उत्तराखंड की धामी सरकार ने लंबे समय से चली आ रही हाईकोर्ट को नैनीताल से शिफ्ट करने की मांग पर अपनी सहमति जता दी है। गौर से देखा जाए तो सरकार की यह फैसला तमाम पहतुओं से सभी के हित में ऐसे में इस शिफ्टिंग को केवल पहाड़ से पलायन की नजर से देखना उचित नहीं माना जा सकता।
राज्य गठन के वक्त उत्तराखंड हाईकोर्ट की स्थापना नैनीताल में की गई थी। कुछ ही समय बाद जब वादकारियों की संख्या बढ़ने लगी तो परेशानियां भी बढ़ने लगी। हाईकोर्ट को मैदानी क्षेत्र में लाने की मांग जोर पकड़ने लगी। खुद हाईकोर्ट ने भी इस बारे में अवाम से सुझाव लिए। लेकिन कोई भी सरकार इस बारे में फैसला नहीं ले सकी।
अब धामी सरकार ने हाईकोर्ट को नैनीताल से हल्द्वानी शिफ्ट करने पर सहमति जताई तो कुछ लोग इसका विरोध यह कहते हुए कर रहे हैं कि यह पहाड़ से पलायन की स्थिति पैदा करने जैसा है। दूसरी इस शिफ्टिंग के पक्ष में लोगों के अलग ही तर्क हैं। उनका कहना है कि इस फैसला पूरी तरह से आम लोगों के साथ ही पर्यटकों के हित में है।
पक्ष में तर्क दे रहे लोगों का कहना है कि हाईकोर्ट में वादकारियों की संख्या बढ़ रही है। इससे वहां आए दिन जाम की समस्या रहती है। तमाम स्थानों से आने-जाने वालों को आवागमन और खानपान के साथ निवास पर भारी पैसा खर्च करना पड़ता है। हल्द्वानी में यातायात के लिए सड़के अलावा रेल और हवाई सुविधा भी उपलब्ध है। यहां वादकारियों को कम पैसा खर्च करना पड़ेगा।
कहा जा रहा है कि धामी सरकार के इस फैसले से ब्रिटिश पीरियल में बने इस टूरिस्ट स्थल नैनीताल की सांस्कृतिक विरासत भी बचेगी। न्यायिक अधिकारियों और कर्मचारियों के आवास के लिए तमाम निर्माण भी नहीं करने पड़गे। भीड़ कम होने से टूरिस्ट सीजन में कारोबारियों की आय भी बढ़ेगी। इस तमाम कामों के लिए हल्द्वानी में पर्याप्त जमीन उपलब्ध भी है।
जाहिर है कि इन हालात में हाईकोर्ट की नैनीताल से हल्द्वानी शिफ्टिंग के फैसले का स्वागत किया जाना चाहिए। यही वजह है कि मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस के अध्यक्ष अध्यक्ष करन माहरा ने भी इस फैसले का स्वागत किया है। ऐसे में केवल विरोध के लिए विरोध करने को उचित नहीं कहा जा सकता।