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यूपी की जेलों का हाल, जितने पैसे, उतनी सुविधाएं

उत्तर प्रदेश में जेलों की हालत बद से बदतर है। इसके पीछे भ्रष्टाचार मूल वजह है। जेलों में बंदियों से...
यूपी की जेलों का हाल, जितने पैसे, उतनी सुविधाएं

उत्तर प्रदेश में जेलों की हालत बद से बदतर है। इसके पीछे भ्रष्टाचार मूल वजह है। जेलों में बंदियों से मिलाई से लेकर हर बात पर अवैध वसूली होती है। इतना ही नहीं, बंदियों की हैसियत देखकर उनसे वसूली की रकम तय की जाती है और सुविधाएं दी जाती हैं। इस कार्य में बंदी रक्षक से लेकर अधिकारी तक शामिल हैं और गुपचुप कार्य चलता रहता है। 

प्रदेश में तीन आदर्श कारागार, पांच केंद्रीय और 63 जिला कारागार हैं। इनमें मानक के अनुसार 58 हजार चार सौ बंदी रखे जा सकते हैं, लेकिन वर्तमान में जेलों में 96 हजार 580 कैदी हैं। प्रदेश की जेलों में क्षमता से दोगुना बंदी हैं। इसके सापेक्ष कम संख्या में बंदी रक्षकों और अन्य कर्मचारियों की तैनाती से भी समस्या बढ़ी है। जेलों की सुरक्षा के लिए बंदी रक्षकों और मुख्य बंदी रक्षकों के 8,909 पद हैं। जबकि 4354 पद खाली हैं।

जेलों में कर्मचारियों के साथ अधिकारियों की भी किल्लत है। सात-आठ जेलें ऐसी हैं, जहां एक अधिकारी को दो-दो जेलों का प्रभार सौंपा गया है। जेलों में बंदियों और कैदियों के लिए सरकार की ओर से मिलने वाली राशि से जेल का सुचारू संचालन संभव नहीं हो पाता। इसलिए जेल अधिकारी स्वयं सेवी संगठनों और क्षेत्र के प्रतिष्ठित लोगों की मदद से विभिन्न कार्यक्रम जेल में चलाते हैं। इसके अलावा परंपरागत रूप से चले आ रहे वसूली के तौर तरीकों से अन्य खर्च भी निकालते हैं। इसमें बंदी से मुलाकात कराने, बंदी से स्पेशल मुलाकात कराने, बंदी के लिए जेल के अंदर सामान या संदेशा भिजवाने, बंदी का संदेश जेल के बाहर भिजवाने से लेकर जेल के अंदर हर सुविधा का रेट हैसियत देखकर फिक्स है। कई बार तो ऐसा भी होता है कि अधिकारी की डिमांड पूरी नहीं होने पर बंदी को यातनाएं भी दी जाती हैं, ताकि कोई हिमाकत ना कर सके।

प्रशासन की ओर से जेलों के औचक निरीक्षण की सूचना अधिकारियों के कदम रखते ही फैल जाती है और अगर आपत्तिजनक वस्तु कोई मिलती है तो उसे रिकॉर्ड में ना के बराबर ही दर्ज किया जाता है। बंदी रक्षक और नंबरदार जेलों में अवैध तरीके से सामान पहुंचाते हैं। अनुमानित आंकड़ों के अनुसार हर साल 500 से एक हजार करोड़ रुपये से ब्लैकमनी जेलों में सामान पहुंचाने के नाम पर वसूली जाती है। यह एक सिडिंकेट बन चुका है कि इसे तोड़ने में पुलिस-प्रशासन बेबस है। यही कारण है कि जेलों में बंद माफिया अपनी हुकुमत आराम से चलाते हैं।

कारागार विभाग में तैनात एक पूर्व डीजी कहते हैं कि वर्षों से एक ही जेल में जमे अधिकारी-कर्मचारी इसकी जड़ हैं। यह आमतौर पर जिन जेलों में तैनात होते हैं, उन्हीं शहरों-कस्बों के आसपास के रहने वाले होते हैं। इसलिए इनका नेटवर्क और मजबूत हो जाता है। पिछले 20 वर्षों में कई सरकारों ने ऐसे कर्मचारियों को हटाने की कवायद की, लेकिन सभी नाकाम रहे।

जेल मंत्री जय कुमार सिंह जैकी का कहना है कि भ्रष्टाचार को लेकर पिछले 15 माह में जितनी भी शिकायतें आई हैं, उन पर कार्यवाही की गई है। मिलाई को लेकर भी अब काफी पारदर्शिता बरती जा रही है। भविष्य में भी ऐसे निरंतर प्रयास जारी रहेंगे।

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