राज्य के सामाजिक न्याय मंत्री दिलीप कांबली का कहना है ‘ जो स्कूल सरकार द्वारा बनाए गए पाठ्यक्रम का अनुसरण नहीं करेंगे, उन्हें स्कूल नहीं माना जाएगा। इस प्रकार मदरसों और ऐसे किसी भी धार्मिक संस्थान में पढ़ने वाले बच्चों को छात्र भी नहीं माना जाएगा, जो केवल धर्म संबंधी शिक्षा ले रहे हैं।’
महाराष्ट्र में भारतीय जनता पार्टी की सरकार है। हालांकि सरकार का दावा है कि सरकार ने मदरसों से कहा था कि अगर वे सरकारी अनुदान चाहते हैं तो अपने पाठ्यक्रम में दूसरे विषयों को शामिल करें। अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री एकनाथ खडसे का कहना है कि हम चाहते हैं कि अल्पसंख्यक समुदाय जीवन के तमाम आयामों में तरक्की करे। इसलिए धार्मिक शिक्षा के साथ-साथ दूसरे विषयों की जानकारी भी जरूरी है।
राज्य सरकार के इस फैसले की तीखी आलोचना हो रही है। मुज्जफरनगर में पैगाम-ए-इंसानियत चलाने वाले आसिफ राही का कहना है ‘जहां तक मेरी मालूमात है कि कुछ समय पहले गृहमंत्रालय ने मदरसों पर एक रिर्पोट मंगवाई थी, जिसमें कहीं भी मदरसों में कौम के खिलाफ शिक्षा देने वाली कोई बात सामने नहीं आई। मदरसों में दीन की तालीम दी जाती है जबकि गणित और साइंस दुनिया की तालीम है।’ आसिफ राही के अनुसार ,लोकतंत्र हमें यह हक देता है कि हम दीन की तालीम दें। अपने तरीके से रहें और यह हक तमाम लोगों को है।
कई मुस्लिम संगठन इसे लोकतंत्र के खिलाफ कदम बता रहे हैं। हरियाणा के गुड़गांव जिले में कॉल फॉर पीस सोसाइटी चलाने वाले इस्लामुद्दी साहब का कहना है कि ‘बेहतर है कि सरकारें हमारे काम में दखल न दें। जहां दूसरे विषयों की पढ़ाई होती है वहां हमने कभी कहा है कि कुरान शरीफ पढ़ाएं?’ इस्लामुद्दीन के अनुसार मदरसों में कुरान शरीफ याद करवाने के अलावा अरबी भाषा सिखाई जाती है। अगर मदरसों में दूसरे विषयों की पढ़ाई होने लगी तो इस्लामिक शिक्षा के लिए वक्त नहीं बचेगा। वह कहते हैं ‘कुरान हमारी जिंदगी है।’
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष शहजाद आलम बर्नी भी काफी खफा हैं। वह कहते हैं, पढ़ाई किसी भी माध्यम और भाषा में हो सकती है, शर्त हैं कि वह समाज को सभ्य बनाए।‘ बर्नी के अनुसार, साइंस और गणित पढ़ने वाले लोग क्या ज्यादा सभ्य होते हैं? समाज को ज्यादा बेहतर बनाते हैं?