जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद-370 हटाने के मामले में आज यानी बुधवार को भी सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होगी। मंगलवार को सुनवाई के दौरान कई वरिष्ठ वकीलों ने मामले को बड़ी बेंच को सौंपने की मांग की थी, हालांकि अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने मामले को पांच से अधिक जजों की संविधान पीठ में ना भेजे जाने की वकालत की।
फिलहाल, सुप्रीम कोर्ट में पूरे मामले की सुनवाई जस्टिस एनवी रमना की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय पीठ कर रही है, जिसमें जस्टिस एसके कौल, जस्टिस आर सुभाष रेड्डी, जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस सूर्यकांत शामिल हैं।
बड़ी पीठ को मामला भेजने के पक्ष में नहीं अटार्नी जनरल
केंद्र की ओर से अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने इस मामले को पांच से अधिक जजों की संविधान पीठ में नहीं भेजे जाने की वकालत की तो वहीं हस्तक्षेपकर्ताओं की ओर से कहा गया कि कोर्ट को पांच से अधिक न्यायाधीशों की बड़ी पीठ को मामला भेजने के लिए कहा जाए। हालांकि दूसरे वकीलों और अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने इस पर आपत्ति भी जताई।
याचिकाकर्ताओं की ओर से सुप्रीम कोर्ट में दी गई ये दलील
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं की ओर से सुप्रीम कोर्ट में दलील दी गई कि राष्ट्रपति के पास अनुच्छेद-370 के तहत जम्मू-कश्मीर को दिए गए विशेष दर्जे को रद्द करने की अधिसूचना जारी करने की कोई शक्ति तब तक नहीं है जब तक कि वहां की सरकार सदन में प्रस्ताव पारित ना कर दे।
'370 एक सुरंग जैसा जिसकी वजह से केंद्र-राज्य के बीच संबंध’
वरिष्ठ वकील दिनेश द्विवेदी ने मंगलवार को अपना पक्ष रखते हुए कहा था कि दरअसल 370 एक सुरंग है जिसके माध्यम से केंद्र और राज्य के बीच संबंध बनाए रखा गया और शासित किया गया है। उन्होंने आगे कहा कि जम्मू-कश्मीर राज्य केवल अनुच्छेद 370 की मदद से ही भारत संघ का हिस्सा बनता है। यहां तक कि जम्मू-कश्मीर की विशेष स्थिति को संविधान के निर्माताओं ने भी स्वीकार किया था और माना था कि राज्य स्वतंत्र रहेगा।
'जियो और जीने दो' के सिद्धांत के साथ काम करना चाहिए
दिनेश द्विवेदी ने कहा था कि जम्मू-कश्मीर संविधान बनने के बाद भारतीय संविधान यहां काम करना बंद कर देता है। जम्मू-कश्मीर का संविधान ही जम्मू-कश्मीर के संविधान में संशोधन करने की शक्ति रखता है, भारत का संविधान नहीं। लिहाजा इसमे 'जियो और जीने दो' के सिद्धांत के साथ काम करना चाहिए।