिछले साल देशव्यापी लॉकडाउन के कारण अफरातफरी मची थी। तब आने वाले कामगारों का सरकार ने डाटा बेस तैयार किया था। पताा लगा कि नौ लाख प्रवासी कामगार लौटे हैं। उनके स्क्लि के हिसाब से व्योरा तैयार किया गया था ताकि जरूरत के हिसाब से उन्हें यहीं काम उपलब्ध कराया जा सके। मगर मनरेगा को छोड़ और कुछ नहीं हो सका। सरकार हवाई जहाज से लेकर विशेष बस, ट्रेन के माध्यम से फंसे हुए कामगारों को मंगवाती रही। चारों तरफ दीदी किचन, मुख्यमंत्री किचन, स्वयंसेवी संस्थाओं द्वारा भोजन का इंतजाम था। गांव तक पहुंचाने के लिए सरकारी व्यवस्था।
गांव जाने वाले लोगों के लिए भी खुद ग्रामीणों ने रास्ते बंद कर दिये थे। गांव के बाहर स्कूल, पंचायत भवनों में तात्कालिक तौर पर उनके ठहरने, भोजन की व्यवस्था की गई थी ताकि संक्रमण न फैले। इस बार सरकार का पूरा ध्यान अस्तालों में बेड, ऑक्सीजन, दवाओं और अंतिम संस्कार की चरमराई हुई व्यवस्था पर टिकी है। दीदी किचन, पांच रुपये में दालभात की कोई चर्चा तक नहीं। गांव वापस पहुंचाने का भी कोई इंतजाम नहीं। हकीकत यह भी है कि आने वालों की तादाद वैसी नहीं है। हालांकि पिछलीबार जितनी संख्या में लोग वापस लौटे थे वे वापस काम करने नहीं गये। राज्य के खाद्य एवं उपभोक्ता संरक्षण सह वित्त मंत्री रामेश्वर उरांव कहते हैं कि प्रवासी महदूर फिर वापस लौट रहे हैं उन्हें रोजगार उपलब्ध कराना सरकार की जिम्मेदारी है। गरीबों को भोजन के लिए दीदी किचन, मुख्यमंत्री किचन और घर-घर अनाज पहुंचाने जैसे कदम उठाये जायेंगे।