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ये हैं टॉप नक्सली कमांडर, जिनको आज तक नहीं पकड़ पाई सरकार, एक करोड़ तक का है इनाम

छत्‍तीसगढ़ के बीजापुर व सुकमा जिले की सीमा पर नक्‍सलियों ने घेरकर 22 जवानों को शहीद कर अपनी मजबूत...
ये हैं टॉप नक्सली कमांडर, जिनको आज तक नहीं पकड़ पाई सरकार, एक करोड़ तक का है इनाम

छत्‍तीसगढ़ के बीजापुर व सुकमा जिले की सीमा पर नक्‍सलियों ने घेरकर 22 जवानों को शहीद कर अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज करा दी है। माओवादी फिर चर्चा में हैं। सुरक्षा बलों के जवान, माओवादी सेंट्रल कमेटी के सदस्‍य हिड़मा को घेरने उसके गांव पहुंचे थे। झारखण्‍ड में भी इस तरह के कई हिड़मा सक्रिय हैं। जंगल, पहाड़, दुर्गम रास्‍ते, असंतोष से उपजा आक्रोश माओवादियों के पड़ाव, प्रशिक्षण और पांव पसारने के लिए झारखण्‍ड उर्वर भूमि है। कोयला खदान और दूसरे माइनिंग क्षेत्र, सड़क आदि निर्माण के काम लेवी के लिए आकर्षण का केंद्र हैं।

एक करोड़ से एक लाख के इनामी

यहां भी एक लाख से एक करोड़ के डेढ़ सौ से अधिक इनामी नक्‍सली हैं। भाकपा माओवादी पोलित ब्‍यूरो सदस्‍य, 24 परगना, पश्चिम बंगाल प्रशांत बोस उर्फ किशन दा, इसी रैंक के गिरिडीह के मिसिर बेसरा उर्फ भाष्‍कर पर एक करोड़ रुपये का इनाम है। इसी तरह भाकपा माओवादी सेंट्रल कमेटी के सदस्‍य, मिदनापुर, पश्चिम बंगाल के असीम मंडल उर्फ आकाश, इसी रैंक के पीरटांड गिरिडीह के अनल दा उर्फ तूफान के सिर पर भी झारखण्‍ड पुलिस ने एक करोड़ रुपये का इनाम घोषित कर रखा है। रांची, खूंटी, लातेहार, गुमला, सिमेडागा आदि इलाकों में आतंक मचाने वाले पीएलएफआइ ( पीपुल्‍स लिबरेशन फ्रंट ऑफ इंडिया) के सुप्रीमो खूंटी जिला निवासी दिनेश गोप पर 25 लाख, इसी संगठन के गुमला निवासी मार्टिन केरकेट्टा, टीएसपीसी (तृतीय सम्‍मेलन प्रस्‍तुति समिति ) के रीजनल कमेटी के आक्रमण गंझू, जेजेएमपी के जोनल कमेटी के पप्‍पू लोहरा पर दस लाख रुपये के इनाम हैं। अनेक नक्‍सलियों पर 25, 15, 10, 5, एक लाख रुपये के इनाम हैं बीच-बीच में इस पर संशोधन होता रहता है। और भी संगठन हैं मगर वामपंथी उग्रवाद के नाम पर संक्रिय हैं मगर आपराधिक गिरोह की तरह काम करते हैं। कुछ आपराधिक गिरोह रहे जो नक्‍सली संगठन के रूप में अपना आकार दे दिया। आये दिन नक्‍सलियों की पुलिस से मुठभेड़ होती रहती है, मारे जाने, सरेंडर करने, गिरफ्तारी की खबरें आती रहती हैं।

यह है इनका तौर तरीका

पुलिस की पहुंच से दूर जंगली, पहाड़ी इलाके इनका ठौर होते हैं। सुरक्षा बलों जैसी वर्दी, आधुनिक हथियारों से लैस दस्‍ते तैनात रहते हैं। भर्ती में युवाओं के आकर्षण के लिए समय-समय पर युवतियों की भर्ती होती है। धमकी देकर जबरिया भी युवाओं, किशोरियों को अपने दस्‍ते में शामिल करते हैं। जिनसे हथियार ढोने, खाना बनाने, सेवा करने आदि के काम लिये जाते हैं। कई मौकों पर भागी हुई बच्चियों ने शारीरिक शोषण की शिकायत पुलिस से की है। कोड वर्ड के आधार पर इनका मूवमेंट होता है, रात्रि विश्राम के दौरान भी चौकस पहरेदारी। छापेमारी में कई बार हथियार बनाने के कारखाने भी पकड़े गये। कोयला और दूसरे खान यहां भरे पड़े हैं ये लेवी के रूप में वसूली के बड़े केंद्र बन गये हैं। आये दिन कब्‍जे को लेकर नक्‍सलियों में आपसी टकराव भी होते रहते हैं। झारखण्‍ड अफीम उत्‍पादन का बड़ा केंद्र है, यह भी नक्‍सलियों के आश्रय में पनपता है।सड़क और दूसरे निर्माण के काम में ठेकेदारों, बड़े किसानों, उद्योगपतियों से लेवी की उगाही तो होती ही है। कोरोना काल में निर्माण और ठेके का काम मंदा पड़े तो व्‍यापारियों से वसूली के लिए छोटे गिरोहों की मदद से शहर में इनकी घुसपैठ बढ़ गई। राजभवन और नगर निगम के सामने तक नक्‍सलियों ने पोस्‍टर चिपका दिये। 

बदलता रहता है चेहरा

सरकारें आती हैं जाती हैं मगर नक्‍सलियों का प्रभाव भी उसी अनुरूप घटता बढ़ता रहता है। सदन में भी नेताओं, सरकारों पर नक्‍सलियों के संरक्षण के आरोप लगते रहते हैं तो पुलिस अधिकारी नक्‍सलवाद के खात्‍मे का सपना दिखाते रहते हैं। घालमेल कुछ इस कदर है कि कुछ नक्‍सल मूवमेंट से निकलकर सदन तक पहुंच गये। एक करोड़ के इनमी अरविंद का भी दौर था। छत्‍तीसगढ़, महाराष्‍ट्र और बिहार में भी पचास लाख रुपये का इनाम था। मूलरूप से जहानाबाद का रहने वाला पटना विवि से स्‍नातकोत्‍तर, पत्‍नी प्रभावति लेबी पहुंचाने का काम करती थी, 2012 में गिरफ्तार किया गया था वह आंगनबाड़ी सेविका का काम करती थी। झारखण्‍ड के बूढ़ा पहाड़ को लंबे समय तक अपना ठिकाना बनाये हुए था। पुलिस के लिए वर्षों तक चुनौती बना रहा। मजाल नहीं कि पुलिस बूढ़ा पहाड़ के उनके गढ़ में प्रवेश कर जाये। कोल्‍हान का सारंडा जंगल बड़ा ठिकाना हुआ करता था। अरविंद पर डेढ़ सौ मामले दर्ज थे। दो साल पहले बीमारी से मौत के बाद पुलिस ने राहत की सांल ली। बिहार, झारखण्‍ड, छत्‍तीसगढ़ की बड़ी घटनाओं में इसकी संलिप्‍तता रहती थी। जहानाबाद जेल ब्रेक का मास्‍टर माइंड था। अरविंद के साथ दूसरा नाम सुधाकरण का था। सुधाकरण भी एक करोड़ का इनामी था। उसकी पत्‍नी नीलिमा पर भी 25 लाख रुपये का इनाम था। लातेहार-गुमला सीमा इनका केंद्र था। पत्‍नी की बीमारी के कारण तेलंगाना में जाकर सरेंडर किया ताकि सरेंडर के बाद जेल न जाना पड़े। करीब 35 साल पहले इंटर में फेल होने के बाद बिना बताये तेलंगाना से भाग निकला बाद में पता चला कि पीडब्‍ल्‍यूजी में शामिल हो गया। तेलंगाना, महाराष्‍ट्र छत्‍तीसगढ़ में पार्टी का काम करने के बाद झारखण्‍ड में केंद्रीय कमेटी का सदस्‍य हो गया। सुधाकरण का करीबी टेक विश्‍वनाथ 2015 में झारखण्‍ड में सक्रिय था। बूढ़ा पहाड़ की लैंड माइंस से घेराबंदी की थी। कैडरों को बम बनाने का प्रशिक्षक था।विश्‍वनाथ पर 25 लाख और पत्‍नी पूनम जो ईस्‍टर्न रीजनल ब्‍यूरो की सदस्‍य थी पर 10 लाख का इनाम था। सुधाकरण के सरेंडर के बाद वापस तेलंगाना चला गया।

बिहार-झारखण्‍ड में संगठन की बड़ी जिम्‍मेदारी निभाने वाला प्रमोद मिश्र और छत्‍तीसगढ़-गढ़वा सीमा पर बूढ़ा पहाड़ में संगठन को विस्‍तार देने वाला भिखारी उर्फ मेहताजी जेल से छूटने के बाद फिर सक्रिय होने की खबर है। सवाल यह है कि पुलिस नक्‍सलियों के खिलाफ कितना हिम्‍मत जुटा पाती है और कितना फ्री हैंड मिलता है। हालांकि एक बात तो तय है कि सिर्फ पुलिस एक्‍शन के भरोसे नक्‍सलवाद को खत्‍म करना सपना है।

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