सेना ने शोपियां फर्जी मुठभेड़ में शामिल अपने अधिकारियों के खिलाफ सुबूत एकत्र करने का काम पूरा कर लिया है। इस मुठभेड़ में राजौरी जिले के तीन नागरिकों की मौत हो गयी थी।
आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि फर्जी मुठभेड़ में शामिल जवानों की पहचान उजागर नहीं की गयी है। जांच संबंधी सभी औपचारिकताएं पूरी होने के बाद सेना के दो अधिकारियों के कोर्ट मार्शल की कार्रवाई शुरू हो सकती है।
रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता कर्नल राजेश कालिया ने इसकी पुष्टि करते हुए बताया कि सुबूत एकत्र करने के कार्य की रिकार्डिंग की प्रक्रिया पूरी कर ली गयी है। आगे की कार्रवाई के लिए कानूनी सलाहकारों की मदद ली जा रही है।
कर्नल कालिया ने कहा कि भारतीय सेना अभियानों की नैतिकता को लेकर पूरी तरह प्रतिबद्ध है। सेना के कानून के मुताबिक इस कार्रवाई की जानकारी उचित समय पर दी जायेगी।
दरअसल, सेना ने 18 जुलाई 2020 को शोपियां के अमशीपोरा में एक मुठभेड़ में तीन अज्ञात आतंकवादियों को मार गिराने का दावा किया था। सोशल मीडिया पर मारे गए आतंकवादियों की तस्वीरें आने के बाद उनके परिजनों ने इसका खंडन किया था। परिजनों के मुताबिक तीनों युवकों का आतंकवादियों से कोई संबंध नहीं था और वे शोपियां में श्रमिक के रूप में काम कर रहे थे।
इसके बाद सेना और जम्मू-कश्मीर पुलिस ने इस मामले में अलग-अलग जांच के निर्देश दिए थे।
अगस्त में इस मामले में जांच शुरू हुई थी। कोर्ट ऑफ इनक्वायरी ने सितंबर महीने में ही इसकी जांच पूरी कर ली थी और प्राथमिक जांच में सेना के अधिकारियों की भूमिका को लेकर संदेह व्यक्त किया था। इसके बाद सेना अधिनियम के तहत इन पर कार्रवाई शुरू हुई थी।
पुलिस की एक टीम ने 13 अगस्त को राजौरी जाकर मारे गए युवकों के परिजनों के डीएनए नमूने लिए थे। यह डीएनए नमूने मुठभेड़ में मारे गए युवकों के नमूनों से मेल खाये जिसके बाद अबरार अहमद, इम्तियाज अहमद और मोहम्मद इबरार नामक युवकों के शवों को उनके परिजनों को सौंप दिए गए और अक्टूबर में उनका अंतिम संस्कार कर दिया गया।