लखनऊ। स्वतंत्र भारत के इतिहास में सम्भवतः पहली बार संसद के सम्मुख सत्ता पक्ष को प्रदर्शन करते देखा जा रहा है, इसे केंद्र की सत्ता पक्ष की विफलता ही कहा जायेगा। विपक्ष तो हमेशा सरकार की विफलताओं और जनहित के मुद्दों को लेकर धरना प्रदर्शन करता रहा है लेकिन सत्ता पक्ष जब यह सब करने लगे तो यह समझ लेना चाहिए कि अब यह सरकार चलाने के काबिल नहीं रहे। इतना ही नहीं जिस प्रकार पिछले दिनों सदन का बहिष्कार भी सत्ता पक्ष द्वारा करते देखा गया वह मोदी सरकार के नकारापन को दर्शाता है।
उत्तर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बृजलाल खाबरी ने कहा कि मणिपुर में भाजपा विधायक पाओलीनलाल हाओकिप ने एक बड़ा बयान देते हुए कहा कि ‘‘मणिपुर हिंसा में राज्य सरकार शामिल है। सरकार की मिलीभगत की वजह से ही नहीं रूक रही हिंसा’’। सत्तापक्ष के विधायक द्वारा अपनी ही सरकार को कटघरे में खड़ा करना साबित करता है कि सरकार द्वारा कहीं न कहीं यह प्रायोजित हिंसा है क्योंकि भाजपा चुनाव जीतने के लिए तो कुछ भी कर सकती है लेकिन क्या इस स्तर पर भी पहुँच जायेगी कि किसी राज्य को लगभग तीन महीनों तक जलता छोड़ दे?
खाबरी ने कहा कि किसी भी जनता द्वारा चुनी गयी सरकार, प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री का राजधर्म होता है जिसका पालन करते हुए सत्ता चलाई जाती है, किसी भी सरकार के लिए जनता के साथ जन्म, जाति और सम्प्रदाय के आधार पर भेद नहीं किया जा सकता। यह कृत्य अलोकतांत्रिक और संविधान विरोधी है। भारतीय संविधान में प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री किसी दल का नहीं बल्कि देश और प्रदेश का होता है, किसी नागरिक को होने वाली पीड़ा से संवेदित होने के लिए जाति, धर्म आड़े नहीं आना चाहिए।
उन्होंने आगे कहा कि प्रधानमंत्री द्वारा मणिपुर के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह को उनकी कुर्सी उनके कर्तव्य के बारे में तब भी नहीं बताया गया जब महिलाओं की नग्न परेड के वीडियो दुनिया के हर संवेदनशील इंसान को शर्मसार कर रहे थे। जब अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर साख प्रभावित होने लगी और माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने कड़े तेवर दिखाए तो 79 दिनों से लगातार जारी प्रधानमंत्री की चुप्पी टूटी और मात्र 36 सेकेण्ड का अफसोस जाहिर किया। मणिपुर में गृह युद्ध जैसे हालात हैं, तमाम हथियार एवं गोली बारूद उपद्रवियों तक किस प्रकार पहुंच गये सरकार वापस पाने के लिए सख्ती क्यों नहीं कर रही है? निश्चित रूप से इस घटना के बारे में केन्द्र एवं राज्य सरकार को जानकारी अवश्य रही होगी फिर भी शर्मनाक घटना के 15 दिनों बाद प्रशासन को शिकायत मिलती है और प्राथमिकी 49 दिनों बाद दर्ज की जाती है। इससे बड़ा दुर्भाग्य देश के लिए भला और क्या हो सकता है कि पीड़ितों में कारगिल में युद्ध लड़ चुके एक पूर्व सैनिक की पत्नी भी शामिल है? बावजूद इसके केन्द्र सरकार मणिपुर की घटना की तुलना अन्य राज्यों से करने की ओछी धारणा बनाने का प्रयास कर रही है।
प्रदेश अध्यक्ष का कहना है कि क्या कारण है कि मोदी सरकार के मंत्री सदन में कम समय में ही बहस कराना चाहते हैं और दूसरे मंत्री कहते है कि मात्र आधे घंटे की ही बहस काफी है। विपक्ष की मांग कि- लंबी बहस हो, तथ्य सामने आएं और सरकार अपनी जिम्मेदारी व जवाबदेही बताए, यह क्यों नहीं मानी जा रही है? निश्चित रूप से इससे सरकार की करतूतें खुलेंगी, शायद इसी बात की घबराहट है, जिसकी वजह से सरकार बहस से भाग रही है।